परिवार की आमदनी बढ़ी पर गैर उपभोक्ता खरीददारी को दूर से सलाम क्यों?

परिवार की आमदनी बढ़ी

Update: 2021-11-06 17:23 GMT

कोरोना महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देशवासियों की जिंदगी भी पटरी पर लौट रही है. सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार उपभोक्ता धारणा सूचकांक अक्टूबर में 2.1 फीसद अधिक रहा. सूचकांक में तेजी लगातार चौथे महीने दर्ज की गई. यह तेजी जुलाई 2021 से बनी हुई है. वहीं अगर जून 2021 के स्तर से देखें तो यह सूचकांक 24.5 फ़ीसदी तक ऊपर उठा था.


अक्टूबर 2021 में 9.7 फीसद परिवारों का मानना है कि उनकी आय 1 वर्ष पहले की तुलना में इस वर्ष अधिक रही है. जबकि अक्टूबर 2020 में केवल 5.4 फ़ीसदी परिवारों ने ही कहा था कि उनकी आय 1 वर्ष पहले की तुलना में बढ़ी है. हालांकि इसके बावजूद भी लोग फिलहाल गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने में सतर्कता दिखा रहे हैं. अक्टूबर 2021 में महज 4.8 फ़ीसदी परिवारों ने माना कि 1 वर्ष पहले की तुलना में उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने का यह बेहतर समय है. जबकि साल 2020 की दीपावली से 1 सप्ताह पहले 7 फीसदी परिवारों ने कहा था कि 2019 की तुलना में गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने का यह सही समय है.


कंज्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स महामारी के पूर्व के स्तर की तुलना में अभी भी कम
कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार बीते 4 महीनों से भले ही उपभोक्ता धारणा सूचकांक में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है, लेकिन अभी भी उपभोक्ता धारणा सूचकांक कोरोनावायरस के पहले की स्तर की तुलना में काफी कम है. दरअसल महामारी से ठीक पहले फरवरी 2020 में कंज्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स 105.3 के स्तर पर था. जबकि अप्रैल 2020 में यह कम होकर 45.7 के स्तर पर पहुंच गया. लगातार चार महीने की तेजी के बाद भी अक्टूबर 2021 में यह सूचकांक 59.4 के स्तर पर है जो महामारी के पहले के स्तर की तुलना में लगभग 44 फ़ीसदी कम है.

परिवारों की आय बढ़ रही है लेकिन खर्च में सतर्कता है
कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब धीरे-धीरे भारतीय परिवारों की आय बढ़ रही है. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक खबर के अनुसार, अक्टूबर 2021 में 9.7 फ़ीसदी परिवारों ने माना कि उनकी आय 1 वर्ष पहले की तुलना में अधिक हुई है. हालांकि अगर अक्टूबर 2019 के आंकड़े से इसकी तुलना करें तो अक्टूबर 2019 में 31.9 फ़ीसदी परिवारों ने माना था कि 1 वर्ष पहले की तुलना में उनकी आय में वृद्धि हुई थी.

वहीं अगर आय में कमी की बात करें तो अक्टूबर 2021 में 40 फ़ीसदी परिवारों ने माना है कि 1 वर्ष पहले की तुलना में उनकी आय में कमी आई है. जबकि कोरोना से पहले 10 फ़ीसदी परिवारों ने अपनी आय में कमी की बात मानी थी. हालांकि इन सबके बीच जो सवाल परेशान करने वाला है, वह यह है कि इन परिवारों की आय बढ़ने के बावजूद भी लोग गैर जरूरी वस्तुओं पर खर्च करने से बच रहे हैं. जाहिर सी बात है भारतीय अर्थव्यवस्था ऊपर की ओर तभी बढ़ेगी जब मार्केट में ग्राहक खरीदारी करेगा. क्योंकि गैर जरूरी वस्तुओं पर उपभोक्ताओं का खर्च की अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर में बदलाव लाता है.

इसे आप ऐसे भी देख सकते हैं कि अक्टूबर 2021 में महज 4.8 फ़ीसदी परिवारों ने ही कहा कि 1 वर्ष पहले की तुलना में गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने का यह बेहतर समय है. जबकि अक्टूबर के पहले सप्ताह में 4.8 फ़ीसदी से सुधर कर यह अनुपात तीसरे सप्ताह में 5.8 फ़ीसदी हो गया और अंतिम सप्ताह तक यह कम होकर 5.1 फ़ीसदी रह गया. दीपावली जैसे त्यौहार के दौरान भी उपभोक्ताओं में गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने की इच्छा बिल्कुल कम दिखी.

गैर जरूरी सामान नहीं खरीदना चाहते लोग
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के अनुसार ज्यादातर परिवारों का मानना है कि गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए यह समय 1 वर्ष पहले के समय से भी खराब है. 2020 की दीपावली से 1 सप्ताह पहले जहां 7 फीसद परिवारों ने कहा था कि 2019 की तुलना में गैर उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने का यह सही समय है. वहीं 2021 की दीपावली से 1 सप्ताह पहले महज 5 फ़ीसदी परिवारों ने कहा कि 2020 के मुकाबले गैर जरूरी वस्तुएं खरीदने का यह सही समय है.

त्यौहारों में भी गैर जरूरी चीजों की बिक्री कम रही
दीपावली और धनतेरस के दौरान जहां एक तरफ ग्राहकों ने जरूरी सामानों की जमकर खरीदारी की, वहीं गैर जरूरी सामानों में उन्होंने सतर्कता दिखाई है. खासतौर से ऑटोमोबाइल सेक्टर की बात करें तो इस सेक्टर के लिए दीपावली फीकी रही. क्योंकि फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन की मानें तो देश में वाहन बिक्री के लिए यह त्योहारी सीजन पिछले 10 सालों में सबसे खराब रहा. दरअसल इस वक्त महंगाई अपने चरम पर है. ग्राहक महंगी चीजों पर इसलिए ज्यादा पैसे नहीं खर्च करना चाहते क्योंकि वह अपनी चिकित्सकीय जरूरतों और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पैसा बचा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में खराब आर्थिक स्थिति और लगातार पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों की वजह से भी लोग गाड़ियां खरीदने से पहले विचार कर रहे हैं.


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