गर्भावस्था के दौरान माँ का मोटापा बच्चे और माँ दोनों के लिए नुकसानदायक, हो सकती है भ्रूण की मृत्यु या डायबिटीज

गर्भावस्था के दौरान माँ का मोटापा बच्चे

Update: 2023-06-30 10:34 GMT
एक नए अध्ययन के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान मां का मोटापा, मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। द जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी में प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक, अतिरिक्त वजन प्लेसेंटा की संरचना को बदल देता है। प्लेसेंटा एक महत्वपूर्ण अंग है जो मां के गर्भ में बच्चे को पोषण देता है। मोटापा और गर्भ के दौरान मधुमेह के बारे में आए दिन सुनाई देता है।
ये दोनों कई मातृ और भ्रूण जटिलताओं से जुड़े हुए हैं, जैसे कि भ्रूण की मृत्यु, बच्चे का मरा हुआ पैदा होना, पैदा होने के बाद शिशु की मौत। हालांकि यह अभी तक ज्ञात नहीं था कि ये जटिलताएं कैसे पैदा होती हैं। अध्ययन से अब पता चला कि माँ के मोटापे से प्लेसेंटा के गठन, इसकी रक्त वाहिका घनत्व और सरफेस एरिया और माँ और बच्चे के बीच पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करने की क्षमता कम हो जाती है।
प्रेगनेंसी के दौरान वजन का बढ़ना और कम होना दोनों ही हानिकारक माने जाते हैं। वजन बढ़ने की वजह से जेस्टेशनल डायबिटीज, हाई बीपी का खतरा बढ़ता है। ये स्थिति माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। वहीं औसत वजन से कम वेट होना भी कम खतरनाक नहीं होता। इसके कारण कॉम्प्लीकेशंस पैदा हो सकते हैं।
वैसे तो वजन की गणना शरीर की लंबाई के आधार पर की जाती है, लेकिन अगर विशेषज्ञों की आम राय पर गौर करें तो कंसीव करने से पहले महिला का वजन कम से कम 45 किलो तो होना ही चाहिए। कंसीव करने के बाद वजन 10 से 15 किलो और बढ़ना चाहिए। अगर इससे कम वजन हो, तो महिला को अंडरवेट माना जाता है। प्रेगनेंसी और अंडरवेट का कॉम्बीनेशन सही नहीं होता। ऐसे में प्री-मैच्योर डिलीवरी या जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना, मिसकैरेज या सी-सेक्शन डिलीवरी का रिस्क बढ़ता है।
डिलीवरी में भी हो सकती है परेशानी
डिलीवरी के समय बच्चे और माँ दोनों के वजन का सामान्य होना जरूरी है। वजन का बहुत ज्यादा बढ़ना डिलीवरी के लिए एक अच्छा संदेश नहीं है। जिन महिलाओं का वजन ज्यादा है, उन्हें अपना वजन कम करने का प्रयास करते हुए स्वयं को डिलीवरी के लिए तैयार करना चाहिए।
प्रेगनेंसी में बढ़ते वजन को इस तरह करें कंट्रोल
खाने पीने का रखें ध्यान
जिन महिलाओं का वजन ज्यादा है, वे अपने वजन पर काबू पाना चाहती हैं, तो पानी की मात्रा बढ़ा दें। ज्यादा से ज्यादा पानी पीनें से ओवरईटिंग नहीं हो पाएगी। जिससे शरीर में फैट की मात्रा नहीं बढ़ेगी। इसके साथ ऑलिव ऑयल, टोफू, सूखे मेवे, मूंगफली का तेल, तिल का तेल, सोयाबीन, एवोकाडो जैसी चीजों को खाने में शामिल करें।
याद रखें प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को हर रोज 25 से 35 फीसदी कैलोरी जरूरी है। कैलोरी की मात्रा इससे कम या ज्यादा होने पर भी आपको नुकसान पहुंच सकता है। जितना आप हेल्दी खाना खाएंगे, पानी जितना अधिक पिएंगें, शरीर उतना एनर्जेटिक रहेगा। ऐसे प्लेसेंटा भी हेल्दी रहेगा, बच्चे को भी पोषक तत्व मिल पाएंगे।
योग से होता है लाभ
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के वजन को बढ़ने से रोकने में योग लाभकारी है। प्रेगनेंट महिलाओं को हर रोज सुखासन, जानुशीर्षासन, शवासन करना उचित रहेगा। ऐसा कोई भी आसन न करें, जिसमें पेट में खिचाव हो। गर्भावस्था के समय कोई आसन करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
गर्भावस्था के दौरान ओवरवेट होने के कारण होने वाली परेशानियां
गर्भावस्था के दौरान वजन अधिक होने से माँ और बच्चे दोनों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इनमें से कुछ के बारे में यहाँ जानकारी दी जा रही है—
माँ को होने वाले खतरे
खून के थक्के
प्रेगनेंसी में वैसे भी ब्लड क्लॉट बनने की संभावना होती है और 30 के ऊपर का ईएमआई इस खतरे को और भी बढ़ा देता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज
जेस्टेशनल डायबिटीज नामक डायबिटीज के एक विशेष प्रकार के होने का खतरा, मोटापे के कारण 300 फीसदी तक बढ़ जाता है।
मिसकैरेज
पहली तिमाही में एक स्वस्थ महिला में मिसकैरेज का खतरा 20 प्रतिशत होता है, वहीं मोटापे की शिकार महिला को इसका खतरा 25 प्रतिशत तक होता है।
पोस्टपार्टम हैम्रेज
यह स्वाभाविक है, कि अगर आपका बीएमआई 30 या इससे ज्यादा है, तो बच्चे के जन्म के बाद भारी ब्लड लॉस हो सकता है। इससे पोस्टपार्टम हैम्रेज का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चे को होने वाले खतरे
स्टिलबर्थ
स्वस्थ वजन वाली महिला में स्टिलबर्थ की संभावना 0.5 प्रतिशत होती है, वहीं मोटापे की शिकार महिला में इसकी संभावना 1 प्रतिशत होती है।
विकास से संबंधित असामान्यताएँ
मोटापे की शिकार महिला से पैदा होने वाले बच्चे के स्पाइना बिफिडा जैसी गंभीर जन्मजात बीमारी के साथ पैदा होने का खतरा अधिक होता है।
प्रीमेच्योर बर्थ
बच्चे के, समय से पहले पैदा होने पर, बाद में उसके जीवन में गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। प्रीमेच्योर बच्चे अंडरवेट होते हैं और उन्हें जन्म के बाद अत्यधिक देखभाल की जरूरत होती है।
बाद के जीवन में होने वाली समस्याएँ
मोटापे की शिकार माँ से पैदा होने वाले बच्चों में दिल की बीमारियाँ, डायबिटीज और मोटापे से ग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है।
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