Vijay Garg: पिछले कुछ समय से काम के घंटे ज्यादा बढ़ाने के मसले पर उठे विवाद में मानवीय और न्यायपूर्ण दृष्टि से कई पहलू सामने आए। किसी के लिए काम के ज्यादा घंटे मुनाफा बढ़ाने का मसला है तो किसी के लिए जीवन में मानवीयता और मानवाधिकारों का सवाल अहम है। इससे इतर देखें तो घर-परिवार के बुजुर्ग अमूमन बच्चों का आलस्य दूर करने के लिए कहते सुने जाते रहे हैं कि जो जागेगा, सो पाएगा और जो सोएगा, सो खोएगा। किसी ने कभी नहीं कहा कि जीवन आसान है। सभी ने जीवन यात्रा को कठिन बताया है। लेकिन इंसान मेहनत से जरूर जरा आसान बना सकता हैं। दरअसल, जीवन एक अवसर है, एक संभावना है और एक छोटा-सा बीज भी है। बीज में छिपे हैं हजारों फल-फूल, जो प्रकट नहीं होते, अप्रकट रहते हैं । वे गहरी खोज या कड़ी मेहनत से ही हासिल हो पाते हैं । प्राप्त कर लेते हैं, तो जीवन धन्य हो जाता । असल में, योग्यताएं और मुकाम कर्म से पैदा होते हैं, जन्म से तो हर व्यक्ति शून्य होता । समूचे ब्रह्मांड में केवल एक ही वस्तु पर इंसान का नियंत्रण है, और वह है खुद । इसलिए इंसान जो भी चाहे, वह जरूर हासिल कर सकता है । गीतकार शैलेंद्र का लिखा पुराना फिल्मी गीत- 'मेहनतकश इंसान जाग उठा... वो मिट्टी सोना हो जाए, जिसमें हमारा हाथ लगे... राह के पर्वत बह जाएंगे, बहा के देख पसीना...' भी यही संदेश देता है कि पसीना बहाने से ही इंसान अपनी तरक्की और कामयाबी की राह प्रशस्त कर सकता है।
कबीर ने भी इसी बात को जरा अलग नजरिए से अपने एक दोहे में कहा है- 'धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।' इसके मुताबिक, ।
मेहनत के बावजूद फल सब्र करने वालों को अपने तय समय पर ही मिलता है । इसीलिए कहा जाता है कि सब्र कभी मत खोना, छोटी-बड़ी हर कामयाबी वक्त मांगती है। मेहनत और सब्र का कोई 'शार्ट कट' या लघु मार्ग नहीं है। दूसरे शब्दों में, कुछ बनना है, तो वनवास भोगना ही पड़ेगा। घर की सुख- सुविधाओं में कोई राम नहीं बन सकता। कड़ी मेहनत जारी रखें, यही सफलता का असली मंत्र है और जीवन खुद-ब- खुद खुशहाल होता जाएगा। एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि आगे बढ़ने का रास्ता न तो आसान होता है, न ही छोटा और न ही जल्दी खत्म होने वाला होता है। जंगल में हिरण को जागते ही जी-जान से भागना पड़ता है, वरना शेर खा जाएगा।
उधर शेर जागता है, तो सोचता है कि नहीं दौड़ा, तो भूखा मर जाऊंगा। शेर हो या हिरण, भागना दोनों को पड़ता है। तमाम लोगों को जीवित रहने के लिए भागदौड़ और मेहनत करनी पड़ती है। भाग्य भी मेहनत करने वालों का ही साथ निभाता है । इसलिए मेहनत करते-करते अपने को इस कदर व्यस्त कर लेना चाहिए कि अन्य विचार मस्तिष्क में न आ सके ।
'तुम कर सकते हो ।' ये चंद शब्द बोल कर अभिभावक और शिक्षक अमूमन बच्चों में करने का आत्मविश्वास भरते हैं, क्योंकि आत्मविश्वासी होना ही मनचाहा हासिल करने की पहली सीढ़ी है। उल्लेखनीय है कि थामस अल्वा एडिसन अपनी स्कूली पढ़ाई में फिसड्डी थे। एक रोज शिक्षक ने उन्हें पत्र थमाया और कहा कि इसे अपनी मां को दे देना । पत्र पढ़ते-पढ़ते मां की आंखें डबडबा गईं। मां ने नन्हे एडिसन का हौसलाअफजाई करते हुए कहा कि मैडम ने लिखा है कि हमारे स्कूल में आपके बेटे के स्तर के काबिल शिक्षक नहीं हैं । इसलिए बेहतर है कि इसे अब आप स्वयं पढ़ाएं। सुन कर एडिसन भी खुश हुए और घर पर मां से ही पढ़ने-सीखने लगे । सालों बाद वे विख्यात आविष्कारक बन गए। बाद में उनकी मां चल बसीं। एक रोज वे अपनी मां के सामान को सहेज कर रख रहे थे कि वही पत्र उनके हाथ लगा। पत्र पढ़ा, तो उनके आंसू बह गए। दरअसल, उसमें लिखा था कि आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर बहुत कमजोर है, 'इसलिए उसे स्कूल से निकाल दिया गया है । इससे जाहिर होता है कि हर इंसान में हर काम करने की बेशुमार संभावनाएं दबी रहती हैं।
कर्म करने से ही नतीजे तय होते हैं, इसलिए सदा उद्देश्यपूर्ण कार्य करते रहना चाहिए । इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अमेरिका का 'एडवेंचरर' यानी साहसी योद्धा जान गोडार्ड किशोरावस्था में ही अपने सपने और लक्ष्य लिखने लगा । मसलन, एवरेस्ट पर चढ़ना, नील नदी तैर कर पार करना आदि । यों उसने सत्तावन लक्ष्य लिख लिए और उन्हें • हासिल करने में जुट जाता। जब वह साठ साल का हुआ, तो उसने अपने लक्ष्यों का पन्ना खोला और जांच करने लगा कि क्या-क्या छूट गया है। वह अपना दर्ज किया ब्योरा देख कर चौकन्ना रह गया, क्योंकि उसने सत्तावन में से पचपन लक्ष्य पूर्ण कर लिए थे। लक्ष्य तो सभी तय करते हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले गिने-चुने ही होते हैं। जाहिर है, कोई काम अपने आप नहीं बन सकता। उसके साथ आखिरी दम तक जुटे और बने रहना पड़ता है । इसीलिए कहते हैं कि काम से प्यार जरूरी है। स्टीफन हाकिंग की राय में, 'जीवन कितना भी कठिन क्यों न लगे, आप हमेशा कुछ न कुछ कर सकते हैं और उसमें सफल हो सकते हैं।'
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब