UP Assembly Election: गढ़मुक्तेश्वर में गज़ब गेम! BJP, SP ने लगाई जीत की हैट्रिक, क्या अब BSP का खुलेगा खाता?
गढ़मुक्तेश्वर में गज़ब गेम! BJP, SP ने लगाई जीत की हैट्रिक
पंकज त्रिपाठी हापुड़ के आखिरी छोर पर बसे गढ़ मुक्तेश्वर के एक बड़े हिस्से पर पानी का प्रकोप रहता है. हर साल बाढ़ में कई गांवों की फसलें डूब जाती हैं. लेकिन, खादर कहलाने वाले इस क्षेत्र में सियासी फसल खूब लहलहाती है. हालांकि, पिछले बीस साल में पहली बार गढ़ मुक्तेश्वर का सियासी गढ़ बचाने, बरकरार रखने और वापस पाने के लिए जो राजनीतिक दांव पेच नज़र आ रहा है, वो बहुत दिलचस्प है. यूपी में विधानसभा नंबर 60 कहलाने वाली गढ़मुक्तेश्वर सीट पर गज़ब का गणित चल रहा है. BJP के सामने यहां अपनी सीट को एक बार फिर बचाने की चुनौती है, क्योंकि वो 2002 से लेकर 2012 तक लगातार 3 बार समाजवादी पार्टी के नेता मदन चौहान के हाथों हार रही थी.
पिछले चुनाव में मोदी लहर ने गढ़ मुक्तेश्वर पर BJP को 15 साल बाद फिर स्थापित कर दिया था. लेकिन, समाजवादी पार्टी के एक दांव ने यहां भारी उथल-पुथल मचा दी है. दरअसल, समाजवादी पार्टी ने अपने 3 बार के विधायक और 2012 में राज्य मंत्री रहे मदन चौहान का टिकट काट दिया. समाजवादी पार्टी के लिए लगातार 3 बार सेफ़ सीट बन चुकी गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा में पार्टी ने इस बार एक प्रयोग किया. मदन चौहान का टिकट काटकर मेरठ के पूर्व सांसद हरीश पाल तोमर के बेटे नीरज पाल को टिकट देने का फ़ैसला किया. बाद में कुछ विवादों की वजह से उनकी पत्नी नैना देवी का टिकट फ़ाइनल कर दिया.
15 साल बाद सपा से BJP को मिली सीट
हैरान करने वाली बात ये है कि जिस वक़्त नैना देवी गढ़ में अपना चुनाव प्रचार कर रही थीं, उसी वक़्त रविंदर चौधरी को सिंबल देकर पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया. रविंदर चौधरी गुर्जर समाज से आते हैं और गुर्जरों वोटबैंक क़रीब 25,000 से ज़्यादा है. उधर, BJP ने भी अपने विधायक का टिकट दिया. BJP ने जिस सिटिंग विधायक कमल सिंह मलिक का टिकट काटा है, उसने 15 साल बाद समाजवादी पार्टी से छीनकर वो सीट जिताई थी. कमल मलिक को 2017 में 91,086 वोट मिले थे. दरअसल, गढ़ मुक्तेश्वर सीट पर सबसे ज़्यादा समय तक विधायक रहने वाले मदन चौहान की वजह से समाजवादी पार्टी, BJP और BSP तीनों ने अपना चुनावी गणित बदलना पड़ा.
SP ने 2 प्रत्याशी बदले, BJP ने भी काटा अपने MLA का टिकट
मदन चौहान का टिकट समाजवादी पार्टी ने जिन अंदरूनी वजह से काटा, उसने BJP को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया. क्योंकि, BJP को लग रहा था कि मदन चौहान से तीन-तीन बार लगातार हारने के बाद एक बार फिर सामना उन्हीं से होगा. लेकिन, समाजवादी पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिसके बाद बहुजन समाज पार्टी ने बड़ा दांव खेलते हुए मदन चौहान को अपना सिंबल दे दिया.
ऐसा इसलिए, हुआ क्योंकि 2017 में BSP गढ़ मुक्तेश्वर में दूसरे नंबर पर थी. लेकिन, बसपा ने पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रशांत चौधरी (55,792 वोट-2017) के बजाय मदन चौहान पर दांव लगाया. BSP के इस दांव के बाद BJP को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. उसने कथित तौर पर कुछ शिकायतें मिलने के बाद अपने विधायक कमल मलिक का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते हरेंद्र सिंह तेवतिया को टिकट दे दिया. BJP का गणित ये है कि वो तेवतिया के चेहरे पर अगर जाटों के 32,000 वोटों के साथ त्यागी, ब्राह्मण, पंजाबी और गुर्जरों के वोट हासिल कर लेती है, तो उसकी जीत की राह आसान हो सकती है.
वहीं, समाजवादी पार्टी ने गुर्जर चेहरे पर दांव लगाया है. वो रविंदर गुर्जर के दम पर गुर्जर, ठाकुर, मुस्लिम और यादवों के वोट हासिल करके एक बार फिर इस सीट को वापस पाने की कोशिश कर रही है. जबकि बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के तीन बार के विधायक रह चुके मदन चौहान को टिकट देकर बड़ा दांव चला है.
BSP के 'J + M' वाले गेम से बिगड़ेगा BJP का 'खेला'?
1991 और 1993 में BJP के कृष्णवीर सिरोही यहां से जीते, तो 1996 में उनकी पार्टी के रामनरेश रावत ने BJP की जीत को हैट्रिक विक्ट्री में तब्दील कर दिया था. लेकिन, उसके बाद 2002, 2007 और 2017 में समाजवादी पार्टी के मदन चौहान ने विजयी हैट्रिक लगाकर हिसाब बराबर कर दिया. अब पहली बार मदन चौहान के दम पर BSP इस सीट पर पहली जीत की कोशिश में जुटी है. दूसरी तरफ़, BJP अपना विधायक बदलकर और जाट नेता हरेंद्र तेवतिया पर दांव लगाकर इस सीट को एक बार फिर अपने ही पास रखने की क़वायद कर रही है. इन सबके बीच समाजवादी पार्टी अपने गुर्जर प्रत्याशी रविंदर चौधरी के नाम पर अपने मज़बूत गढ़ (गढ़मुक्तेश्वर) को वापस पाने की जुगत लगा रही है.
गढ़ मुक्तेश्वर सीट पर जाटव का वोटबैंक क़रीब 46,000 से ज़्यादा है. इसके अलावा अन्य पिछड़ी और अनुसूचित जातियों के क़रीब 34 हज़ार वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसी के साथ BSP को उम्मीद है कि मदन चौहान के नाम पर ठाकुर वोटों में भी सेंध लगेगी. यानी 36,000 ठाकुर वोट में अगर आधे वोट भी तोड़ पाने में कामयाबी मिल गई, तो पहली बार यहां BSP अपना परचम लहरा सकेगी.
गढ़ मुक्तेश्वर का वोट गणित
मुस्लिम- 88,000 जाटव- 46,000 ठाकुर- 36,000 जाट- 32,000 गुर्जर- 25,000 त्यागी- 12,500 ब्राह्मण- 13,000 यादव- 7,000 कुम्हार- 7,000 मल्लाह- 7,000 वाल्मीकि- 7,000 लोध- 7,000 सैनी- 6,000 पंजाबी- 6,000
गढ़ का वोट गणित क्या कहता है?
गढ़ मुक्तेश्वर में क़रीब 3 लाख वोटर्स में जिन तीन वोटबैंक पर तीनों दलों का दांव लगता है, वो हैं मुस्लिम, जाटव और जाट-गुर्जर. इनमें से मुस्लिम वोटबैंक को समाजवादी पार्टी अपने खाते में मान रही है, लेकिन BSP उम्मीदवार मदन चौहान का दावा है कि पंद्रह साल तक मुस्लिम क्षेत्रों में नुमाइंदगी की है, इसलिए उस वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाब होंगे. अगर ऐसा हुआ, तो जाटव वोटों के साथ मुस्लिम वोटों की जुगलबंदी जीत की राह आसान बना सकती है. वहीं, दूसरी तरफ़ BJP की कोशिश है कि हिंदू वोटबैंक से जुड़े हर वर्ग का विश्वास हासिल किया जा सके.
क्योंकि, अब तक का चुनावी गणित बताता है कि जाटव वोटबैंक जब से BSP की तरफ़ मुड़ा है, तब से उसने दूसरे दलों का रुख़ नहीं किया. पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद पार्टी दूसरे नंबर पर आ गई थी. ऐसे में इस बार BSP और BJP दोनों में कड़ा मुक़ाबला नज़र आ रहा है. BJP यहां से पांचवीं बार जीतकर इतिहास रचने की तैयारी कर रही है, तो वहीं मदन चौहान पहली बार इस सीट को बहुजन समाज पार्टी के खाते में डालने की कोशिश करेंगे. ऐसा करके वो एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं. पहला ये कि वो क्षेत्र में अपना राजनीतिक रसूख और वजूद दोनों साबित कर पाएं और दूसरे ये कि समाजवादी पार्टी के वोटबैंक में सेंध लगाकर ये संदेश देना कि उन्हें हटाकर गढ़मुक्तेश्वर को SP का गढ़ बनाए रखना बड़ी चुनौती है.