भारतीय परिधानों में साड़ी का इतिहास सबसे पुराना है। वैदिक काल से लेकर आज के आधुनिक युग तक के सफर में साड़ी को भारतीय नारी ने हमेशा पसन्द ही नहीं किया बल्कि नेशनल ड्रेस का दर्जा भी दिया है। चाहे वार्डरोब कितने की तरह के पकड़ों से भरा पड़ा हो, लेकिन जब तक उसमें कुछ डिजाइनर, सादा, टे्रडीशनल, कैजुवल और त्यौंहारी सीजन की साड़ी का कलेक्शन न हो, लगता ही नहीं कि कोई कपड़ा है।
साड़ी से जुड़ी है भारत की संस्कृति
साड़ी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। साड़ी ऐसा परिधान है जो भारत को एक सूत्र में बांधती है और अनेकता में एकता का संदेश देती है। पारम्परिक कला के साथ ही विभिन्न राज्यों की साडिय़ाँ उन स्थलों की संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक और पूर्व से लेकर पश्चिम भारत तक की संस्कृति वहाँ की साडिय़ों में दिखाई देती है। उत्तर के बनारस की बनारसी साड़ी तो दक्षिण भारत से कंजीवरम साड़ी राजसी लुक के लिए पसन्द करी जाती हैं। पूर्व में बंगाल की काँथा साड़ी की पहचान है तो पश्चिम से गुजरात की बांधनी साड़ी मन को मोह लेती है। राजस्थान की लहरिया और बंधेज की साडिय़ों को भला कौन भूल सकता है। लहरिया और बंधेज की साडिय़ों की माँग पश्चिमी देशों में सर्वाधिक है।
खास होते हैं सलवार सूट
वहीं दूसरी ओर युवतियों में सलवार सूट को लेकर अपना एक अलग क्रेज नजर आता है। कोई भी फंक्शन हो, त्योंहार हो, हर औरत सबसे सुन्दर दिखना चाहती है। ऐसे में सभी महिलाओं की पहली पसन्द ट्रेडिशनल सलवार सूट ही होते हैं। लेकिन इतने सारे विकल्प होते हैं कि समझ में नहीं आता कौन सा सूट लें और कौन सा नहीं लें। सलवार सूट ट्रेडिशनल आउटफिट होने के साथ-साथ अब और भी स्टाइलिश एवं ट्रैंडी हो गया है। इसे न सिर्फ शुद्ध भारतीय परिवेश बल्कि इंडो वेस्टर्न स्टाइल में भी कैरी किया जा सकता है। इन दिनों 70 के दशक के रेट्रो लुक और पंजाब के पटियाला शहर में महाराजाओं द्वारा पहनी जाने वाली पटियाला सलवार के फैशन का दौर है।