Vijay Garg: गूगल ने इसी महीने 'विलो' नाम की क्वांटम चिप बना कर तकनीक के क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी है। अत्यंत सूक्ष्म, महज चार वर्ग सेंटीमीटर की यह चिप एक तरफ तो तीस वर्ष से भी ज्यादा पुरानी समस्या का हल खोजने में सक्षम है, वहीं यह पांच मिनट में ऐसे काम कर सकती है, जिन्हें करने में सबसे तेज सुपर कंप्यूटर को भी अरबों साल लग सकते हैं। इस चिप से कृत्रिम बुद्धि, फ्यूजन ऊर्जा तथा तारामंडल के ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी। मौसम और प्राकृतिक आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी करने में सुविधा होगी। तकनीकी क्षेत्र में इस नवीन उपलब्धि की सभी जगह चर्चा है। एलन मस्क जैसे लोग इस उत्पाद को लेकर अचंभित हैं। इसलिए इसे 'सुपर ब्रेन' की संज्ञा दी रही है। 'विलो' चिप व्यावसायिक रूप में क्वांटम कंप्यूटिंग की नई दिशा तय करती हुई मील का पत्थर साबित होगी।
कुछ समय पहले तक असंभव सी लगने वाली चीजें आज प्रौद्योगिकी की मदद से सरलता से परिणाम तक पहुंच रही हैं। एक समय संगणक के विकास ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया था। अब कृत्रिम बौद्धिकता यानी एआइ ने चिकित्सा से लेकर हथियारों के निर्माण तक हर क्षेत्र में कंप्यूटर और रोबोट के प्रयोग को नया आयाम दिया है। पारंपरिक कंप्यूटर की दुनिया में इस प्रगति के समांतर एक और अनुसंधान चल रहा है, जिसका नाम है 'क्वांटम कंप्यूटिंग' यानी अति- सूक्ष्मता का विज्ञान भारत ने ने भी अब इस क्षेत्र में गति लाने का एलान कर दिया है। भौतिक शास्त्र के क्वांटम सिद्धांत पर काम करने वाली इस कंप्यूटिंग में असीमित संभावनाएं देखी जा जा रही हैं। शोध के के लिहाज से यह विषय किसी के लिए भी रुचि का हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक पूर्ण विकसित क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता सुपर कंप्यूटर से भी ज्यादा आंकी जा रही है। इसकी शुरुआत के बाद भारतीय और पश्चिमी वैज्ञानिक मान रहे रहे हैं कि भाववादी सिद्धांत को जाने बिना अणु या कण में चेतना का आकलन नहीं किया जा सकता। क्वांटम कंप्यूटिंग या यांत्रिकी एक लैटिन शब्द है। इसका अर्थ कण है। इस विषय के अंतर्गत पदार्थ के अति सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म कण कणों का अध्ययन किया जाता है। इनमें परमाणु, न्यूक्लियस तथा इलेक्ट्रान और प्रोटान सभी मौलिक कणों का अध्ययन शामिल है। इसमें इनके व्यवहार और उपयोगिता का अध्ययन किया जाता है। इस नवीन विषय के अध्ययन की नींव 1890 में वैज्ञानिक मैक्स प्लांक ने डाली थी। हालांकि इस समय तक वैज्ञानिक यह मान कर चल रहे थे कि भौतिकी में जितने नियमों का आविष्कार होना था, लगभग हो चुके हैं ज्ञान ने पहले परमाणु को ही ऐसा सबसे सूक्ष्मतम कण बताया था, जिसने विश्व का निर्माण किया है। फिर आगे की खोज से ज्ञात हुआ कि परमाणु भी विभाजित हो सकता है। यानी उसे और अत्यंत सूक्ष्म कणों में बांटा जा सकता है। फलतः ये सूक्ष्म कण, इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान नाम के लघुतम रूपों में सामने आए।
कण यांत्रिकी को भविष्य का कंप्यूटर माना जा रहा है। यह परमाणु और उप परमाणु के स्तर पर ऊर्जा और पदार्थ की व्याख्या करती है। पारंपरिक कंप्यूटर बिट (अंश) पर काम करते हैं, वहीं क्वांटम कंप्यूटर में प्राथमिक इकाई क्यूबिट यानी कणांश होती है। पारंपरिक कंप्यूटर में प्रत्येक बिट का मूलाधार या मूल्य शून्य (0) और एक (एक) होता है। कंप्यूटर इसी शून्य और एक की भाषा में कुंजीपटल (की-बोर्ड) से दिए निर्देश को ग्रहण करके समझता और परिणाम देता है। वहीं क्वांटम की विलक्षणता यह होगी कि वह एक साथ शून्य और एक दोनों को ग्रहण कर लेगा। यह क्षमता क्यूबिट की वजह से विकसित होगी। नतीजतन, यह दो क्यूबिट में एक साथ चार मूल्य या परिणाम देने में सक्षम हो जाएगा। एक साथ चार परिणाम स्क्रीन पर प्रकट होने की इस अद्वितीय क्षमता के कारण इसकी गति पारंपरिक कंप्यूटर से बहुत ज्यादा होगी। उससे कहीं अधिक मात्रा में यह कंप्यूटर डेटा ग्रहण और सुरक्षित रखने होगा। इसीलिए दावा किया जा जा रहा है कि इसकी में समर्थ मदद स से आंकड़ों और सूचनाओं को कम से कम समय में प्रसारित किया जा सकेगा। एआइ जीपीटी चैट और चैटबाट जैसी तकनीक इसकी सहायता से और तेजी से गतिशील रहेंगी। मगर विलो चिप निर्माण की घोषणा ने सुपर कंप्यूटर के निर्माताओं को फिलहाल सकते में डाल दिया है, क्योंकि 'विलो चिप' की क्षमताएं ब्रह्मांड व्यास की तरह शक्तिशाली और असीमित बताई गई हैं।
क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता को देखते हुए इसके विकास में भारत समेत अनेक देश लगे हैं। यही वजह है कि आविष्कार से पहले इसकी क्षमताओं का मूल्यांकन कर लेने वाले देश इसके अनुसंधान पर बड़ी धनराशि खर्च कर रहे हैं। चीन ने 15 अरब डालर खर्च करने की घोषणा की है। चीन की ई-कामर्स कंपनी अलीबाबा अलग से इस पर काम कर रही है। यूरोपीय संघ इस क्षेत्र में करीब आठ अरब डालर खर्च कर रहा है। भारत सरकार ने भी इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने के लिए क्वांटम सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्था का गठन तो पहले ही कर लिया था, लेकिन केवल क्वांटम तकनीक पर नवीन शोध और आविष्कार के लिए 2023-24 से 2030-31 तक चलने वाले इस अभियान पर 6003.65 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। भारत इतनी बड़ी राशि पहली बार खर्च कर रहा है।
"फिलहाल ऐसा माना जा रहा है कि क्वांटम यांत्रिकी का क्षेत्र जितना महत्त्वपूर्ण है, उस तुलना में इस क्षेत्र में कुशल युवाओं की संख्या बहुत कम है। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में एक हजार से भी कम लोग क्वांटम अभियांत्रिकी या भौतिकी में शोधरत हैं। अनेक कंपनियां योग्य और कल्पनाशील लोगों की तलाश में है। हैरानी इस पर भी है कि क्षेत्र में भविष्य की आपार संभावनाएं होने के बावजूद इस जटिल विषय की युवा आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि है कि कुशाग्र बुद्धि वाले जो विद्यार्थी कल्पनाशील विचार रखते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर कंपनियों के पारंपरिक कार्यों में खपाया या सरकारी नौकरियों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसका सामना क्वांटम भौतिकी के जनक मैक्स प्लांक को भी करना पड़ा था। जब तब उन्होंने इस विषय पर काम करने प्लांक दसवीं कक्षा के छात्र छात्र थे, तब का विचार अपने गुरु को दिया, तो उनका उत्तर था, ' 'भौतिकी में अब नए आविष्कारों की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। इसमें जितना शोध और अनुसंधान होने की संभावनाएं थीं, वे पूरी हो चुकी हैं। अतः इस विचार को छोड़ दो।' मगर यह मैक्स की दृढ़ इच्छाशक्ति थी कि उन्होंने अपने विचार को शोध के रूप में आगे बढ़ाया और क्वांटम भौतिकी को जन्म दिया। अब यही क्वांटम भौतिकी कंप्यूटर की क्वांटम यांत्रिकी बन रही है। 'विलो' चिप को इस कंप्यूटर का सुपर ब्रेन माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इस क्षेत्र में जो देश बढ़-चढ़ कर नेतृत्व करेगा, वही दुनिया पर राज भी करेगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमक्वांटम कंप्यूटर में क्रांतिकारी कदम
एचआर मलोट पंजाब