Vijay Garg: पिछले 60-70 साल में जिस तरह विज्ञान की नियामतों और टैक्नोलॉजी की आसानियों ने जीवन की रूपरेखा बदली है, सोचा जाए तो लगेगा कि इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता? सब कुछ संभव ही नहीं बल्कि चुटकी बजाते ही अलादीन के चिराग की तरह ‘जो हुक्म मेरे आका’ जैसा हो सकता है।
मानव और मशीन का गठजोड़ : जब दशकों पहले दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे मेले में पहली बार टैलीविजन और उसमें से बोलते चेहरे की आवाज लोगों ने सुनी तो आंख और कान पर यकीन नहीं हो पा रहा था। हर व्यक्ति की जुबान पर चर्चा थी। टैलीफोन का आविष्कार बहुत पहले हो गया था लेकिन जब एक डिबिया के आकार में इसका वजूद समा गया और दुनिया में कहीं भी बिना किसी तार या कनैक्शन के बात होने लगी तो सोचा कि ‘ऐसा भी हो सकता है’ और जब बात करने वाले एक-दूसरे को देख भी सकते हों, चाहे सात समंदर पार हों, तब यह अजूबा ही लगा।
कम्प्यूटर का बड़ा-सा डिब्बा अपने पूरे ताम-झाम के साथ घरों और दफ्तरों में पहुंचा तो यह कमाल लगा। इसकी बदौलत कुछ भी करना सुगम हुआ तो वाहवाही करनी ही थी। अब यह छोटे से मोबाइल फोन की स्क्रीन हो या आदमकद टी.वी. स्क्रीन, ज्ञान बतियाने और बांटने से लेकर खेल खेलना और मनोरंजन का लुत्फ उठाना उंगलियों से बटन दबाते ही होने लगा है। मुंह से निकलता है कि ‘अब और क्या’? इसका जवाब भी मिल गया और हमारे सामने आॢटफिशियल इंटैलीजैंस का संसार आ गया। इसके आगे क्या होगा उसके लिए आश्चर्यचकित होने का स्थान अब जिज्ञासा और उत्सुकता ने ले लिया है। इंसान का दिमाग क्या और कहां तक सोच सकता है, उसे व्यवहार में लाकर एक तरह से किसी भी चीज की काया पलट कैसे हो सकती है या की जा सकती है, इतना ही समझ लेना काफी है। जब हम इस नई टैक्नोलॉजी की बात करते हैं तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं नजर आता। वह मशीन को अपने इशारों पर नचा सकता है या कहें कि वह सब करवा सकता है जो उसके दिमाग में चल रहा है।
यहां इस बात पर गौर करना होगा कि मशीन अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकती। कमान इंसान के हाथ में रहती है, ठीक उसी तरह जैसे चिराग से निकले जिन्न को वही करना होता है जो आका का हुक्म हो। असावधानी या गलतफहमी के कारण गलती हो गई तब यह मशीन छुट्टे सांड की तरह कितनी तबाही मचा सकने में सक्षम है, इसकी कल्पना भी करना कठिन है।
आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस की गहराई तक जाने की एक सामान्य व्यक्ति को न तो जरूरत है और न ही उसके लिए आसान है। इतना ही समझना पर्याप्त है कि अब इसके इस्तेमाल से घर बैठे ही अपने बही खाते, उतार-चढ़ाव, फेरबदल, बाजार की उठा पटक पर नजर ही नहीं, उसमें अपने हिसाब से परिवर्तन किया जा सकता है। जो बिजनैस करते हैं, उद्योग धंधे चलाते हैं और जिनके लिए पलक झपकने का अर्थ लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे हैं, यह टैक्नोलॉजी वरदान है। इसी तरह जो प्रोफैशनल व्यक्ति टैक्स, वकालत, कंसल्टैंसी या फिल्म निर्माण के क्षेत्र में हैं, वे महीनों का काम दिनों और घंटों का मिनटों में कर सकते हैं।
हमारे देश में योग्यता की कोई कमी नहीं है लेकिन इसी के साथ काबिल बनाने वालों और कार्यकुशलता बढ़ाने वालों का जबरदस्त अभाव है। इसका परिणाम यह होता है कि लोग गलती करने के बाद सीखते हैं और दौड़ में पिछड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए जब मशीन में पुराने आंकड़े या डाटा डाला या फीड किया जाता है तो उसमें से जो रिजल्ट निकलेगा वह तो कचरा ही होगा। दुर्भाग्य से यही कचरा हमारे लिए नीतियां बनाने वाले इस्तेमाल में लाते हैं और नतीजे के तौर पर असफलता ही हाथ लगती है। शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, बेरोजगारी, गरीबी हटाने से लेकर प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण तथा जनसंख्या तक के आंकड़े दसियों साल पुराने होने के कारण हरेक क्षेत्र में खींचातानी और अपना दोष दूसरे के सिर मढऩे जैसा वातावरण है। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग चाहे राजनीति हों या आॢथक विशेषज्ञ जिन पर जन कल्याण की योजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी है वे योग्य तथा प्रतिभाशाली नहीं होंगे, चाहे दुनिया कितनी आगे बढ़ जाए, हमारा पीछे रहना भाग्य के लेखे की तरह है।
लाभ और हानि की तुलना आवश्यक : आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस टैक्नोलॉजी के जितने फायदे हैं, उनकी तुलना में नुकसान भी कम नहीं हैं बशर्ते कि सावधानी न बरती गई हो। नकली आवाज, वही चेहरा, हावभाव, उठने-बैठने से लेकर बातचीत करने का अंदाज तक हू-ब-हू कॉपी किया जा सकता है। साइबरक्राइम के खतरे शुरू हो चुके हैं, लूटपाट और चोरी-डकैती के लिए घर में सेंध लगाने की जरूरत नहीं, इस टैक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल से यह सब कुछ आसानी से किया जा सकता है। डिजिटल अरैस्ट, बिना जानकारी खाते खाली, जिंदगी भर की बचत पल भर में साफ, कौन अपना कौन पराया और कौन बन जाए बेगैरत और बेगाना, कुछ भी हो सकता है।
जरूरी है यह समझना कि चाहे कोई कितना भी अपना बनकर कोई जानकारी मांगे तो उसे पहली बार तो टाल ही दें। फिर पूरी जांच-पड़ताल करें, बैंक से पूछें, दोस्तों और रिश्तेदारों से सांझा करें और तब ही कुछ करें या कहें जब आश्वस्त हो जाएं कि कुछ गड़बड़ नहीं है। डराने या धमकाने और गिरफ्तार होने की संभावना पर यकीन न करें। यही मानकर चलें कि नकल का बाजार गरम है और अक्ल का इस्तेमाल करना है। बहकने या भुलावे की कोई गुंजाइश नहीं, जो नहीं दिख रहा उसे देखने की कोशिश करें। इतना ही करना एक आम आदमी के लिए पर्याप्त है वरना लुटेरे तो अपना जाल बिछाए बैठे ही हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब