विकसित भारत के लिए महिला नेतृत्व वाले विकास को आगे बढ़ाने का सफर जारी

Update: 2025-01-29 14:26 GMT
Vijay Garg: जैसे-जैसे भारत 2047 तक विकसित भारत बनने के अपनी मंजिल की तरफ आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का परिवर्तनकारी प्रभाव इस बात का प्रमाण है कि हम महिलाओं के विकास से महिला नेतृत्व में विकास तक के सफर में कितने आगे आ गए हैं।
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है किसी भी पंछी के लिए महज एक पंख के साथ उड़ना संभव नहीं है। उनके इस कालजयी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बी.बी.बी.पी.) योजना की शुरूआत की। इस ऐतिहासिक पहल का मकसद भारत में गिरते बाल लिंग अनुपात (सी. एस. आर. ) पर ध्यान देना और यह सुनिश्चित करना था कि देश भर में लड़कियों और महिलाओं को वे सभी अवसर देखभाल और सम्मान मिलें, जिनकी वे हकदार हैं।
2011 की जनगणना में बाल लिंग अनुपात 918 होने के साथ सामाजिक पूर्वाग्रहों और नैदानिक उपकरणों के दुरुपयोग की चिंताजनक तस्वीर सामने आई। एक लक्ष्य के साथ तथा जीवन-चक्र-केंद्रित कदमों के जरिए, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को न केवल इस तस्वीर को बदलने के लिए लांच किया गया था, बल्कि एक ऐसे भविष्य की नींव भी रखी गई, जहां महिलाएं नेतृत्व करें और आगे बढ़ें।
पिछले एक दशक में, इस योजना ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार, 2014-15 में जन्म के समय राष्ट्रीय लिंग अनुपात 918 से बढ़कर 2023-24 में 930 हो गया है। संस्थागत प्रसव के मामले भी 2014-15 में 61 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 97.3 प्रतिशत हो गए हैं, जबकि पहली तिमाही में प्रसवपूर्व देखभाल पंजीकरण 61 प्रतिशत से बढ़कर 80.5 प्रतिशत हो गया है।
माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 2014-15 में 75.51 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 79.4 प्रतिशत हो गया। इसके अलावा, पुरुष और स्त्री नवजात शिशुओं के बीच शिशु मृत्यु दर में अंतर तकरीबन खत्म हो गया है, जो उत्तरजीविता और देखभाल में समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आंदोलन, आंकड़ों में सुधार की सीमा से कहीं आगे निकल गया है। इसने महिला सशक्तिकरण के मायने ही बदलकर रख दिए हैं। अक्तूबर 2023 में 150 महिला बाइकर्स द्वारा 10,000 किलोमीटर की यात्रा, यशस्विनी बाइक अभियान जैसी पहल, भारत की बेटियों के अदम्य साहस का प्रतीक है।
आज जब हम इस परिवर्तनकारी पहल के 10 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, साफ है कि मिशन अभी खत्म नहीं हुआ है। हमें अगर विकसित भारत के अपने सपने को हासिल करना है, तो यह तय करना जरूरी है कि लड़कियां और महिलाएं हमारे राष्ट्र- निर्माण प्रयासों के केंद्र में रहें। भारत तब तक विकसित नहीं हो सकता, जब तक इस देश की लड़कियां और महिलाएं अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने के काबिल नहीं हो जातीं। यह हमारे लिए निर्णायक कार्रवाई करने का वक्त है। हमें गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पी.सी.पी.एन.डी.टी.) अधिनियम 1994 के कार्यान्वयन को मजबूत करना चाहिए, शिक्षा में ड्रॉपआऊट दर को संबोधित करना चाहिए, कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिए और लड़कियों के जीवन के हर चरण में जरूरी मदद देनी चाहिए।
भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं अवैतनिक घरेलू देखभाल कार्य में शामिल हैं। हमारा प्रयास न केवल अधिक महिलाओं के लिए अपने घरेलू क्षेत्रों को छोड़कर घर से बाहर रोजगार करने के लिए एक माहौल को बढ़ावा देना होना चाहिए, बल्कि एक वाजिब करियर और पेशे के तौर पर देखभाल कार्य को बढ़ावा देने के साधन भी बनाने चाहिएं, ताकि जो महिलाएं देखभाल कार्य में प्रशिक्षित हैं और इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं, तो वे इससे भी वित्तीय आजादी हासिल कर सकें और अपने प्रयासों से देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान भी दे सकें। हमारे माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में, आज हम एक ऐतिहासिक बदलाव देख रहे हैं। महिला विकास से लेकर महिला नेतृत्व वाले विकास तक, भारत की बेटियां चेंजमेकर, उद्यमी और नेता के रूप में उभर रही हैं। वे अपनी कामयाबी की कहानी की हीरो खुद हैं। आइए हम सब मिलकर उनके सपनों को संजोएं और उनकी यात्राओं को सशक्त बनाएं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत अपनी आजादी के 100 साल एक ऐसे राष्ट्र के रूप में पूरे करे, जहां हर महिला इसके भाग्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद मलोट
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