आपस में ही लड़ बैठी नस्लें और सभ्यताएं; लोगों को लड़ाने के लिए धर्म, संस्कृति, सभ्यता के आधार पर बांटना जरूरी नहीं

आपस में ही लड़ बैठी नस्लें और सभ्यताएं

Update: 2022-04-12 08:26 GMT
शेखर गुप्ता का कॉलम: 
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व राजनीति और रणनीतिक समुदायों में कई नए विचार उभरे। इनमें प्रमुख था 1993 में सैमुएल हटिंग्टन द्वारा पेश किया गया 'सभ्यताओं के संघर्ष' का विचार। यह विचार फ्रांसिस फुकुयामा की किताब 'द एंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन' की प्रतिक्रिया में उभरा। यह कहना जल्दबाजी होगी कि ये दोनों विचार आज यूक्रेन के बूचा, मारियूपोल और खारकीव के मलबों में दफन नजर आ रहे हैं।
लेकिन ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो शीतयुद्ध के बाद के विमर्शों और सिद्धांतों को फिर से जिंदा करने के लिए काफी है। हो यह रहा है कि स्लाव लोग स्लाव लोगों से ही लड़ रहे हैं यानी एक ही श्वेत नस्ल वालों में ठनी हुई है; रूढ़िवादी ईसाई (जिन्हें हटिंग्टन ने सभ्यताओं की अपनी सूची में एक सभ्यता बताया था) रूढ़िवादी से लड़ रहे हैं, यानी धर्म या धार्मिक वर्गीकरण भी समीकरण से बाहर हैं और यूरोप में पश्चिमी ताकतों के बीच टक्कर फिर शुरू हो गई है।
रूस के रूप में वे जिस महाशक्ति का सामना कर रहे हैं, उसे एशिया की चीन नामक सबसे बड़ी ताकत का समर्थन हासिल है। यानी नया शीतयुद्ध सचमुच में शुरू हो गया है। अब जरूरत सिर्फ इस बात है कि आज की स्थिति ने जिन तमाम नई विडंबनाओं, विरोधाभासों और मिथ्याभासों को उभार दिया है, उनकी सूची तैयार करें।
आखिर, पुराने सोवियत दौर के टी-72 टैंक पूर्व वारसा संधि के सदस्य-देश चेक रिपब्लिक से ट्रेनों में लादकर रवाना किए जा रहे हैं, एस-300 मिसाइलें स्लोवाकिया से भेजी जा रही हैं, और यह पूरी कवायद प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और नाटो करवा रहा है। यूरोप के देश जब रूस के खिलाफ यूक्रेन को हथियारबंद कर रहे थे, उसी दौरान उन्होंने रूस से 38 अरब डॉलर मूल्य की एनर्जी की खरीद की।
ऐसी हर एक बात एक खबर बन सकती है। लेकिन हम उन सबकी बात नहीं कर रहे। हम एक जटिल मसले की खोज करते हैं। यह हमें इस्लामी दुनिया के सामने ला खड़ा करता है। आप सोच रहे होंगे कि मुसलमानों का इन सबसे क्या वास्ता? उन्हें तो कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के लिए भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। तो उन्हें इस पचड़े में क्यों घसीटें? मुद्दा यही है।
हटिंग्टन ने कई तरह की संभावनाओं पर विचार किया था, लेकिन दुनिया ने उनकी इस आशंका को ही याद रखा कि ईसाई (पश्चिमी) और इस्लामी सभ्यताओं के बीच टक्कर हो सकती है। यह अल-कायदा के जन्म लेने से बहुत पहले, 9/11 के भी एक दशक पहले की बात है। तब कोई इस्लामी मुल्क आर्थिक या राजनीतिक रूप से इतना मजबूत नहीं था कि ईसाई या पश्चिमी ताकतों के लिए खतरा बने।
पाकिस्तान को 'बम' वाला मुल्क माना जाता था मगर उसका कभी कोई वजन नहीं रहा। आज उसके पास और बम हैं मगर उसका वजन और कम हो गया है। तब तक चीन भी इतना खतरनाक नहीं दिखता था। इसलिए, रणनीति के बारे में भविष्यवाणियां करने वालों को कई देशों को एकजुट करने वाली किसी ताकत की कल्पना करनी ही थी। इस्लाम वह ताकत हो सकती थी, खासकर 'उम्मा' वाली उसकी अवधारणा के कारण।
इन सिद्धांतों के तीन दशक बाद सभ्यताओं के बीच टक्कर की जगह एक ही सभ्यता, नस्ल और भूगोल के अंदर ही युद्ध शुरू हो गया है, जबकि दो विश्वयुद्धों में ऐसा कम ही हुआ था। नब्बे वाले दशक के शुरू में एक नए तरह के युद्ध की कल्पना की गई थी और हमेशा की तरह शक की सुई इस्लामी दुनिया की ओर घूमती थी। लेकिन वास्तव में ऐसा क्यों नहीं हुआ? मुस्लिम दुनिया को आज अंतरराष्ट्रीय खबरों में शायद ही प्राथमिकता मिलती है।
तब भी नहीं जब सऊदी अरब, यमन में मुसलमान और अरब भाइयों पर हमला करता है; या इजराएल फिलस्तीनियों पर हमला करता है; या दुनिया के एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न इस्लामी देश में बड़ा सियासी नाटक खेला जाता है; या जब रोहिंग्या मुसलमानों को यातना दी जाती है और उनका कत्ल किया जाता है; या तब तो नहीं ही जब चीन में ऊईगर मुसलमानों पर क्रूर सामूहिक अत्याचार ढा रहा होता है।
उम्मीद की जा रही थी कि मुस्लिम दुनिया अब तक सभ्यतागत खतरे के खिलाफ एकजुट होकर खड़ी हो गई होती। आज वह अपने भीतर छोटे-छोटे झगड़ों में उलझी है। बड़ा झगड़ा ईरान और सऊदी अरब तथा खाड़ी के अमीर अरबों के बीच है। यमन, लेबनान या सीरिया तक इसी बड़े झगड़े की चपेट में हैं। ईरान के विपरीत सुन्नी बहुल तुर्की भी इसी होड़ में शामिल है। यूक्रेन ने इसे भी अस्त-व्यस्त कर दिया है।
तुर्की के एर्दोगन अब हड़बड़ी में इजरायल के राष्ट्रपति का अभूतपूर्व स्वागत कर रहे हैं। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक रिपब्लिक ने इस्लामाबाद में हुए अपने ताजा शिखर सम्मेलन में ऊईगरों की हालत का जितना रोना नहीं रोया, उससे ज्यादा चीनी विदेश मंत्री का सबसे सम्मानित मेहमान के रूप में स्वागत किया। पाकिस्तान में सत्ता संभाल रहे लोगों ने पश्चिम के साथ संबंधों की दिशा बदली है, जबकि मुस्लिम दुनिया की रहनुमाई करने के सपने देखने वाले इमरान खान को कार्यमुक्त कर दिया गया है।
माना गया था कि ईसाई और इस्लाम आपस में लड़ेंगे। इसमें यहूदी भी जोड़ लीजिए। लेकिन आज ये तीनों मध्य-पूर्व में एक साथ जुड़ गए हैं। अगर ईसाई, मुस्लिम और यहूदी अमन कायम कर रहे हैं, अगर मुसलमान मुसलमानों से ही छोटे-छोटे युद्ध लड़ रहे हैं, अगर दुनिया के अमन को सबसे बड़ा खतरा यूरोप और ईसाई सभ्यता के अंदर से उभर रहा है, तो इन तमाम बातों से साफ है कि दुनिया इस कदर बदल चुकी है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
नया शीतयुद्ध शुरू हो चुका है
आज ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो शीतयुद्ध के बाद के विमर्शों और सिद्धांतों को फिर से जिंदा करने के लिए काफी है। स्लाव लोग (पूर्वी यूरोपियन जातियां) स्लाव लोगों से ही लड़ रहे हैं; रूढ़िवादी रूढ़िवादी से लड़ रहे हैं और यूरोप में पश्चिमी ताकतों के बीच टक्कर शुरू हो गई है। रूस के रूप में वे जिस महाशक्ति का सामना कर रहे हैं, उसे चीन नामक ताकत का समर्थन हासिल है। नया शीतयुद्ध सचमुच शुरू हो गया है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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