अपने फैशन ट्रेंड के कारण प्रसिद्द हैं भारत की अलग-अलग जगहें

भारत की अलग-अलग जगहें

Update: 2023-09-12 07:22 GMT
भारत के इसी रिच कल्चर और ट्रेडिशन का एक अभिन्न हिस्सा है इसका सदियों पुराना फैशन। भारत का फैशन जगत में इतना महत्वपूर्ण योगदान रहा है कि उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। भारत के हर प्रदेश ने फैशन जगत को कोई ना कोई एवरग्रीन ट्रेंड, फैशन स्टेटमेंट या स्टाइल दिया ही है, जिसने ना सिर्फ मॉडर्न इंडियन फैशन को इंस्पायर किया है बल्कि इंडिया के बाहर भी डिज़ाइनर्स को इनसे इंस्पिरेशन लेने पर मजबूर किया है। हम आपको बतायेगे भारत के ऐसे ही कुछ राज्यों का जहां से निकले हैं फैशन जगत के कुछ नायाब तोहफे।
चिकनकारी
चिकनकारी लखनऊ की पहचान बन चुकी है। यह कढ़ाई भी नवाबों के समय से चली आ रही है। दरअसल मुकेश बादला वर्क के कपड़े आम लोगों के लिए महंगे होते थे। इसलिए चिकनकारी को मुकेश बादला वर्क के सब्सशटीट्यूट में लाया गया था। आज मुकेश बादला वर्क तो कम दिखता है मगर चिकनकारी ने फैशन वर्ल्डक में धूम मचा रखी है। पारंपरिक तौर पर सफेद कपड़ों पर सफेद धागे से की जाने वाली इस बारीक कढ़ाई ने दुनियाभर में फैशन प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इंटरनेशनल डिज़ाइनर्स ने इससे इंस्पिरेशन लेते हुए अपने कई कलेक्शन्स में फ्लोरल एम्ब्रॉयडरी को शामिल किया है।
बनारसी सिल्क
बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी है जिसे विवाह आदि शुभ अवसरों पर हिन्दू स्त्रियाँ धारण करती हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर], आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में बनारसी साड़ियाँ बनाई जाती हैं। इसका कच्चा माल बनारस से आता है। इस रिच और रॉयल फैब्रिक की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई थी। रेशम के धागों के साथ ज़री के धागों को बुनकर बनाया जाने वाला ये फैब्रिक ना सिर्फ साड़ी के रूप में पहना गया है बल्कि देश-विदेश के बड़े-बड़े डिज़ाइनर्स ने इसके साथ कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स किए हैं।
कांजीवरम साड़ियां
कांजीवरम साड़ी दक्षिण के कांचीपुरम जो तमिलनाडु में स्थित है, वहां बनती है। खासतौर पर कांजीवरम साड़ी की बॉर्डर चौड़ी होती है जो इसकी पहचान का हिस्सा बन चुकी है। कांजीवरम साड़ी में बुनाई के लिए सुनहरे धागे का इस्तेमाल किया जाता है। क्षिण में कांजीवरम साड़ी भी ब्राइडल आउटफिट ही है जिसके बगैर शादी जैसे अधूरी सी लगती है।
कशीदा
कश्मीर सिर्फ अपनी नैचुरल ब्यूटी की वजह से ही जन्नत तुल्य नहीं है बल्कि इसने फैशन जगत को भी कई नायाब तोहफे दिए हैं। ऐसी ही एक आयकॉनिक चीज़ है काशीदा कढ़ाई। काशीदा को आम भाषा में कश्मीरी कढ़ाई भी कहा जाता है। ये कढ़ाई आमतौर पर पेस्टल रंगों के फैब्रिक्स पर एक या दो स्टिचेज़ लगाकर बनाई जाती है। इसमें बनाए जाने वाले डिज़ाइन ज़्यादातर प्रकृति से इंस्पायर्ड होते हैं। पहले सिर्फ पारंपरिक कश्मीरी पोशाकों पर दिखने वाली ये कढ़ाई अब वेस्टर्न आउटफिट्स में भी काफी पॉपुलर है।
लहरिया
लहरिया भी राजस्थान की एक ट्रेडिशनल टाई एंड डाई टेक्नीक है जिसकी शुरुआद 17वीं शताब्दी में हुई थी। लहरिया शब्द लहर से लिया गया है क्योंकि इसमें बन कर तैयार होने वाले पैटर्न्स पानी की लहरों जैसे ही दिखते हैं। इसमें आमतौर पर शिफॉन, जॉर्जेट और कॉटन जैसे हल्के फैब्रिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। पहले के समय में इन्हें लाख, अनार, टेसू के फूल, नील और सब्जियों से तैयार किए गए रंगों से रंगा जाता था लेकिन अब केमिकल रंगों का भी इस्तेमाल होता है।
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