कपिल सिब्बल के जन्मदिन पर दी गई डिनर पार्टी असल में गांधी परिवार को घेरने की एक चाल थी?

कहते हैं कि जब भीम खाते थे तो शकुनि के पेट में दर्द होता था

Update: 2021-08-10 06:50 GMT

अजय झा।

कहते हैं कि जब भीम खाते थे तो शकुनि के पेट में दर्द होता था. इस कथन में कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं लेकिन यह सच से परे नहीं है कि जब कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के और 17 विपक्षी दलों के 45 नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के निमंत्रण पर सोमवार को रात के डिनर पर एकत्रित हुए तो कांग्रेस आलाकमान के कई नेताओं के पेट में दर्द शुरू हो गया. होना लाजिमी भी था. अगर सिब्बल को सिर्फ अपना जन्मदिन ही मनाना था तो फिर वहां विपक्षी नेताओं की क्या ज़रूरत थी? आलाकमान को शक है कि जन्मदिन की पार्टी के नाम पर यह सिब्बल और कांग्रेस के G-23 के नेतावों द्वारा राहुल गांधी जैसे पार्टी के 'बड़े नेता' के कद को छोटा करने की एक कवायद थी.


बता दें कि सिब्बल रविवार 8 अगस्त को 73 साल के हो गए. अभी हाल ही में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने विपक्षी नेताओं को नाश्ते पर आमंत्रित किया था जिसमें 15 विपक्षी दलों के नेता आये थे. राहुल गांधी की ब्रेकफास्ट मीटिंग उन्हें विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित करने की एक कोशिश के रूप में देखी गयी थी और वह पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को एक सांकेतिक सन्देश था कि 2024 आम चुनाव के मद्देनजर अगर विपक्षी एकता सफल रही तो उसके नेता राहुल गांधी होंगे, ना कि ममता बनर्जी.
जहां राहुल गांधी ने ब्रेकफास्ट आयोजित करके ममता बनर्जी को कमजोर करने की कोशिश की तो वहीं अब कपिल सिब्बल की कल रात की डिनर मीटिंग राहुल गांधी को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है, खास कर कांग्रेस आलाकमान द्वारा, जिनका मानना है कि जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में लगे हुए थे तो फिर इस डिनर का कोई औचित्य नहीं था.

कपिल सिब्बल की पार्टी में पहुंचे बड़े-बड़े दिग्गज
जिस बात से कांग्रेस आलाकमान को पेट में सबसे ज्यादा दर्द हुआ, वह था कि कई ऐसे दल और नेता सिब्बल के घर डिनर पर पधारे जो राहुल गांधी की मीटिंग में शामिल नहीं हुए थे. राहुल गांधी की मीटिंग से विपक्षी दलों के बड़े नेता दूर रहे थे और उन्होंने अपने दल से ऐसे नेताओं को भेजा था जिनका उनके दलों में निर्णायक की कोई भूमिका नहीं होती है. पर सिब्बल के डिनर पार्टी में एनसीपी के शरद पवार, आरजेडी के लालू प्रसाद यादव, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, सीपीएम के सीताराम येचूरी, सीपीआई के डी. राजा, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला शामिल थे, जो राहुल गांधी के नाश्ते से दूर रहे थे. यही नहीं, आम आदमी पार्टी ने राहुल गांधी के आमंत्रण को ठुकरा दिया था पर सिब्बल की डिनर पर आप नेता संजय सिंह भी मौजूद थे. G-23 के कई दिग्गज नेता जैसे कि गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, मनीष तिवारी सरीखे नेता शामिल थे.

G-23 पहले से गांधी परिवार के खिलाफ बजा चुका है बिगुल
कांग्रेस पार्टी में 23 नेताओं ने पिछले वर्ष अगस्त के महीने में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें पार्टी में अंदरूनी चुनाव कराने की मांग की गयी थी. पत्र में यह भी लिखा गया था कि बीजेपी से लोहा लेने के लिए पार्टी में ऐसे चुने हुए फुलटाइम नेताओं की जरूरत है जो सक्रिय हों और जनता के बीच दिखें भी. इसे गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह माना गया था, क्योंकि सोनिया गांधी बगैर चुनाव के सितम्बर 2019 से कांग्रेस पार्टी की आतंरिक अध्यक्ष हैं और अपनी ख़राब तबियत के कारण वह सक्रिय नहीं रह पाती हैं. जनता के बीच जाना उन्होंने ज़माने पहले छोड़ दिया था, और राहुल गांधी पर आरोप लगता रहा है की वह सिर्फ चुनावों के समय ही सक्रिय दिखते हैं.

पिछले एक साल का लेखा जोखा है कि गुलाम नबी आजाद को पहले कांग्रेस महासचिव पद से और बाद में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से आजाद कर दिया गया, अब वह राज्यसभा के सदस्य भी नहीं रहे क्योंकि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया. जितिन प्रसाद हताश हो कर कांग्रेस को अलविदा कहते हुए बीजेपी में शामिल चुके हैं, बाकी अन्य G-23 नेताओं को पार्टी से दरकिनार कर दिया गया है और पार्टी पिछले दिनों हुए पांच राज्यों की चुनाव में बुरी तरह पराजित हुई. एक साल पहले पार्टी ने यथाशीघ्र अंदरूनी चुनाव कराने की बात कही थी, कोरोना की दूसरी लहर आ कर चली भी गयी पर चुनाव कराने की प्रक्रिया की अभी शुरुआत भी नहीं हुई है.

G-23 अपने बलबूते पर खड़ा कर सकता है विपक्षी एकता का एक मंच?
सिब्बल के घर डिनर पार्टी उस समय आयोजित की गई जब खबर आई थी कि अगले महीने सोनिया गांधी अपने इलाज के लिए अमेरिका जाने से पहले पार्टी में एक कार्यकारी अध्यक्ष को नियुक्त करेंगी. आम तौर पर जब भी सोनिया गांधी इलाज के लिए अमेरिका जाती हैं तो साथ में राहुल गांधी भी जाते हैं और पार्टी उनके लौटने तक अनाथ हो जाती है. लगता तो नहीं है कि कांग्रेस पार्टी अभी चुनाव कराने के मूड में हैं, क्योंकि चुनाव से गांधी परिवार को खतरा हो सकता है, खासकर अगर कोई गैर-गांधी पार्टी अध्यक्ष बन गया तो.

राहुल गांधी का बिना पद के पार्टी चलाना और उनका दबदबा खतरे में पड़ सकता है. इसलिए लगता है कि आलाकमान ने चुनाव टालने के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष को नियुक्त करने का फैसला लिया है. ख़बरों के अनुसार पांच नामों पर चर्चा चल रही है जिसमें से सबसे ऊपर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमालनाथ का नाम है. उन पांच नामों में गुलाम नबी आजाद का नाम भी बताया गया पर कार्यकारी अध्यक्ष अगर कोई बना तो वह कमलनाथ ही होंगे, क्योंकि उनसे गांधी परिवार को कोई प्रत्यक्ष खतरा नहीं दिख रहा है. आजाद का नाम उस सूची में G-23 के नेताओं को भ्रमित करने के लिए शामिल किया गया था. और G-23 ने सोमवार को सिब्बल के डिनर पार्टी में साबित कर दिया कि अगर गांधी परिवार ना हो तो एक व्यापक विपक्षी एकता संभव है.

ऐसा लगता है कि सोमवार रात को G-23 ने युद्ध का बिगुल बजा दिया है, जिसकी आवाज़ सीधे 10 जनपथ और 12 तुग़लक लेन, जहां क्रमशः सोनिया गांधी और राहुल गांधी रहते हैं, पहुंच गयी. देखना दिलचस्प होगा कि सिब्बल की डिनर मीटिंग का जवाब कांग्रेस आलाकमान किस तरह देगी, पर इतना तय है कि आने वाला समय काफी रोमांचक रहने वाला है.
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