FSSAI ने दिया ट्रांस फैट के लिए बड़ा आदेश, जानिए अच्छे और बुरे Fat में क्या है अंतर
भारत समेत लगभग 40 देशों ने ट्रांस फैट (trans fat) को खत्म करने के सबसे अच्छे स्टैंडर्ड का पालन किया है
खाने-पीने की चीजों की क्वालिटी पर नजर रखने वाली सरकारी संस्था खाद्य नियामक एफएसएसएआई (FSSAI) ने सभी खाद्य पदार्थों में बाहरी वसा (trans fat) के इस्तेमाल को कम करने के लिए कुछ नियम जारी किए हैं. FSSAI ने मंगलवार को एक बयान में कहा, 'सभी खाद्य पदार्थों में अलग से तेल या फैट की मात्रा को कम करने के नियम हाल ही में गजेट में नियम दिए गए है.' इस नियम के साथ भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) बाहर की वसा या ट्रांस फैट के प्रयोग को कम करने वाले दुनिया के प्रमुख देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है.'
भारत समेत लगभग 40 देशों ने ट्रांस फैट (trans fat) को खत्म करने के सबसे अच्छे स्टैंडर्ड का पालन किया है. एशिया में भारत थाइलैंड के बाद ऐसा करने वाला पहला देश बन गया है. पिछले साल 29 दिसंबर को FSSAI ने औद्योगिक ट्रांस फैटी एसिड की सीमा जनवरी 2021 तक तीन प्रतिशत और जनवरी 2022 तक दो प्रतिशत सीमित करने का नियम निर्धारित किया है. स्वास्थ्य के लिहाज से ट्रांस फैट अच्छा नहीं माना जाता, इसलिए सरकार ने साफ कर दिया है कि अब यह खाने-पीने की चीजों में नहीं चलेगा. कोई भी बाहरी चीज खाने से पहले हम यह देखते भी नहीं कि उसमें ट्रांस फैट कितना है और लोग बीमार भी हो जाते हैं.
2 परसेंट से कम होगा ट्रांस फैट
इससे बचने के लिए सरकार ने साफ कर दिया है कि कि किसी भी खाने के सामान में ट्रांस फैट की मात्रा दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. नियम अभी जारी हुआ है लेकिन इसे अगले साल लागू किया जाएगा. लेकिन उससे पहले यह जान लेना जरूरी है कि ट्रांस फैट आपको, खासकर आपके बच्चों पर कितना असर डाल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) दुनिया के देशों से कह चुका है कि अपने नागरिकों को स्वस्थ रखना है तो 2023 तक ट्रांस फैट को उपयोग पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए.
शरीर में कैसे पहुंचाता है नुकसान
यह जानना जरूरी है कि ट्रांस फैट क्या है और यह शरीर में कैसे नुकसान पहुंचाता है. आसान भाषा में कहें तो पिज्जा, बर्गर या अन्य जो भी फास्ट फूड खाते हैं उनमें ट्रांस फैट की मात्रा ज्यादा होती है. जब हम ट्रांस फैट (trans fat) खाते हैं तो इसका सबसे पहला असर हमारे लीवर पर होता है क्योंकि फैट खाते ही लीवर कोलेस्ट्रॉल बनाने के लिए एक्टिव हो जाता है. अधिक कोलेस्ट्रॉल बनने से यह खून की नलियों में जाकर चिपकता है. इससे नलियां जाम हो सकती हैं जिससे ह्रदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. हार्ट अटैक की आशंका हमेशा बनी रहती है. मेडिकल की दुनिया में यह बात सिद्ध है कि ट्रांस फैट ह्रदय, ब्रेन और लीवर के लिए बड़ा खतरा है. इससे डायबिटिज होने की संभावना भी बनी रहती है.
ट्रांस फैट से मोटापा
एशिया के देशों में डायबिटिज के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं जिसमें बड़ा रोल ट्रांस फैट का है. ट्रांस फैट से मोटापा बढ़ता है फिर उससे डायबिटिज जैसी बीमारियां होती हैं. इसमें देखा जाता है कि जब हमारे पेट का साइज बढ़ जाता है तो उससे डायबिटिज का खतरा और बढ़ जाता है. अब सवाल है कि Trans fat कहां पाया जाता है और इससे बचने का उपाय क्या है. ट्रांस फैट हमारे खाने की लगभग हर चीजों में पाया जाता है. चाहे वह दूध हो या मांस. थोड़े बहुत ट्रांस फैट सबमें होते हैं लेकिन खतरनाक ट्रांस फैट वो होता है जिसे हम तल देते हैं. ये पैकेट्स फूड या फ्रोजन फूड में मिलता है.
तलने से खतरा ज्यादा
ट्रांस फैट (trans fat) मांस में भी होता है लेकिन वह उतना खतरनाक नहीं होता जितना कि हम किसी चीज को तल देते हैं. ट्रांस फैट की मात्रा तब और ज्यादा बढ़ जाती है जब एक ही तेल को बार-बार गरम करते हैं और उसी में खाने की चीज तलते हैं. हालांकि कनोला या पी नट सीड से बने तेल में ट्रांसफैट नहीं होता लेकिन इसे भी एक ही बार इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. बार-बार तेल गरम करने और उसका बना खाना लेने से ट्रांस फैट की मात्रा शरीर में तेजी से बढ़ती है. राइस ब्रान तेल में भी ट्रांस फैट नहीं होता लेकिन उसे भी एक ही बार इस्तेमाल करना चाहिए.
तेल कंपनियों को निर्देश
FSSAI ने अभी हाल में कंपनियों से कहा था कि तेलों में ट्रांस फैट की मात्रा घटाई जाए ताकि उससे वाले प्रोडक्ट में उसकी मात्रा कम रहे. पहले नियम तेल के लिए लाया गया और अब फूड प्रोडक्ट में इसकी मात्रा घटाने के लिए कहा गया है. किसी खाद्य पदार्थ में कितना ट्रांस फैट है, इसे जानने के लिए हमें फूड पैकेट को देखना चाहिए जिस पर इसके बारे में लिखा होता है. प्रति सर्विंग के हिसाब से पैकेट पर लिखा होता है कि उसमें ट्रांस फैट, शुगर या सैचुरेडेट फैट कितना है. इसलिए खाने से पहले पैकेट पर देखना जरूरी होता है. कई कंपनियों ने पैकेट पर लिखना शुरू कर दिया है कि प्रोडक्ट ट्रांस फैट फ्री है. हमेशा ध्यान रखें कि ट्रांस फैट 1 परसेंट नीचे हो. खाने के तेल की जहां तक बात है तो उसमें अभी 5 परसेंट तक ट्रांसफैट पाया जाता है.
तली चीजें खाने से बचें
घर में भी बनने वाली चीजों में ट्रांस फैट की मात्रा ज्यादा होती है जिससे बचने की जरूरत है. केक, कटलेट, टिक्की या फ्रेंच फ्राई जैसी चीजों में ट्रांस फैट ज्यादा होता है जिससे हमें बचने की जरूरत है. बेक्ड, फ्राइड या प्रोसेस्ड फूड में ज्यादा ट्रांस फैट होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल न करें तो ट्रांस फैट से आसानी से बच सकते हैं. माइक्रोवेव में जो पॉपकॉर्न बनता है उसमें ट्रांस फैट बहुत ज्यादा होता है. इससे बचने के लिए जरूरी है कि प्रेशर कूकर में पॉपकॉर्न को बनाएं. मार्केट में आजकर ऐसे पॉपकॉर्न खूब मिलते हैं. ट्रांस फैट से बचने का सबसे सही तरीका है कि हम तेल बदलें और तलने से अच्छा बेक्ड प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें.