सर्दियों में सिर्फ़ हमारी ही नहीं, बच्चों की त्वचा भी रूखी हो जाती है. सच कहें तो हमारी तुलना में उनकी त्वचा कहीं अधिक संवेदनशील होती है. इसलिए हमें उनकी त्वचा की नमी बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होता है. यदि आपके परिवार में ड्राय स्किन की हिस्ट्री हो तो भूलकर भी बच्चों की त्वचा की सेहत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतीं. आइए जानें, कैसे आप अपने बच्चे की त्वचा को नम, नर्म और मुलायम बनाए रख सकती हैं.
ध्यान रखें, बच्चा पर्याप्त पानी पीता रहे
बेशक आपके बच्चे को आपके जितना पानी की ज़रूरत नहीं होगी, पर इसका यह मतलब नहीं है कि उसके वॉटर इनटेक पर ध्यान ही न दें. बाहर ठंड है, बावजूद इसके बच्चे को निश्चित अंतराल पर पानी पिलाती रहें. यदि बच्चा अब भी आपका दूध पीता है तो यह अच्छी बात है. दूध पीने से उसके शरीर की नमी बरकरार रहेगी, लेकिन बीच-बीच में पानी पिलाना न भूलें. कई मांएं ठंडी में बच्चों के अधिक पेशाब करने के चलते उन्हें पानी नहीं पिलातीं. आप ऐसा बिल्कुल न करें.
गुनगुने पानी से स्नान कराएं
यह तो आपको पता ही है कि गर्म पानी से नहाने से त्वचा की नमी खो जाती है. आप बच्चे को गुनगुने पानी से स्नान कराएं. इससे उसकी त्वचा नम रहेगी. हां, बच्चे को भले ही गुनगुना पानी कितना ही पसंद हो, 10 मिनट से ज़्यादा स्नान न कराएं. नहलाने के बाद उसकी त्वचा पर कोई अच्छा बेबी मॉइस्चराइज़र या लोशन लगाएं.
बच्चों की त्वचा को ठंडी हवाओं से बचाएं
प्रोटेक्शन इज़ बेटर दैन क्योर वाली बात यहां भी लागू होती है. बच्चों की त्वचा को ठंड से बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है कि उन्हें अच्छे से ढंक कर रखें. मसलन गर्म कपड़ों के साथ-साथ, मंकी कैप, दस्ताने और मोज़े पहनाकर रखें. हां, ऐसा करते समय यह ध्यान ज़रूर रखें कि फ़ैब्रिक मुलायम हो, ताकि बच्चे रैशेज़ की शिकायत न करें. नहीं तो वे चिड़चिड़ाएंगे. उनके कपड़े धोने का डिटर्जेंट भी सौम्य होना बहुत ज़रूरी है.
अच्छे बेबी प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करें
भले ही आप अपने लिए नहाने का साबुन चुनते समय थोड़ी-बहुत लापरवाही करती हों, पर बच्चों के केस में ऐसा न करें. बच्चों के लिए एकदम माइल्ड साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए. मॉइस्चराइज़िंग क्रीम की अधिकतावाले साबुन नमी बनाए रखने में काफ़ी मददगार होते हैं. मॉइस्चराइज़र चुनते समय यह ध्यान रखें कि प्रॉडक्ट पीएच न्यूट्रल हो. फ्रैगरेंस फ्री साबुन और मॉइस्चराइज़र बच्चों के लिए अच्छे माने जाते हैं. इससे एलर्जी के चांसेस भी कम होते हैं.
जब आपके बच्चे आपस में लड़ने लगते हैं तो ज़ाहिर है, घर में अशांति का माहौल बन जाता है. आप समझ नहीं पाते कि आख़िर करना क्या चाहिए? हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे मिल-जुलकर रहें. एक-दूसरे से प्यार करें. पर ऐसा शायद ही हो पाता हो. जहां पैरेंट्स बच्चों को एक-दूसरे के फ्रेंड के तौर पर देखना चाहते हैं, वहीं बच्चे जानी दुश्मन की तरह एक-दूजे पर अटैक करते हैं. ऐसे में बतौर पैरेंट आपको क्या करना चाहिए, जानने से पहले भाई-बहनों या बहनों-बहनों या भाई-भाई यानी सिबलिंग्स की इस लड़ाई को समझ लेते हैं.
क्यों आपस में लड़ते हैं सिबलिंग?
अपने ही बच्चों को लड़ता देखना किसी भी पैरेंट को अच्छा नहीं लगता, पर समाज विज्ञान की मानें तो सिबलिंग्स की लड़ाई आख़िरकार उनके लिए अच्छी ही है. जब वे आपस में लड़ते हैं, तब एक तरह से एक-दूसरे को समझ रहे होते हैं. समस्याएं सुलझाना सीख रहे होते हैं. लड़ाई के बाद जब शांत होते हैं तब समझौता करने की कला भी सीख लेते हैं. एक तरह से कहें तो आपस में लड़कर बच्चे समाज में रहने के लिहाज़ से ख़ुद को मानसिक रूप से तैयार करते हैं. तो अगर आपके बच्चे भी आपस में लड़ते हों तो इतना भी लोड मत लीजिए. यह बहुत सामान्य है. आख़िर हम सब भी तो अपने भाइयों-बहनों से लड़ते-झगड़ते ही बड़े हुए हैं. आज हम सभी के बीच प्यार भी बरक़रार है. ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद के लिए हम साथ आ जाते हैं.
बच्चों की यह लड़ाई उन्हें लोगों से एड्जस्ट करना सिखाती है. क्रोध, प्रेम, स्नेह जैसे बेसिक इमोशन्स को मैनेज करने की बेसिक ट्रेनिंग देती है. वैसे लड़ाइयों के दौरान बच्चों का एक लक्ष्य यह भी होता है कि माता-पिता का ध्यान उनकी ओर जाए. तो अटेंशन पाने की यह ललक, ख़ुद को महत्वपूर्ण महसूस कराने की इच्छा भी यह छोटी-मोटी लड़ाइयां उन्हें सिखा देती हैं.
कहीं यह लड़ाई आपने ही तो नहीं शुरू करा दी?
आपने अभी बच्चों की लड़ाई के फ़ायदे पढ़ लिए हैं, पर हम शर्त लगाकर कह सकते हैं कि आप यही चाहेंगे कि आपके बच्चे शांति के देवता बनें. बिना लड़े-झगड़े प्यार से रहें. एक-दूसरे के बेस्ट फ्रेंड बनें. तो सबसे पहले आप ऊपर लिखी बात को भूल जाएं और शांति से बैठकर सोचें कि आख़िर आपके बच्चे क्यों लड़ रहे हैं? क्या आप किसी बच्चे को ज़्यादा तो किसी को कम तवज्जो दे रहे हैं? क्या आपने सभी बच्चों के लिए अलग-अलग रूल्स बना रखे हैं? क्या झगड़ा सुलझाते समय आप भेदभाव करते हैं? छोटे बच्चों की ग़लतियों को अक्सर नज़रअंदाज़ करते हैं? जैसे कुछ बेहद छोटे-से सवालों के सही जवाब, आपकी इस बड़ी-सी मुसीबत को हल कर देंगे.
बच्चों का स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से लड़ना ग़लत नहीं है, पर अगर उनकी लड़ाई आपकी वजह से हो रही है तो बच्चों को सुधारने से पहले अपनी पैरेंटिंग स्टाइल सुधारें.
पहला तरीक़ा: हर बच्चे को दें पर्याप्त समय और ध्यान
इंसान हो या कोई दूसरा जानवर वह लड़ाई इसलिए शुरू करता है, ताकि उसपर ध्यान दिया जाए. तो सबसे पहले आप अपने हर बच्चे पर पूरा ध्यान दें. जिस तरह उनकी पॉकेटमनी को बराबर-बराबर देते हैं, उसी तरह अपना समय और अटेंशन भी उनमें समान रूप से बांटें. उनकी बातें सुनें. उनकी समस्याओं को सुलझाने की ईमानदार कोशिश करें. जब उनमें महत्वपूर्ण होने का भाव आएगा तो वे ज़िम्मेदारी पूर्वक बिहेव करेंगे. अपने भाइयों-बहनों के साथ भी उनका व्यवहार अच्छा हो जाएगा. ख़ासकर बड़े बच्चों के साथ यह तरीक़ा अपनाना सबसे सही होता है. वे अपने छोटे भाइयों-बहनों के संरक्षक बन जाते हैं. बिना धौंस जमाए उनका ख़्याल रखते हैं. और छोटे भाई-बहन भी प्यार के बदले में उन्हें प्यार ही देंगे. उम्र में छोटे-बड़े होने के बाद भी उनमें एक तरह से इक्वैलिटी की भावना आएगी.
दूसरा तरीक़ा: झगड़े की जड़ पर वार करें
यदि आपके द्वारा बरती गई इक्वैलिटी वाली सावधानी के बावजूद बच्चे आपस में अक्सर लड़ते रहते हैं, तो उनके साथ थोड़ा सख़्त होकर ही बात बन सकती है. उदाहरण के लिए यदि बच्चे किसी सामान को लेकर लड़ रहे हैं तो आप क्या करेंगे? उस सामान का उनमें ईक्वल-ईक्वल बंटवारा करेंगे, है ना! पर यदि वह सामान बांटने जैसी न हो तो? ऐसे केस में सबसे अच्छा होगा उस चीज़ को ही उनके बीच से निकाल दें. उन्हें स्पष्ट कह दीजिए कि अगर तुम लोग इस चीज़ के लिए लड़ोगे तो यह किसी को नहीं मिलेगी. जब तक तुम लोग आपस में समझौता करके नहीं आ जाते, इसे भूल ही जाओ. ऐसा सिर्फ़ कहें ही नहीं, करें भी. आपको अपनी आंखों और कान पर आसानी से यक़ीन नहीं होगा, पर आपके बच्चे दुनिया के सबसे आज्ञाकारी, शांतिप्रिय और लोकतांत्रिक बच्चे बन जाएंगे.
तीसरा तरीक़ा: उनका स्क्रीन टाइम कम करके देखें
बच्चों को एंगेज करने के लिए पैरेंट्स का ब्रह्मास्त्र है स्क्रीन. पर लिखकर ले लें आपका यही ब्रह्मास्त्र आगे चलकर बच्चों के बीच लड़ाई का अस्त्र बन जाएगा. अगर आप अपने बच्चों को बिज़ी रखने के लिए उन्हें मोबाइल या टीवी स्क्रीन से चिपका देते हैं तो समझिए आपने उनके अंदर लड़ाई के बीज भी चिपका दिए हैं. यह बीज एक दिन अंकुरित होगा और आपके घर में जंगलराज जैसा माहौल हो जाएगा. अपना फ़ेवरेट प्रोग्राम देखने के लिए उनके बीच लड़ाइयां होंगी.
गैजेट्स से बच्चों को दूर रखना कमाल का काम करेगा. शुरू-शुरू में उनके लिए गैजेट्स से दूर रह पाना मुश्क़िल होगा, पर जल्द ही वे स्क्रीन से दूर होकर आपस में जुड़ जाएंगे. आउटडोर ऐक्टिविटीज़ में भाग लेने से उनकी बॉन्डिंग मज़बूत होगी.
चौथा तरीक़ा: उन्हें ख़ुद मामला सुलझाने कहें
बच्चों को कहें कि वे अपने मामले ख़ुद सुलझाकर आएं. अगर आपके पास एक-दूसरे की शिकायत लेकर आएंगे तो आप अपने हिसाब से सज़ा देंगे. आप देखेंगे कि कुछ दिनों में उनके बीच होनेवाले झगड़े आपसी सहमति से सुलझने लगेंगे. इस बात की भी काफ़ी संभावना है कि वे झगड़ना ही बंद कर दें. हालांकि इस तरीक़े पर आंख मूंदकर भरोसा न करें, बीच-बीच में बच्चों को टेस्ट करते रहें, क्योंकि जब आप मामला सुलझाने के लिए अपना दरवाज़ा बंद कर लेंगे तो हो सकता है कि बड़ा बच्चा छोटे भाई-बहन को धौंस दिखाए. उनपर हुक़्म चलाए. यह भी सही नहीं होगा. लगातार इग्नोर करने से छोटे बच्चे दब्बू और डरपोक बन जाएंगे. इसलिए अगर आपने उन्हें अपने मामले ख़ुद सुलझाने की ताकीद दी भी है तो उन्हें स्पष्ट रूप से कह दें कि बड़ी बातें मम्मी-पापा से ज़रूर शेयर करें.
पांचवां तरीक़ा: मोरल स्टोरीज़ की मदद लें
पंचतंत्र की कहानियों से बच्चों की छुटपन से ही दोस्ती करा देने से वे कई नैतिक पाठ ख़ुद ही सीख जाते हैं. जैसे एकता में शक्ति होती है जैसी कहानियां उन्हें मिल-जुलकर रहने की सीख देती हैं. वे अपना कमरा ही नहीं, किताबें और खिलौने भी शेयर करते हैं. जब बच्चे ऐसा करें तो उन्हें इनाम दें, उनकी तारीफ़ करें... तारीफ़ वह चीज़ है जो उन्हें सही रास्ते पर बनाए रखेगी. बच्चों में रात को सोने से पहले कुछ अच्छी मोरल कहानियां पढ़ने की आदत डालें. वे आपकी मौजूदगी में कहानियां पढ़कर एक-दूसरे को सुनाएंगे तो उसका अधिक इम्पैक्ट होगा. उनके बीच प्यार, सम्मान और भाईचारा बढ़ेगा. आपका हेडेक शर्तिया कम होगा.