बढ़ती महंगाई और ऊंची ब्याज दरों ने भारतीय परिवारों को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने 137 दिनों के लंबे अंतराल के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा करना शुरू किया
सरबजीत के. सेन
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (OMC) ने 137 दिनों के लंबे अंतराल के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा करना शुरू किया है. लगातार पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में 80 पैसे की बढ़ोतरी (Petrol-Diesel Price Hike) की गई. जबकि खुदरा ईंधन की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि की गई है. कुछ दिनों पहले थोक खरीदारों के लिए डीजल की कीमत में 25 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करना एक जोरदार झटका था. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल (Crude Oil Prices) की कीमतों में इतनी जल्दी कमी आने की संभावना नहीं है. थोक और खुदरा खरीदारों के लिए संशोधित कीमतें इस बात का संकेत है कि आगे क्या हो सकता है. सीधे शब्दों में कहें तो आप बढ़ती महंगाई के दबाव से नहीं बच सकते.
पूरी दुनिया में बढ़ती महंगाई का दौर है. अमेरिका में पिछले एक साल में महंगाई काफी तेजी से बढ़ी है. वहां महंगाई की दर 12 महीने पहले की तुलना में बढ़कर 7.5 फीसदी पर पहुंच गई है. यह अमेरिका में महंगाई का पिछले 40 सालों का सबसे ऊंचा स्तर है. केंद्रीय बैंक यूएस फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) को कड़े फैसले लेने पड़ रहे हैं. उसने महंगाई बढ़ने की आशंका जताई है. अमेरिकी मौद्रिक प्राधिकरण ने 2018 के बाद पहली बार ब्याज दरों में वृद्धि करते हुए संकेत दिया है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए इस साल इसमें और अधिक बढ़ोतरी हो सकती है.
जेब पर भारी पड़ेगी महंगाई की मार
भारत भी लगातार महंगाई की मार झेल रहा है. फरवरी 2022 में देश में महंगाई दर करीब 6 फीसदी रही. कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बार महंगाई की मार लंबे समय तक जेब पर भारी पड़ने वाली है और जो आने वाले कुछ समय तक भारतीय परिवारों को परेशान करती रहेगी. निरंतर उच्च महंगाई दर की वर्तमान वास्तविकता का सामना करने के लिए अब भारतीयों को थोड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में उन्हें कम मुद्रास्फीति से बहुत लाभ हुआ है, जो कि कमोडिटी बाजार में आई गिरावट, विशेष रूप से कच्चे तेल की वजह से था. इस अवधि के दौरान उपभोक्ताओं ने कमोबेश कीमतों में स्थिरता देखी.
लेकिन अब स्थिति बदल गई है, क्योंकि कमोडिटी की कीमतों में नरमी अब अतीत की बात हो गई है और आगे भी कुछ समय तक ऐसे ही रहने की संभावना है. सप्लाई चेन में आए ढांचागत व्यवधानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आपूर्ति से जुड़े मुद्दे अस्थायी नहीं हैं और यदि यूक्रेन-रूस संकट लंबे समय तक बरक़रार रहता है और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण तेल की आपूर्ति को बाधित करना जारी रखता है तो स्थिति खराब होने की संभावना है.
भारत कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातकों में से एक है और इस वजह से कई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इसके अधिक प्रभावित होने की संभावना है. पिछले दो वर्षों में, कोविड -19 के कारण सप्लाई चेन में बाधा के कारण इनपुट की कीमतें पहले ही अधिक हो गई हैं. भू-राजनीतिक स्थिति का मिलाजुला प्रभाव और चीन व यूरोप के कुछ देशों में कोविड-19 के मामले फिर से बढ़ने का मतलब लंबी अवधि के लिए स्ट्रक्चरल महंगाई हो सकता है.
घट जाएगी लोगों की क्रय शक्ति
भारतीय परिवारों के लिए लगातार महंगाई का मतलब है क्रय शक्ति कम होना. हालांकि सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को फिर से खड़ा करने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन हास्पिटैलिटी, एंटरटेनमेंट और विवेकाधीन खपत जैसे कई क्षेत्रों में कोविड-19 के दो साल के कारण हुए नुकसान की भरपाई करना बाकी है. इनपुट कॉस्ट बढ़ने की वजह से पिछले छह से नौ महीनों के दौरान कई कंपनियों ने रोजमर्रा के सामानों की कीमतों में बढ़ोतरी की घोषणा की है. इस बात की बहुत कम संभावना है कि इन कीमतों में बढ़ोतरी को फिर से कम कर दिया जाएगा. सीधे शब्दों में कहें, तो एक औसत परिवार को यह ध्यान में रखना होगा कि महंगाई एक ऐसी गंभीर समस्या होगी जिससे निपटना होगा.
ब्याज दरें वास्तविक महंगाई से कम हैं
हालांकि ऐसी चर्चा है कि यूएस फेड (US Fed) का अनुसरण करते हुए आरबीआई (RBI) भी ब्याज दरें बढ़ा सकता है. अगर भारत का केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि करते हुए मुद्रास्फीति को पीछे छोड़ देता है, तो वास्तविक ब्याज दरें लंबी अवधि के लिए नकारात्मक बनी रहेंगी. वास्तविक ब्याज दरों की गणना मामूली ब्याज दर से महंगाई दर को घटाकर की जाती है. यह अर्थव्यवस्था में बचतकर्ताओं के लिए कच्चा सौदा है. इसलिए, आप जो पैसा बैंकों या फिक्स्ड-इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में जमा करते हैं, उससे आपको कम रिटर्न मिलेगा, जो कि महंगाई के मुंह में समा रहा है.
कर्जदार रहें सावधान
यदि आरबीआई (RBI) ब्याज दरें बढ़ाता है तो जमाकर्ताओं को बैंकों के पास जमा पैसे पर अर्जित ब्याज की उच्च दर से लाभ हो सकता है, और जिन्होंने ऋण लिया है, उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. जैसे-जैसे दरें सिस्टम में बढ़ती जाएंगी, आपके फ्लोटिंग रेट लोन (floating rate loan) नई ऊंची दरों पर रीसेट होते जाएंगे जिसका मतलब होगा अधिक ईएमआई (EMI) और आपके बजट में सेंध. यदि आपके पास बकाया ऋण है तो आपको आने वाले महीनों में अधिक मासिक भुगतान करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए.
क्या यह अनिश्चितताओं से भरा समय है?
यदि महंगाई बरक़रार रहती है और उच्चतम स्तर पर बनी रही तो भारतीय परिवारों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. दुर्भाग्य से, महंगाई पर काबू पाने के लिए नीति निर्माताओं के पास बहुत कम विकल्प बचा है. लंबे समय से ब्याज दरों का कम रहना और सिस्टम में हाई लिक्विडिटी इसका बड़ा कारण है. यदि आप जोखिम लेने से गुरेज नहीं करते हैं, तो यह यह समय आपके निवेश पोर्टफोलियो के बीच इक्विटी जैसी जोखिम भरी संपत्तियों के लिए अधिक मात्रा में धन आवंटित करने का हो सकता है जो महंगाई को मात देने में मदद कर सकता है.
हालांकि, इसके अच्छे और बुरे दोनों नतीजे हो सकते हैं क्योंकि बढ़ती महंगाई दर और बढ़ती ब्याज दरों का स्टॉक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इक्विटी में निवेश की गई राशि और चुने गए शेयरों की गुणवत्ता को लेकर सतर्क रहें. साथ ही, स्टॉक के अलावा गोल्ड, रियल एस्टेट और लैंड जैसी स्थायी संपत्ति भी मीडियम से लॉन्ग टर्म में महंगाई की तुलना में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. निवेशकों को इसके लिए धन आवंटित करते समय जोखिम लेने की क्षमता और अपने वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखना होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)