LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों को होती हैं ये मानसिक समस्याएं
ये मानसिक समस्याएं
हालांकि, जून के महीने को प्राइड मंथ के तौर पर मनाया जाता है। लेकिन, फिर भी LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोगों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एनजीबीटीक्यू+ ऐसा शब्द है, जिसके लिए कई नेगेटिव शब्दों को बोला जाता है। इसलिए इस कम्युनिटी के लोग खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं, क्योंकि रूढ़िवादी समाज उन्हें अपनी पहचान को लेकर असुरक्षित महसूस कराता है।
अक्सर LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों को यह महसूस कराया जाता है कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। चूंकि हमारे समाज पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खुलकर बात नहीं होती है। ऐसे में LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए प्रोफेशनल्स से मदद लेना और भी मुश्किल हो जाता है।
LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों को कौन-सी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है? इसके बारे में हमें साइकोथेरेपिस्ट और लाइफ कोच डॉ चांदनी बता रही हैं।
सुसाइड करने के विचार
LGBTQ+ कम्युनिटी के कुुछ लोगों के मन में बार-बार सुसाइड करने के विचार आते हैं। इसके अलावा, वह खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं। साइकोथेरेपिस्ट का कहना है, ''ऐसा भेदभाव और रिजेक्शन के कारण होता है।''
डिप्रेशन और एंग्जाइटी
LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे भेदभाव का अनुभव करते हैं और कई लोगों पर अपनी पहचान छिपाने के दबाव रहता है।
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नशीली चीजों का सेवन
अपनी पहचान और इमोशनल उथल-पुथल के कारण LGBTQ+ कम्युनिटी के लोग नशा करने लगते हैं। डॉक्टर का कहना है, ''वे अक्सर अल्कोहल या ड्रग्स का सहारा लेते हैं।''
इटिंग डिसऑर्डर
LGBTQ+ कम्युनिटी के लोग खुद को बेहतर दिखाने के चक्कर में इटिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं। ये डिसऑर्डर्स होमोफोबिया (होमोफोबिया ऐसा डर है, जो होमोसेक्शुअल या बायसेक्शुअल लोगों को देखकर होता है) और शर्म से भी जुड़े होते हैं।
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रिजेक्शन का डर
LGBTQ+ कम्युनिटी से जुड़े कई टीनएजर परिवार, दोस्तों और पार्टनर्स द्वारा रिजेक्शन के डर में रहते हैं। साइकोथेरेपिस्ट का कहना है, ''अपनी पहचान के साथ संघर्ष कर रहे बच्चे को अगर अपने परिवार के सदस्यों, टीचर और दोस्तों से सपोर्ट नहीं मिलता है, तो उनमें तनाव और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं।''
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अकेलापन
पहचान छिपाने से व्यक्ति खुद को अलग-थलग महसूस करता है और वे दोहरा जीवन जीने के लिए मजबूर होते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी पहचान छुपा रहा होता है, तब लगातार डर में रहता है। इससे तनाव का लेवल बढ़ता है।
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