सियासी आंकड़े
हाल ही में योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा अठारह ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में समाहित करने संबंधी अधिसूचना को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है।
Written by जनसत्ता: हाल ही में योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा अठारह ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में समाहित करने संबंधी अधिसूचना को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। अदालत ने सरकार के कामकाज पर सख्त टिप्पणी करते हुए संबंधित अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई के लिए कहा है।
उत्तर प्रदेश की अठारह ऐसी जातियां हैं, जिन पर हमेशा राजनीतिक दलों की निगाह टिकी होती हैं। इन जातियों को 2005 में मुलायम सिंह यादव ने, 2016 में अखिलेश यादव और 2019 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ओबीसी वर्ग से हटाकर अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने संबंधित अधिसूचना जारी की थी।
दरअसल यह एक राजनीतिक कलाबाजी अलावा कुछ नहीं है। उत्तर प्रदेश की इन अठारह जातियों में निषाद केवट मल्लाह, राजभर, भर बाथम, नोनिया जातियों की आबादी कुल मिलाकर बारह फीसद है, जिनको सभी राजनीतिक अपने पाले में करना चाहते हैं। इस प्रकरण में सिर्फ बसपा का स्पष्ट मत रहा है कि अगर बिना आरक्षण बढ़ाए बारह आबादी को ओबीसी से अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल किया जाता है तो यह न्यायसंगत नहीं है।
यह अनुसूचित जाति वर्ग के हितों पर कुठाराघात होगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि आरक्षण के बावजूद सार्वजनिक महकमों से लेकर लगभग हर स्तर पर अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी आज भी न्यायसंगत स्तर तक नहीं पहुंच सकी है। ऐसे में किसी तरह मिल सके उनके अधिकारों में ही कटौती की जाने लगेगी या उनका हिस्सा कम किया जाने लगेगा तो इसे कैसे देखा जाएगा?