पपीता कच्चा या पका दोनों तरह से खाया जाता है पेट के लिए, रामबाण इलाज है
पपीता भारतीय फल नहीं है और भारत में इसका प्रवेश 16वीं सदी में हुआ है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पपीता फल का नाम तो आपने सुना ही होगा. यह एक ऐसा फल है जिसे कच्चा और पका दोनों अवस्थाओं में खाया जा सकता है. दोनों में ही गुणों की भरमार है. पेट के लिए पपीता सबसे लाभकारी है, इसके अलावा इसमें और भी गुण हैं. विशेष बात यह है कि पपीता भारतीय फल नहीं है और भारत में इसका प्रवेश 16वीं सदी में हुआ है. लेकिन आज विश्व में सबसे अधिक पपीता भारत में ही उगाया जाता है.
न आयुर्वेद ग्रंथों में न साहित्य में है पपीते का वर्णन
भारत के प्राचीन धर्मग्रंथों और आयुर्वेद ग्रंथों में न तो पपीते की जानकारी है और न ही इसके गुण-अवगुण को लेकर कोई वृत्तांत है. संस्कृत के महान कवि कालिदास ने तीसरी-चौथी शताब्दी में 'मेघदूत' महाकाव्य की रचना की थी. इस रचना में बादलों के माध्यम से आम, जामुन के वनों के अलावा अनेक प्रकार के पुष्पों और जड़ी-बूटियों आदि की जानकारी दी गई है. लेकिन पपीते के बारे में कोई आख्यान नहीं है. इससे स्पष्ट होता है कि भारत के लिए यह फल बहुत पुराना नहीं है. वैसे पपीता जिस पेड़ में उगता है, असल में वह कोई पेड़ न होकर विशाल पौधा है और इसमें लकड़ी का तना भी नहीं होता. इसकी विशेषता यह है कि यह बहुत तेजी से बढ़ता है.
अमेरिका और मैक्सिको से जुड़ी हैं इस फल की जड़ें
आपको बताते हैं कि आखिर इस गुणकारी फल की उत्पत्ति कहां पर हुई. खोजबीन में हमने पाया कि इसके इतिहास और उत्पत्ति का अध्ययन सीमित है और फुलप्रूफ जानकारी नहीं है कि यह फल किस शताब्दी में पैदा हुआ. लेकिन इतना स्पष्ट है कि पपीते का पपीते का मूल घर उष्णकटिबंधीय अमेरिका और मैक्सिको है. लेकिन वहां कब पैदा हुआ, उसकी सटीक जानकारी का अभाव है. लेकिन 14वी-15वीं शताब्दी तक यह पूरे मध्य और दक्षिण अमेरिका में फैल चुका था और अधिकतर नाश्ते के रूप में खाया जाता था. इसका उपयोग सलाद, पाई, शर्बत, जूस और कन्फेक्शनरी में भी किया जाता है. उसके अनुसार पपीते के बीज दूसरे देशों में पहुंचे और वहां यह पनपने लगा.
भारत में 16वीं सदी में आया पपीता
मिली जानकारी के अनुसार 16वीं शताब्दी के आसपास स्पेनिश इसके बीज एशिया में लेकर आए, वहां से यह भारत पहुंचा. यहां से यह चीन और इटली भेजा गया. अब पपीता पूरी दुनिया और प्रशांत द्वीप समूह के लगभग सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खूब जाना-पहचाना फल है. इस बात को पढ़कर आपको हैरानी हो सकती है कि अब भारत पपीते का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. विश्व का करीब 35 प्रतिशत पपीते का उत्पादन भारत में ही हो रहा है. असल में भारत के कई राज्य उष्णकटिबंधीय हैं और वहां की मिट्टी पपीते के लिए मुफीद है, इसलिए भारत में इस फल का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार, आंध्र प्रदेश पपीता का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम, तमिलनाडु और केरल में सबसे अधिक पपीता उगाया जाता है.
मिनरल और एनर्जी से भरपूर है यह विदेशी फल
पपीते के गुणों की बात करें तो इसे कच्चा और पक्का दोनों अवस्थाओं में खाया जा सकता है और इसके दोनों ही रूप लाभकारी व बीमारियों से बचाव करते हैं. आचार्य बालकृष्ण के अनुसार पपीते में इतने सारे मिनरल, विटामिन, प्रोटीन, एनर्जी आदि है कि वह बहुत सारे रोगों के लिए फायदेमंद साबित होता है. पपीता प्रकृति से कड़वा, गर्म, तीखा, कफ और वात कम करने वाला और जल्दी हजम होने वाला भी. पपीता का कच्चा फल थोड़ा कड़वा तथा मधुर होता है. और पका हुआ फल मधुर, पित्त कम करने वाला, सूजन का दर्द कम करने वाला, वात को कम करने के साथ-साथ रक्त को भी शुद्ध करता है.