जब कभी उलझन हो तो ईश्‍वर को बीच में रखें, परमात्मा की उपस्थिति ही कई समस्याओं का समाधान है

ओपिनियन

Update: 2022-03-24 08:54 GMT
पं. वि‍जयशंकर मेहता का कॉलम: 
आपके अपने लोग भी यदि आपके कत्ल की साजिश कर रहे हों और अचानक आप पहुंच जाएं तो देखकर कहेंगे- अरे, क्या बात है.. हम आपकी लंबी उम्र की दुआ ही कर रहे थे। किस पर भरोसा करें, कैसे पहचानें कौन अपना, कौन पराया। गैर से वफा की उम्मीद बेकार है, लेकिन उलझन जब अपनों में ही हो जाए तब क्या करें? महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने अर्जुन के गाण्डीव (धनुष) पर विपरीत टिप्पणी कर दी थी। अर्जुन की प्रतिज्ञा थी जो मेरे गाण्डीव को अपशब्द कहेगा, मैं उसका वध कर दूंगा। तो बड़े भाई को मारने को तैयार हो गए। कृष्ण वहीं थे।
उन्होंने समाधान जुटाया। बोले- अर्जुन, तुम अपने बड़े भाई को 'तू' संबोधन से बोल दो। बड़े को तू कहना भी उसके वध जैसा होता है। वैसे तो अर्जुन को एक ही बार तू बोलना था, लेकिन कुछ पुराना याद आ गया और ग्यारह बार बोल गया। फिर एकदम से तलवार निकाल ली खुद को मारने के लिए, क्योंकि बड़े भाई को तू कहा था। तब श्रीकृष्ण बोले- हमारे शास्त्रों में हर समस्या का समाधान है।
'ब्रवीहि वाचाद्य गुणा निहात्मन स्तथा इतात्मा भवितासि पार्थ'। अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना अपने वध जैसा काम हो जाता है। ये दो त्वरित समाधान कृष्ण ने अपनों के बीच उलझन होने पर सुझाए थे। तो जब भी ऐसी स्थिति बने, ईश्वर को बीच में रखें। परमात्मा की उपस्थिति ही कई समस्याओं का समाधान बन जाती है।
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