अध्ययन के अनुसार टाइप 2 मधुमेह से बचाव के मामले में फायदेमंद खड़े रहने की आदत
अक्सर स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए चहलकदमी और व्यायाम का सुझाव दिया जाता है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अक्सर स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए चहलकदमी और व्यायाम का सुझाव दिया जाता है, लेकिन इस मामले में खड़े रहने की आदत भी मददगार साबित हो सकती है। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक टाइप 2 मधुमेह से बचाव के मामले में खड़े रहना फायदेमंद होता है। फिनलैंड में हुए इस अध्ययन में खड़े रहने की आदत और बेहतर इंसुलिन संवेदनशीलता के बीच संबंध पाया गया है। इतना ही नहीं रोजमर्रा की जिंदगी में खड़े होने का समय बढ़ाने से पुरानी बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है।
खराब इंसुलिन प्रणाली मधुमेह की वजहः
एनर्जी मेटाबॉलिज्म और रक्त शर्करा के नियमन में इंसुलिन एक प्रमुख हार्मोन है। कई बार वजन अधिक होने से शरीर में इंसुलिन के सामान्य फंक्शन में गड़बड़ी हो सकती है, जिससे इंसुलिन संवेदनशीलता कम हो जाती है और टाइप 2 मधुमेह और हृदयरोगों का खतरा बढ़ जाता है। टाइप 2 मधुमेह दुनियाभर में सबसे आम जीवनशैली की बीमारियों में से एक है। इसकी शुरुआत आमतौर पर बिगड़ी हुई इंसुलिन संवेदनशीलता या इंसुलिन प्रतिरोध से होती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें शरीर सामान्य रूप से इंसुलिन पर प्रतिक्रिया नहीं करता है और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।
गतिहीन व्यवहार से इंसुलिन प्रणाली प्रभावितः
जीवनशैली का इंसुलिन में रुकावट और टाइप 2 मधुमेह के विकास पर एक गहरा प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं की रोकथाम में नियमित शारीरिक गतिविधि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि अब तक इंसुलिन की रुकावट पर गतिहीन व्यवहार, लगातार बैठे रहने के बीच ब्रेक और खड़े रहने की आदत के प्रभावों के बारे में बहुत कम जानकारी है। तुर्कू पीईटी सेंटर और यूकेके संस्थान के हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इंसुलिन में बाधा और गतिहीन व्यवहार के बीच संबंध की जांच की। इसके अलावा उन्होंने वयस्क उम्र के लोगों में शारीरिक गतिविधि और निष्क्रियता के साथ टाइप 2 मधुमेह और हृदयरोगों के विकास के बढ़ते जोखिमों को भी देखा।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि रोजमर्रा की नियमित शारीरिक गतिविधि या बैठने के समय, फिटनेस स्तर से अलग स्वतंत्र रूप से खड़े रनहा बेहतर इंसुलिन संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ है। यह संबंध पहले नहीं देखा गया था। प्रमुख अध्ययनकर्ता एवं तुर्कू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तारू गर्थवेट का कहना है कि अध्ययन के निष्कर्ष रोजाना बैठने के समय के एक हिस्से में लोगों को खड़े रहने के लिए प्रेरित करेंगे। खासकर अगर शारीरिक गतिविधि की जरूरतों को पूरा नहीं किया जाता है तो यह तरीका मददगार हो सकता है।
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम होगीः
अध्ययन मेटाबॉलिक सेहत पर स्वस्थ शरीर संरचना के महत्व पर भी जोर देता है। अध्ययन परिणाम बताते हैं कि शारीरिक गतिविधि, फिटनेस या बैठने में लगने वाले समय की तुलना में शरीर में वसा के प्रतिशत में इजाफा इंसुलिन संवेदनशीलता के मामले में अधिक महत्वपूर्ण कारक है। दूसरी ओर खड़े होना शरीर की संरचना के बावजूद इंसुलिन संवेदनशीलता से जुड़ा था। शोधकर्ताओं का कहना है कि नियमित व्यायाम को स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है।
मगर ऐसा लगता है कि शारीरिक गतिविधि, फिटनेस और गतिहीन व्यवहार भी इंसुलिन मेटाबॉलिज्म से जुड़े हुए हैं, लेकिन परोक्ष रूप से यह शरीर की संरचना पर उनके प्रभाव के माध्यम से जुड़े हैं। जर्नल ऑफ साइंस एंड मेडिसिन इन स्पोर्ट में प्रकाशित इस अध्ययन के आधार पर अभी तक कारण प्रभावों का अनुमान नहीं लगाया जा सका है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार परिणाम बताते हैं कि यदि पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं की जा रहीं तो रोजाना खड़े होने का समय बढ़ाने से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिल सकती है।