Vijay Garg: आज के डिजिटल युग में इंटरनेट तक महिलाओं की पहुंच में सुधार सिर्फ उनकी व्यक्तिगत सशक्तीकरण के लिए नहीं, बल्कि यह समग्र सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी आवश्यक है। डिजिटल प्रौद्योगिकी महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और वित्तीय स्वतंत्रता के नए अवसर प्रदान कर सकती है, जो समाज में लैंगिक असमानता को कम करने में मदद करती है। हालांकि, भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से डिजिटल पहुंच बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इन प्रयासों में महिलाओं की कमजोरियों और सुरक्षा संबंधित समस्याओं का भी समाधान किया जाए। भारत में 'डिजिटल डिवाइड', विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के संदर्भ में, एक प्रमुख समस्या बनकर उभरी है। 'ग्लोबल सिस्टम फार मोबाइल कम्युनिकेशंस एसोसिएशन' और 'आक्सफैम ' के 2022 और 2023 के आंकड़ों के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच सुधार की आवश्यकता है। मसलन, 2022 में मोबाइल स्वामित्व में लैंगिक अंतर में 11 फीसद की कमी आई है, लेकिन मोबाइल इंटरनेट उपयोग में महिलाओं का हिस्सा 130 1 फीसद पर स्थिर है, जिससे लैंगिक अंतर 40 फीसद तक बढ़ गया है। इसके अलावा, महिलाओं में मोबाइल इंटरनेट जागरूकता 60 फीसद से भी कम है। यह दर्शाता है कि महिलाओं को डिजिटल दुनिया पूरी तरह से समाहित करने के लिए अभी भी बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं।
'महिलाओं के लिए डिजिटल': जुड़ाव की चुनौतियां सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ी हैं। महिलाओं को साइबर दुर्व्यवहार, आनलाइन उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे सोशल मीडिया मंचों का उपयोग करती हैं। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा को बल्कि उनके डिजिटल जुड़ाव को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। भारत में इंटरनेट, मोबाइल फोन की पहुंच और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच में सुधार महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि इन इन सुधारों को लैंगिक समानता की दृष्टि से लागू किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों के बीच इंटरनेट उपयोग में गहरा अंतर है, जहां पुरुषों द्वारा इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना महिलाओं की तुलना में दोगुनी है। नतीजतन, महिलाओं के लिए डिजिटल अवसरों तक पहुंच में बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जिससे उनके आर्थिक अवसरों में समझौता होता है। | डिजिटल साक्षरता की कमी और मोबाइल इंटरनेट उपयोग की जटिलताएं इस अंतर को और बढ़ा देती हैं। भारत सरकार द्वारा शुरू की की गई 'डिजिटल इंडिया' पहल ने डिजिटल पहुंच को बढ़ाने का महत्वपूर्ण किया है, लेकिन इस पहल में महिला केंद्रित मुद्दों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। गुरुमूर्ति और चामी (2018) के अनुसार, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के दस्तावेज में कोई स्पष्ट लिंग-विभाजित प्रशिक्षण लक्ष्यों का उल्लेख नहीं किया गया, जिससे महिलाओं को डिजिटल दुनिया में समावेशी रूप से शामिल करने में असमर्थता व्यक्त होती है। इसके अलावा, यह पहल यह पहचानने में भी विफल है कि महिलाओं द्वारा इंटरनेट उपयोग की दर में वृद्धि के लिए डिजिटल साक्षरता और कौशल के अवसरों की आवश्यकता है।
डिजिटल प्रौद्योगिकियों का समावेशी विकास समाज में सभी वर्गों को आर्थिक मौके, शिक्षा और गतिशीलता संबंधी बाधाओं को पार करने का अवसर प्रदान कर सकता है। डिजिटल तकनीकें नई नौकरियां पैदा कर, डिजिटल वित्तीय सेवाओं तक पहुंच को सुगम बना और डिजिटल व्यवसायों के विकास को प्रोत्साहित कर सकती हैं। इसके अलावा, डिजिटल प्रौद्योगिकी से सार्वजनिक सेवा वितरण को बेहतर बनाने और नागरिकों की अधिक सहभागिता को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है।
भारत में इंटरनेट उपयोग तेजी से बढ़ा है, लेकिन इस प्रगति के बावजूद, डिजिटल विभाजन अभी भी एक बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार भारत में केवल 33 फीसद महिलाओं ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया है, जबकि 57 फीसद पुरुषों ने इसका उपयोग किया है। स्मार्टफोन के आंकड़े इस असमानता को और स्पष्ट करते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, ग्रामीण भारत में केवल 26 फीसद महिलाओं के पास स्मार्टफोन है, जबकि 49 फीसद पुरुष स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में असमानता और गहरी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत पुरुषों द्वारा इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना महिलाओं की तुलना में ल लगभग दोगुनी है। पूरे भार भारत में ऐसा कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में का अधिक उपयोग किया हो। महिलाओं की डिजिटल कनेक्टिविटी का सीधा असर उनके वित्तीय सशक्तीकरण पर भी पड़ता है। 'डिजिटल बैंकिंग' और 'मोबाइल मनी ट्रांजेक्शन' ने महिलाओं के लिए वित्तीय लेन- देन को अधिक सुविधाजनक और लचीला बना दिया है। 'इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया' की 2022 की रपट' अनुसार, डिजिटल साक्षरता और कनेक्टिविटी में सुधार से 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सौ अरब डालर की वृद्धि हो सकती है। इस संभावित वृद्धि का सबसे अधिक लाभ महिलाओं को होगा, क्योंकि डिजिटल मंच उन्हें कौशल विकास, रोजगार और उद्यमशीलता के नए अवसर प्रदान करते हैं। इंटरनेट
डिजिटल कौशल में प्रशिक्षित महिलाओं की संख्या हर साल लगभग 2.5 फीसद की दर से बढ़ रही है। इससे न केवल महिलाएं 'स्टार्टअप्स' में भागीदारी कर रही हैं, बल्कि वे नेतृत्वकारी भूमिका निभाकर तकनीकी नवाचार को भी बढ़ावा दे रही हैं। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत ग्रामीण महिलाओं को डिजिटलीकरण के माध्यम से सशक्त बनाया जा रहा है। इसने उन्हें आनलाइन मंचों पर अपने छोटे व्यवसायों को विस्तार देने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद द की है। । रपटों के मुताबिक जिन महिलाओं के की पहुंच वे लगभग 140 फीसद अधिक आय अर्जित करती हैं। इंटरनेट उपभोग बढ़ाने के प्रयासों में 'डिजिटल डिवाइड' खत्म करना प्राथमिकता होनी चाहिए, इन प्रयासों में महिलाओं और लड़कियों को इंटरनेट से होने वाली परेशानियों पर भी विचार करना चाहिए। भारत सरकार ने अपने 'डिजिटल इंडिया' कार्यक्रम के माध्यम से पूरे भारत में डिजिटल पहुंच और बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के लिए एक स्पष्ट प्रतिबद्धता जताई है, जिसमें गूगल, फेसबुक और अमेजन जैसे उद्योग दिग्गजों द्वारा इस पहुंच में तेजी लाई गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा प्रदान किए गए डेटा इन मुद्दों पर हमारी प्रगति के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं, लेकिन यह भी जांचना महत्त्वपूर्ण है कि अपनाए गए दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक मानदंडों और संरचनाओं को मजबूत नहीं करते, जो असमानताएं बढ़ाते हैं।
'डिजिटल इंडिया' जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य 'डिजिटल डिवाइड' को समाप्त करना है, लेकिन यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि महिलाएं पूरी तरह अवसरों से लाभ उठा सकें। महिलाओं के लिए डिजिटल सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल साक्षरता, साइबर सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा के उपायों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वे इंटरनेट का उपयोग सुरक्षित और सशक्त रूप से कर सकें।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब