Stroke Risk In Women: काम का बोझ महिलाओं को बना सकता है दिल का मरीज़, जानिए रिसर्च व ऐक्सपर्ट की राय

अध्ययन के मुताबिक डायबिटीज कोलेस्ट्रोल लेवल में बढ़ोतरी स्मोकिंग मोटापा और सुस्त लाइफस्टाइल दिल के रोगों का खतरा बढ़ा सकता है। काम का दबाव और नींद की समस्याएं स्पष्ट रूप से दिल की बीमारियों का जोखिम बढ़ाती है।

Update: 2021-09-07 09:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महिलाएं ना सिर्फ घर के कामकाज की जिम्मेदारी निभाती हैं, बल्कि वो घर से बाहर जाकर कमाती भी है। महिलाओं की दोहरी जिंदगी का बोझ उनका दिल झेल नहीं पा रहा है। यूरोपीय स्ट्रोक संगठन (ESO) द्वारा प्रस्तुत एक अध्ययन के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है। महिलाओं को दिल का यह खतरा उनके लाइफस्टाइल, काम के तनाव, कम नींद और थकान की वजह से हो रहा है। महिलाओं के लिए उनकी यह खतरनाक आदतें दिल के दौरे की घटनाओं को बढ़ा रही हैं।

अध्ययन के मुताबिक डायबिटीज, कोलेस्ट्रोल लेवल में बढ़ोतरी, स्मोकिंग, मोटापा और सुस्त लाइफस्टाइल दिल के रोगों का खतरा बढ़ा सकता है। काम का दबाव और नींद की समस्याएं स्पष्ट रूप से दिल की बीमारियों का जोखिम बढ़ाती है।
वर्क प्रेशर महिलाओं के दिल के लिए खतरा:
यूनिवर्सिटी अस्पताल ज्यूरिख में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ मार्टिन हैंसेल और उनकी टीम ने कहा कि अभी तक माना जाता रहा है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को दिल के रोगों का खतरा अधिक रहता है। अध्ययन में यह बात सामने आई कि पुरुष स्मोकिंग ज्यादा करते हैं, और उनका वज़न ज्यादा होता है इसलिए उनके दिल को खतरा अधिक होता है। महिलाओं के दिल को जोखिम होने का सबसे बड़ा कारण उनकी व्यस्तता और उनके आराम में कमी है। महिलाएं घर से लेकर ऑफिस तक में काम करती है और उनको आराम का समय कम मिलता है जो उनके दिल के लिए खतरा है।
स्विस हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट:
2007,2012 और 2017 में 22 हज़ार मर्द और औरतों पर किए गए स्विस हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक गौर पारंपरिक जोखिम कारक जैसे नीद की कमी, काम के दबाव ने महिलाओं को दिल का रोगी बना दिया है। आंकड़ों के मुताबिक 2007 में जो महिलाएं पूरा दिन काम करती थी, उनकों 38 फीसद और 2017 में 44 फीसद महिलाओं में स्ट्रोक और दिल का दौरा पड़ने के मामले सामने आए।
कुल मिलाकर महिलाओं और पुरुषों में काम के बोझ का आंकलन करने पर पता चला कि काम के दौरान तनाव के मामले 2012 में 59 प्रतिशत तो 2017 में 66 प्रतिशत हो गए। जबकि थकान महसूस करने वालों की संख्या महिलाओं में 33 प्रतिशत और पुरुषों में 26 प्रतिशत थी।


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