कैसी है हमारे देश में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति?
यह एक ऐसा विषय है, जिसपर एक छोटे-से लेख में हम ज़्यादा कुछ नहीं बता सकते, पर आप इसकी स्थिति को नीचे बताए गए आंकड़ों की मदद से मोटा-मोटी समझ सकते हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की प्रजनन, मातृत्व, नवजात शिशु, बच्चे और किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+ए) कार्यक्रम के तहत बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कई योजनाएं बनाई जाती रही हैं, जिनका उद्देश्य होता है बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में सुधार. फिर भी भारत उन देशों में है, जहां बाल मृत्युदर काफ़ी अधिक है (वर्ष 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ यह 28.3% है यानी प्रति 1,000 बच्चों में 28.3 की एक वर्ष की उम्र से पहले मृत्यु हो जाती है) और बाल कुपोषण के मामले में भी हमारी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती. लगभग 40% भारतीय बच्चे कुपोषित हैं. कोविड-19 के केस में हमने देखा कि किस तरह इसका बुज़ुर्ग आबादी, ख़ासकर डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों पर सबसे घातक असर हुआ. इस वायरस ने कम उम्र वालों को उस तरह प्रभावित नहीं किया. भारत की अधिकांश आबादी युवा होने के चलते हमें इसका लाभ कम मृत्यु दर के रूप में मिला. पर आप कल्पना कीजिए, अगर भविष्य में ऐसी कोई बीमारी फैलती है, जिससे सभी उम्र वर्ग के लोग हाई रिस्क पर होंगे तो हमारे देश का क्या होगा? चूंकि हम एक युवा आबादी वाले देश हैं, हमें बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य का ख़ास ध्यान रखना होगा.
उम्मीद करते हैं कि देश कोविड-19 के ख़तरे से जल्द ही पार पा लेगा, पर हमें उससे सबक सीखते हुए अपने हेल्थ केयर सिस्टम को तुरंत दुरुस्त करना होगा. हम कल की महामारियों से आज के बच्चों की रक्षा करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. प्रोग्राम लीड्स-हेल्थ, टाटा ट्रस्ट के डॉक्टर प्रतिभा जी नागतिलक और डॉ संदीप चव्हाण ने बाल स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाए जाने की दृष्टि से ज़रूर पांच क़दमों के बारे में बात की, जिनपर फ़ोकस करके इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है.
पहला क़दम: यह सुनिश्चित करना कि वैक्सीन समय पर पहुंचे और कोल्ड चेन की अच्छी व्यवस्था हो
बीमारियों से सुरक्षा में वैक्सीन की भूमिका की जितनी बात कोरोना काल में की गई है उतनी पहले कभी नहीं की गई होगी. हर किसी को इस बीमारी से बचानेवाली एक अदद प्रभावी वैक्सीन का इंतज़ार है. वैक्सिनेशन यानी टीकाकरण बच्चों के स्वास्थ्य के लिहाज़ से बहुत ज़रूरी हैं. जिस तरह पोलियो के टीकाकरण के चलते इस बीमारी का लगभग निर्मूलन हो चुका है (लगभग इसलिए क्योंकि अभी भी यदा-कदा पोलियो केसेस आ जाते हैं), उसे देखते हुए कह सकते हैं कि रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ानेवाले टीके बच्चों के स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं. टीकों से रोगों के अनगिनत मामलों का निवारण और लाखों की जीवन-रक्षा हुई है. बाल मृत्युदर कम करने के लिए वैक्सिनेशन एक क़िफ़ायती तरीक़ा है. पोलियो, चेचक, डिफ्थीरिया, कुकुरखांसी, रूबेला (जर्मन खसरा), मम्प्स (गलगंड), टेटनस, रोटावायरस और हीमोफाइलस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी (एचआईबी) जैसे रोगों को, जो हमारे देश में आम हुआ करते थे, अब इन्हें टीकाकरण द्वारा काफ़ी हद तक नियंत्रित किया गया है. तो सबसे पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी बच्चों का समय पर टीकाकरण किया जाए.
टीकाकरण से ही जुड़ा दूसरा महत्वपूर्ण विषय है कोल्ड चेन्स की अच्छी व्यवस्था. टीकों (वैक्सीन) की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उनको अपेक्षित तापमान सीमा में रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह काम होता है वैक्सीन कोल्ड चे के माध्यम से. हमें टीकाकरण से सही नतीजा पाने के लिए उनके परिवहन और भंडारण (ट्रान्सपोर्टेशन और स्टोरेज) के दौरान डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा सुझाए गए तापमान मानदंड का पालन करना आवश्यक होता है. अगर कोल्ड चेन की व्यवस्था होगी तो यह काम आसानी से किया जा सकेगा.
दूसरा क़दम: अग्रिम पंक्ति यानी फ्रंटलाइन वर्कर्स को सही प्रशिक्षण देना
भारत सरकार द्वारा गर्भवती स्त्रियों की और बच्चों की नाम-आधारित ट्रैकिंग आरम्भ की गई है, जिसे मैटरनल ऐंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (एमसीटीएस) कहा जाता है. एमसीटीएस से चीज़ों को ट्रैक करना काफ़ी हद तक आसान हो गया है, पर इस सिस्टम के सही व प्रभावी इस्तेमाल के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि प्रेग्नेंसी से संबंधित मामलों को देखनेवाले हेल्थ वर्कर्स को सही प्रशिक्षण देना. यहां फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स से हमारा मतलब है-डेटा एंट्री ऑपरेटर, एएनएम, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता. इन फ्रंट लाइन वर्कर्स के समुचित प्रशिक्षण के साथ-साथ कुछ बेहद बुनियादी सुविधाओं की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. मसलन-सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों में बिजली के कनेक्शन और नियमित विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना.
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तीसरा क़दम: माताओं और नवजात शिशुओं की सेहत पर ख़ास ध्यान देना
स्वस्थ बचपन के बीज बच्चे के जन्म के पहले ही बोए जाते हैं. लेकिन बच्चे के जन्म का समय महत्वपूर्ण होता है जब डिलिवरी कराने वाले डॉक्टरों और नर्सों को मां और बच्चे दोनों के ही जीवन की रक्षा करनी होती है. डिलिवरी और उसके बाद के 48 से 60 घंटे की अवधि मां और बच्चे दोनों के लिए ही बहुत महत्वपूर्ण होती है. यदि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रशिक्षित हेल्थकेयर वर्कर होंगे और केंद्र टेक्नोलॉजी से लैस होगा तो मां और बच्चे के स्वस्थ रहने की संभावना बढ़ जाती है. इस भूमिका को बख़ूबी निभा रहा है अलायन्स फ़ॉर सेविंग मदर्स ऐंड न्यू-बॉर्न्स (एएसएमएएन). एएसएमएएन या आसमान पांच प्राइवेट सेक्टर के साझीदारों द्वारा चलाया जा रहा है, जिसमें शामिल हैं-टाटा ट्रस्ट्स, बीएमजीएफ़, एमएसडी फ़ॉर मदर्स, रिलायंस फ़ाउंडेशन और यूएसएड. यह पहल मध्य प्रदेश और राजस्थान इन दो राज्यों में कार्यान्वित है.
चौथा क़दम: दूर-दराज़ इलाक़ों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना
भारत जैसे देश में, जहां अभी भी ज़्यादातर आबादी गांवों में बसती है, अगर कोई योजना सफलता पूर्वक लागू करना है तो शहरों से बाहर निकलकर गांवों तक पहुंचना होगा. यह तो आपको पता ही है कि शारीरिक दूरी का पालन करनेवाले न्यू नॉर्मल में कहीं पहुंचना उतना सुगम और तेज़ नहीं रहा है. कम से कम जब तक कोविड 19 के ख़िलाफ़ प्रभावी वैक्सीन नहीं मिल जाती तब तक तो दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुंचना उतना आसान नहीं रहनेवाला. इस स्थिति में इन इलाक़ों में पहुंचने के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (एमएमयू) और टेलीमेडिसिन यूनिट्स (टीएमयू) जैसे टेक्नोलॉजी बेस्ड माध्यमों से बड़ी मदद मिल सकती है. आधुनिक मेडिकल उपकरणों से लैस एमएमयू और टीएमयू ग्रामीण इलाक़ों की सेवा को ठीक करने में सहायक हो सकते हैं. साथ ही इन यूनिट्स से वैश्विक महामारी के दौरान कौन और कैसे प्रभावित हुआ तथा हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है, से संबंधित आंकड़े प्राप्त करने में भी मदद मिल सकती है.
पांचवां क़दम: बाल स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी-निजी सहयोग (पीपीपी) भी प्रभावी हो सकता है
कोविड 19 के प्रबंधन के चलते पूरे विश्व में स्वास्थ्य तंत्र के सामने संसाधनों का भारी संकट पैदा हो गया है. ऐसे में, सरकार के सामने बाल स्वास्थ्य की पहले से ही डांवाडोल व्यवस्था को अकेले संभाल पाना आसान नहीं रहा है. वैश्विक महामारी के कारण इसकी स्थिति और गंभीर हो गयी है. इस क्षेत्र में निजी पार्टनर्स की मदद से खड़ा किया जानेवाला पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल (पीपीपी) काफ़ी प्रभावी सिद्ध हो सकता है. हां, यहां एक बात बहुत ज़रूरी है कि फ़ील्ड पर उतरकर काम करना होगा, न कि सहभागिता को महज अनुदान और वित्तीय सहायता तक सीमित करना होगा. इन मुद्दों पर ध्यान देकर हम अपनी युवा आबादी को स्वस्थ बना सकेंगे और भविष्य की महामारियों से बचा सकेंगे.