ब्रेन ट्यूमर 150 से भी ज्यादा प्रकार के होते है
जिन्हें सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर भी कहा जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ये बात आप शायद जानते होंगे कि ब्रेन ट्यूमर दुनिया भर में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है. ब्रेन ट्यूमर उस स्थिति को कहते हैं जब दिमाग में सेल्स बेकाबू तरीके से बढ़ने लगते हैं. अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ न्यूरोलॉजिकल सर्जन के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर 150 से ज्यादा प्रकार हैं, जिन्हें दो मुख्य समूहों में बांटा गया है- प्राइमरी और मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर.
प्राइमरी vs मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर
कुछ ब्रेन ट्यूमर नॉन-कैंसर वाले होते हैं, जबकि कुछ ब्रेन ट्यूमर घातक हो सकते हैं. दिमाग में शुरू होने वाले ट्यूमर को प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर कहा जाता है. ये उन ट्यूमर से अलग होते हैं जो शरीर के अन्य हिस्सों से दिमाग में फैलते हैं, जिन्हें सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर भी कहा जाता है.
ब्रेन ट्यूमर के लक्षण
ट्यूमर के स्थान के आधार पर ब्रेन ट्यूमर के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. हालांकि कुछ सामान्य लक्षण हैं जैसे- सिरदर्द, दौरा, हमेशा बीमार महसूस करना (मतली), उल्टी आना, मानसिक या व्यवहार में परिवर्तन, मेमोरी लॉस, व्यक्तित्व में बदलाव, कमजोरी या शरीर का एक साइड पैरालाइज होना और देखने या बोलने में समस्या.
अंतिम हफ्तों में दिखाई देने वाले संकेत
एक अध्ययन के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर के मरीजों में जीवन के अंतिम हफ्तों में महत्वपूर्ण और प्रगतिशील न्यूरोलॉजिकल लक्षण विकसित होते हैं. ब्रेन ट्यूमर के रोगी के जीवन के अंतिम हफ्तों में उनींदापन (सामान्य दिनों की तुलना में अधिक नींद महसूस होना) या होश खो बैठना सबसे अधिक सूचित लक्षणों में से एक है. सुस्ती, भ्रम और रात/दिन का अंतर नहीं कर पाना अक्सर होश खो बैठने के शुरुआती संकेत होते हैं. उनींदापन और सुस्ती जीवन के अंतिम हफ्ते में काफी बढ़ जाती है. अंतत: मरीज अंतिम कुछ दिनों के लिए कोमा में चला जाता है.
ब्रेन ट्यूमर का इलाज
यदि आपको ब्रेन ट्यूमर का संदेह है या कोई न्यूरोलॉजिकल परिवर्तन महसूस होता है, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. ब्रेन ट्यूमर का पता लगाने के लिए एक न्यूरोलॉजिकल टेस्ट, एक हेड सीटी स्कैन, ब्रेन एमआरआई, ब्रेन का पीईटी स्कैन या बायोप्सी कुछ तरीके हैं. क्योंकि ब्रेन ट्यूमर फैलने की संभावना नहीं होती है, इसलिए उनमें अन्य कैंसर की तरह स्टेज नहीं होते है. हालांकि, अगर शुरुआत में ही ब्रेन ट्यूमर का पता लगा लिया जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है.