लॉकडाउन के एक साल बाद: किसी महामारी को किस तरह तेजी से मात दी जा सकती है, भारत विश्व में इसका बन रहा रोल मॉडल
एक साल पहले 24 मार्च को भारत सरकार ने 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी
एक साल पहले 24 मार्च को भारत सरकार ने 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, जिसे फिर दो हफ्ते और बढ़ाकर 17 मई कर दिया गया। लॉकडाउन का फैसला भारत में कोरोना के करीब 500 पुष्ट मामले सामने आने के बाद लिया गया था। कुछ विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि जून 2020 की शुरुआत तक 10 लाख लोग कोरोना से संक्रमित होकर अस्पतालों में भर्ती होंगे, जबकि लगभग 30 करोड़ लोग कोविड-19 के हल्के संक्रमण के शिकार होंगे। तब इस बात को लेकर कई हल्कों में गहरी चिंता जताई गई थी कि एक महामारी का मुकाबला करने के लिए तमाम मानदंडों (पीपीई किट बनाने, ट्रैक और ट्रेसिंग की क्षमता वगैरह) पर भारत की तैयारी अच्छी नहीं है। ऐसे में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत जल्द ही महामारी का अगला हॉटस्पॉट बन जाएगा।
भारत सरकार ने कोरोना महामारी का मुकाबला करने में किया युद्धस्तर पर काम
आज एक साल बाद यह आकलन करना आसान है कि भारत सरकार ने इस महामारी का मुकाबला करने में कैसा काम किया। जरा पीपीई किट के उत्पादन पर गौर करें। भारत में जनवरी 2020 से पहले इस उत्पाद की सप्लाई चेन तक नहीं थी। नीति आयोग ने अप्रैल 2020 में अनुमान जताया था कि जून 2020 तक भारत को तकरीबन 2.7 करोड़ एन-95 मास्क, 1.5 करोड़ पीपीई किट और 50,000 वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी। और फिर देश में 60 दिनों के भीतर पीपीई किट की एक स्वदेशी सप्लाई चेन तैयार हो गई, जिसकी गुणवत्ता भी अच्छी थी। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने प्राइवेट सेक्टर क्षेत्र के साथ मिलकर युद्धस्तर पर काम किया। ऐसी ही प्रगति कोरोना की टेस्टिंग के मोर्चे पर भी देखी गई। फरवरी 2020 की शुरुआत में देश में बमुश्किल कोई टेस्टिंग किट उपलब्ध थी, लेकिन फरवरी 2021 के अंत तक भारत रोजाना आठ लाख टेस्ट करने में सक्षम था।
जब कोरोना वायरस ने हमला किया था, तब हमारे पास बचाव का कोई उपाय नहीं था
जब कोरोना वायरस ने हमला किया था, तब हमारे पास इससे बचाव का कोई उपाय नहीं था और कोई वैक्सीन भी नहीं थी। अब एक साल के अंदर भारत कोरोना रोधी दो वैक्सीन (एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन) तैयार कर चुका है। यह एक उपलब्धि है, जो एक साल में सिर्फ चंद देश ही हासिल कर पाए। इस बीच तीन और स्वदेशी वैक्सीन तैयार होने की प्रक्रिया में निर्णायक पड़ाव पर हैं। यह मोदी सरकार द्वारा मेडिसिन क्षेत्र को दिए गए समर्थन का नतीजा है कि भारत वैक्सीन के अपने अभाव को इतनी जल्दी दूर करने में कामयाब हुआ। सरकार द्वारा वक्त पर लिए फैसले की बदौलत हम उन चंद देशों में शुमार हुए हैं, जिन्हें फिलहाल वैक्सीन की कमी नहीं है। घरेलू मोर्चे पर बात करें तो भारत इस समय दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है। बीते दिनों प्रतिदिन 30 लाख लोगों के टीकाकरण का आंकड़ा पार हो गया। अब तक करीब पांच करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है।
भारत ने दूसरे देशों की मदद के लिए वैक्सीन डिप्लोमेसी में भी कदम बढ़ाया
भारत ने दूसरे देशों की मदद के लिए वैक्सीन डिप्लोमेसी में भी कदम बढ़ाया है। करीब 80.75 लाख डोज दूसरे देशों को मुफ्त दी गई हैं। इसके अलावा ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन के तहत 165.24 लाख डोज दी गई हैं। कारोबारी सौदों के तहत भी 339.67 लाख डोज दूसरे देशों को भेजी गई हैं। इसका बड़ा हिस्सा हमारे पड़ोसी देशों के साथ साझा किया गया है जिनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका जैसे रणनीतिक साझेदार शामिल हैं। दूसरे प्रमुख साझीदारों जैसे ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका को भी समय पर मदद दी गई। पहले की आपात स्थितियों के उलट इस बार वैक्सीन-राष्ट्रवाद से प्रेरित पश्चिमी देश कम विकसित देशों और विकासशील देशों की मदद को आगे नहीं आए, जबकि भारत ने अब तक अपनी 33-50 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति ऐसे देशों को की है। क्वाड की पहल के तहत भारत आगे भी प्रशांत महासागर द्वीप के देशों और हमारे दक्षिण-पूर्व एशियाई भागीदारों को वैक्सीन की आपूर्ति करेगा। अपने आदर्शों पर चलते हुए भारत ने उन देशों की भी मदद की, जिनका अतीत में भारत के प्रति दोस्ताना रवैया नहीं रहा। जैसे कि कनाडा ने कृषि कानून विरोधी आंदोलन को लेकर किया। यहां तक कि अब पाकिस्तान भी भारत से वैक्सीन मंगा रहा है। आसान शब्दों में कहें तो भारत की मदद के बिना विकासशील दुनिया के अधिकांश देश अपना टीकाकरण अभियान इतनी जल्दी शुरू नहीं कर पाते।
मोदी सरकार ने देशभर में हेल्थकेयर के बुनियादी ढांचे में किया सुधार
इस सबके साथ मोदी सरकार ने देशभर में हेल्थकेयर के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़ी शुरुआत करते हुए अस्पतालों में सिर्फ नए उपकरणों की खरीद पर ही लगभग 300 करोड़ रुपये खर्च किए। इसके अलावा जुलाई 2020 तक कोविड-19 के इलाज के लिए 205 से अधिक हेल्थकेयर संस्थानों को स्तरीय बनाने के लिए बुनियादी ढांचे का विकास किया गया। यह निवेश भविष्य में फायदा देगा। वेंटिलेटर के लिए किया गया भारी खर्च कोविड-19 से निजात पाने के बाद निमोनिया और टीबी के मरीजों के इलाज में मददगार होगा।
महामारी का मुकाबला करने के लिए भारत तैयार
जन स्वास्थ्य सेवा पर खर्च के लिए स्थानीय निकायों को 70,000 करोड़ रुपये दिए गए, जबकि मानव संसाधन में निवेश के साथ ही मेडिकल उपकरणों, वेंटिलेटर, वैक्सीन आदि की उपलब्धता में सुधार पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है। भारत अब प्राइमरी हेल्थकेयर से जुड़ी पुरानी खामियों को दुरुस्त करने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करते हुए भविष्य में किसी भी महामारी का मुकाबला करने के लिए अच्छी तरह तैयार है। किसी महामारी को किस तरह तेजी से मात दी जा सकती है, हम इसका रोल मॉडल बन रहे हैं। आजादी के बाद से भारत को हमेशा आफतों का सामना करना पड़ा है। सौभाग्य से अब हमारे पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा नेतृत्व है, जो मुश्किलों भरी राह को आसान कर सकता है।