Novel: लगभग एक महीने बाद भैया का कॉल आया, मां की शिकायत करते हुए कि अब ले जाओ बैंक का काम हो गया है। मिनी जब मां को लेने जा रही थी तो सोचते हुए जा रही थी कि अब की बार मैं मां को हमेशा के लिए अपने पास ले आऊंगी पर पूरे अधिकार के साथ ले कर आऊंगी जिससे मां को आत्मसम्मान का बल रहे । वो ये मान सके कि मैं इस बार हमेशा के लिए बेटी के पास आ गई हूं।
भैया के घर जब पहुंचे तो भैया ने बहुत ही खुश होकर बताया कि वो अब एटीएम बनवा लिये हैं अब मां को बैंक लाने की कोहोगी। मिनी ने कहा - "हां। ठीक है मैं मां को हमेशा के लिए अपने पास ले जाना चाहती हूं पर उन्हें उनका अधिकार दीजिए।" ई आवश्यकता नहीं
जैसे ही अधिकार की बात भैया ने सुनी तो वो आग बबूला हो गए और मां को घूर कर देखने लगे।
मां से पूछे -"मां ! जाना चाहती हो ?"
मां ने बस इतना कहा - "जाऊं ?"
गुस्से में मां को डॉटने लगे। मां के आगे घर की चाबी फेंकने लगे। मिनी ने मां से कहा - "मां! चलिए चाबी उठाइए। "
मां की हिम्मत ही नहीं हुई कि वो चाबी उठाए। मां भैया के डांटने से डर गई।
मिनी कभी भी भैया से इस तरह से बात नहीं की थी। आज वो जिस मां के अधिकार के लिए भैया से इस तरह बात की उसी मां ने मिनी को गलत साबित कर दिया। मिनी ने बहुत कहा -"मां चलिए मेरे साथ हमेशा के लिए। "
पर मां ने एक बार भी जाने का नाम नहीं लिया। मिनी तड़प कर रह गई। मिनी ने कहा - "जब आपको भैया से इतना लगाव है और भैया को आपसे इतना लगाव है तो फिर मुझे क्यों बीच में लाते हैं । आप दोनो प्रेम से रहिए एक साथ। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि आप दोनो के बीच में दरार मेरे कारण आई है। अगर ऐसा है तो मान लो आज से मैं आप दोनों के लिए मर गई और आप लोग सुख से रहिए।"
ऐसा बोलकर मिनी घर से निकल भी गई पर मां ने कुछ भी नहीं कहा। मिनी ने ही चुपके से एक कागज़ में मां को अपना मोबाईल नंबर देते हुए कहा कि आपको जब भी मन करे मुझसे बात जरूर कर लीजिएगा। अगर भैया भाभी बात नहीं करवाएंगे तो किसी और के फोन से बात कर लीजिएगा।
मिनी बहुत दुखी होकर घर वापस आ गई। सर भी साथ में थे। बिटिया भी साथ में थी। मिनी को लगा कि जिस मां के अधिकार को मिनी दिलाना चाह रही थी मां ने उस अधिकार को क्या मिनी को ही ठुकरा दिया।
मिनी की सोच ऐसी थी कि मां सबको कह सकती थी, मैं सब कुछ लेकर अपनी बेटी के पास आ गई हूं और कम से कम यही सोचकर ठाठ से मेरे पास रहती,पर हुआ इसका उल्टा।
मिनी भैया भाभी से भी बुरी बनी और मां से भी बिछड़ गई।
महीने , दो महीने , छः महीने बीत गए मां का कभी कोई फोन नहीं आया। मिनी सोचती थी ठीक है कभी कभी नोक झोंक ही तो होगी इससे अधिक तो और कुछ नहीं होगा। मैं क्यों दोनों के बीच की दीवार बनूं।
मिनी इस बात पर रोती थी की मां ने मिनी को ठुकरा दिया फिर भी वो अपने मन को धीरज बंधाती की कम से कम इसी बात पर मां अपने बेटे बहू के पास रहेगी। अब तो मिनी के पास जाना ही नहीं ये सोचकर तीनों खुश रहेंगे पर कुछ गम ज़माने वाले भी देते रहते हैं। मिनी को अक्सर ताने सुनने मिलते, लोग भैया से कहते थे - "देखा, हम कहते थे न जब शरीर थक जाएगा तब वो तुम्हारे पास ही रहेगी।" फिर भी मिनी को लगता कि आखिर भैया भाभी के पास ही है मां किसी गैर के पास तो नहीं , वो भी बिना वजह परेशान होती है। मिनी अपने मन को खूब दिलासा देती।
मां को गए एक साल हो गए। मां की कोई खबर नहीं। मिनी सोचती कि अब मां को वहां रहने की और भैया भाभी को भी मां के साथ रहने की आदत हो गई होगी। मात्र डेढ़ साल में मामा जी के फोन ने मिनी के होश उड़ा दिए कि अब तुम्हारी मां एक या दो दिन की मेहमान है।
मिनी सुनकर पागल हो गई कि आखिर अभी तो मेरी मां सेठानी जैसी थी अभी कैसे एक दो दिन की मेहमान हो सकती है ? वो फोन सुनकर रोने लगी और सर से कहने लगी कि मैं मां से मिलने जाऊंगी।
सर हर बात समझते थे । सर भी मिनी को लेकर मां से मिलने गए। मां की हालत देखकर दोनो के होश उड़ गए। आखिर मां की हालत ऐसी कैसे हो सकती है..... मिनी जैसे पुराने खयालों में विचरण कर रही थी और कह रही थी हाय री दुनिया जो कभी स्वप्न में भी न सोचो वो दुनिया हकीकत में दिखा देती है...... क्रमशः