नशे के चंगुल से निकलने की चुनौती

Update: 2025-01-28 13:25 GMT
Vijay Garg: मादक पदार्थों से पैदा होती समस्याओं पर कुछ समय पहले आयोजित सम्मेलन इस मायने में अहम रहा कि इसके उन्मूलन और समाधान पर प्रतिबद्धता जताई गई। मादक पदार्थों की तस्करी भारत ही नहीं, दुनिया के सभी देशों के लिए चुनौती है। लगभग सभी देशों में बड़ी संख्या में किशोर और युवा मादक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि वहां मादक पदार्थों के उत्पादन, संग्रहण, वितरण और लेन-देन पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के बाद भी इसका धंधा रुक नहीं रहा है। सवाल है कि ऐसा कैसे, क्यों और किसकी मिलीभगत से हो रहा है? जिन देशों में पारिवारिक इकाइयां अमान्य हो चुकी हैं या हो रही हैं, वहां के युवाओं में मादक पदार्थों का चलन अधिक है। भारत जैसे देश में में जहां अभी भी किशोरों और युवाओं को परिवार और समाज का थोड़ा बहुत भय है. , वहां मादक पदार्थों की तस्करी अन्य देशों की तुलना में कम है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से यहीं देखने में आ रहा है कि जिन राज्यों की सरकारें अयोग्य शासन और अकर्मण्यता से ग्रस्त हैं, वहां मादक पदार्थों की तस्करी खूब फल-फूल रही है।
दुनिया के तमाम गोरखधंधों में मादक पदार्थों की तस्करी सबसे बड़ा धंधा है। इस काले कारोबार को बढ़ाने फैलाने के उद्देश्य से मानव तस्करी और खासकर वेश्यावृत्ति के लिए किशोरियों और युवतियों की तस्करी भी बड़ी संख्या में होती रही है। मादक पदार्थों का सेवन करने वालों की अनियंत्रित और अनैतिक क्षुधा की पूर्ति के लिए अन्य समांतर धंधे भी चलते रहे हैं। संसार में प्रौद्योगिकी विस्तार के परिणामस्वरूप मानवीय दैनिक गतिविधियां जिस गति "से आधुनिक उपकरणों आश्रित हुई हैं, उसी के अनुरूप मादक पदार्थों तथा मानव तस्करी के धंधों में लिप्त गिरोहों ने भी डार्क वेब, क्रिप्टोकरंसी, आनलाइन और ड्रोन आधारित ठगी भी आरंभ दी हैं। नतीजा यह कि इनके व्यापक दुष्प्रभाव से समाज की कोई भी गतिविधि अब सुरक्षित नहीं बची। यहां तक कि अर्थव्यवस्था भी मादक पदार्थों की तस्करी से उत्पन्न अवैध अर्थचक्र से दुष्प्रभावित है।
केंद्र सरकार की सतर्कता के कारण पिछले दस वर्षों में मादक पदार्थ जब्ती में सात गुना वृद्धि हुई है। अकेले 2024 में ही 16,914 करोड़ रुपए के मादक पदार्थ जब्त किए गए हैं। जहां वर्ष 2004 से 2014 की समयावधि में कुल 3.63 लाख किलो मादक पदार्थ जब्त किए गए थे, वहीं 2014 से 2024 तक कुल 24 लाख किलो मादक पदार्थ जब्त हुए जो पिछले दशक | दशक की तुलना में कई गुना अधिक है। इसी प्रकार 2004-2014 1 में जहां 8150 करोड़ रुपए का मादक पदार्थ नष्ट किया गया था, वहीं 2014-2024 के बीच 54,851 करोड़ के मादक पदार्थ नष्ट किए गए, जो पिछले दशक से कई गुना अधिक है। मादक पदार्थ विनष्टीकरण पखवाड़े के दौरान भी 8600 करोड़ रुपए मूल्य का मादक पदार्थ नष्ट किया जाएगा।
कुछ दिन पहले दिल्ली में 560 किलो से अधिक कोकीन तथा चालीस किलो हाइड्रोपोनिक मारिजुआना पकड़ा गया था। इसका अनुमानित मूल्य सात हजार करोड़ से अधिक था। इससे पहले पांच अक्तूबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित एक कारखाने में 1814 करोड़ मूल्य का 907.09 किलो 'मेफेड्रोन' नामक मादक पदार्थ तथा इसे बनाने में प्रयुक्त होने वाली कच्ची सामग्री भी जब्त की गई थी। इन दो कार्रवाइयों में जब्त मादक पदार्थ का कुल मूल्य लगभग आठ हजार करोड़ था। इतनी बड़ी धनराशि प्रतिबंधित अवैध कार्य में प्रयुक्त हो रही है, इससे अधिक आश्वर्यजनक क्या हो सकता है। इस घटना से सहज ही कल्पना की जा सकती है कि मादक पदार्थों के समग्र धंधे में न जाने कितनी धनराशि इस्तेमाल हो रही होगी। माफियाओं की कितनी बड़ी अलग से अर्थव्यवस्था चल रही होगी, इसका कोई अनुमान नहीं। कुछ कारवाइयों ही हजार करोड़ के मादक पदार्थ जब्त हो जाते हैं। फिर शासकीय नियम-कानूनों से छिप कर यहां-वहां देश-दुनिया में वितरित होने वाले पदार्थों के कुल मूल्य का अनुमान लगाना तो और मुश्किल है। बच्चों, किशोर-किशोरियों, युवक-युवतियों को पथभ्रष्ट करके देश-
दुनिया में मनमानी करने के लिए जो सबसे सरल रास्ता माफिया को दिखाई पड़ता है वह उन्हें मादक पदार्थों के उत्पादन, वितरण और प्रसारण में ही दिखता है। यही वजह है कि दुनिया की कोई भी सरकार नशे के सौदागरों पर स्थायी रूप से प्रतिबंध नहीं लगा पा रही है। इसीलिए उनका अंत नहीं हो पा रहा है। शासन को इस पर अब गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। क्योंकि मादक पदार्थों का व्यापक संजाल फैला हुआ है। इसमें लिप्त व्यक्ति मादक पदार्थ बनाने से लेकर बेचने तक के अपने काम को अत्यंत व्यावसायिक तरीके से पूरा करते हैं। कोई दो मत नहीं कि नशे के कारोबार को सुगमतापूर्वक संपन्न करवाने में शासन-प्रशासन के कुछ घटक भी गुप्त रूप से लिप्त होते हैं। अन्यथा ये माफिया इस कदर नहीं फलते-फूलते।
यह समस्या मादक पदार्थों की खरीद-बिक्री को गुप्त संरक्षण देने तक ही सीमित नहीं है। इस समय पैकेट बंद निर्मित एवं अर्द्धनिर्मित भोज्य उत्पादों और पेय पदार्थों में भी स्वास्थ्यघाती, प्राणघातक रासायनिक मिश्रण डाले जा रहे हैं। पिछले ढाई दशक में उद्योगीकरण और नगरीकरण के निरंकुश विस्तार के कारण यह अभ्यास पहले से अधिक बढ़ गया है। साथ ही इस अभ्यास की निगरानी, इस पर नियंत्रण का शासकीय का शासकीय कर्त्तव्य भी कुंद पड़ चुका है। मादक पदार्थों तथा रासायनिक मिश्रण वाले गेहूं, चावल, दाल, सब्जी, फल, मसाले, तेल, घी, पैकेट बंद भोज्य और पेय पदार्थों के चाहे अनचाहे सेवन से र लोगों का का स्वास्थ्य बेहाल है। आम आदमी लाचार है। उनके शरीर के अंदरुनी अंगों पर तो इसका अधिकतर असर पड़ा की ही रहा है, मनोविकार के र के रूप में भी यह सामने आ रहा है। मादक पदार्थों की तस्करी के पूर्ण उन्मूलन और इसके नियंत्रण के संबंध में सरकार जो भी संकल्प दिखा रही है, वह तभी पूरा होगा जब ठोस क्रियान्वयन हो । । तभी । परिस्थितियां बदली हुई नजर हुई नजर आएंगी। । वहीं जब तक मादक पदार्थों | के तस्करों को | दंडित नहीं किया जाएगा और उन्हें समाज के सामने नहीं लाया जाएगा, तब तक तस्करी को सार्वजनिक रूप से हतोत्साहित नहीं किया जा सकता। | वक्त आ गया है कि तस्करों की अराजकता को प्रभावी ढंग से खत्म किया जाए। केंद्रीय गृहमंत्री ने 'मादक पदार्थों की तस्करी और राष्ट्रीय सुरक्षा' विषय पर पिछले दिनों आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कहा कि वे शासन के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्र के अंदर या बाहर मादक पदार्थों की बिल्कुल तस्करी नहीं होने देंगे। उन्होंने आह्वान किया कि देश की सुरक्षा और विकास के लिए राज्यों, केंद्र सरकार और तकनीकी विशेषज्ञों के संयुक्त प्रयास से इन समस्याओं का त्वरित समाधान निकाला जाना चाहिए। इससे उम्मीद जगी है कि आने वाले समय में नशे के सौदागरों पर शिकंजा कसा जाएगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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