"दिल्ली का सियासी संग्राम किसके सर बंधेगा सत्ता का ताज"

Update: 2025-01-30 09:10 GMT
"आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP की साख दांव पर है और BJP तथा कांग्रेस भी जोर आजमा रही हैं। चुनाव किसी एक मुद्दे पर केंद्रित नहीं है, हालांकि यमुना की सफाई और शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दे प्रमुख बने हुए हैं। पूर्वांचली मतदाताओं का समर्थन महत्वपूर्ण माना जा रहा है।"
दिल्ली के चुनावों में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) की साख दांव पर लगी है। BJP और कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में हैं। तीनों ही पार्टियां चुनावी मुद्दे उछाल रही हैं, लेकिन इस बार मतदाता पिछले दो विधानसभा चुनावों की तरह मुखर नहीं है। इसलिए अंदाजा लगाना आसान नहीं है कि ऊंट किस करवट बैठेगा आइए जानते हैं और समझते हैं इस बार दिल्ली के सियासी दंगल और इस बार बन रहे सत्ता के समीकरणों को। दरअसल दिल्ली चुनाव में आरक्षित सीटें हैं सत्ता की 'चाबी', इस बार दलित वोटर किसके साथ? दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस जनता को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर रही हैं. प्रत्याशी भी घर-घर जाकर वोटरों से समर्थन मांग रहे हैं. लेकिन बिजवासन के मतदाता किन मुद्दों को प्राथमिकता देंगे? उनकी प्रमुख समस्याएं क्या हैं? इस बार इन्हीं सवालों के इर्द गिर्द घूमेगा दिल्ली का दंगल।
√बचाव में AAP :– पिछले दो चुनावों की तरह यह चुनाव किसी एक मुद्दे पर चुनाव केंद्रित नहीं हो पाया है। पिछले दो चुनावों में भ्रष्टाचार का खात्मा और केजरीवाल की ईमानदारी के मुद्दे पर मतदान हुआ। इस बार किसी एक या दो मुद्दे पर चुनाव होता नहीं दिख रहा। लेकिन विरोधी पार्टियां मुख्यमंत्री निवास पर हुए खर्च के मुद्दे को जोरशोर से उछाल रही हैं। दरअसल, केजरीवाल ने अपने पहले चुनाव में गाड़ी, बंगला आदि लेने और शाहखर्ची को स्वीकार न करने को तरजीह दी थी। तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर में लगे दस एसी को मुद्दा बनाया था। इसलिए विरोधी दल उन्हें इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि मुफ्त की रेवड़ियों का वादा इस बार AAP के साथ BJP और कांग्रेस ने भी किया है।


 


√यमुना की सफाई :– चर्चा में रहे मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा के मॉडल को BJP और कांग्रेस दोनों मुद्दा बना रही हैं। दोनों ही आरोप लगा रही हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर किए गए दावों में दम नहीं है। केजरीवाल ने सत्ता संभालते ही कहा था कि 2020 तक वह यमुना को साफ कर देंगे। लेकिन यमुना साफ नहीं हो पाई। BJP इसे पूर्वांचली मतदाताओं की अस्मिता से भी जोड़ रही है। दरअसल, पूर्वांचल का लोक त्योहार छठ अब दिल्ली का प्रमुख त्योहार बन चुका है और हर साल छठ व्रतियों को यमुना के गंदे जल में ही अर्घ्य देना पड़ता है।
√लगातार पिछड़ती कांग्रेस :– BJP 2013 से लेकर हर विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की जीतोड़ कोशिश करती रही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, 2013 में वह अपनी रणनीतिक कमजोरियों की वजह से पिछड़ी। बाद में केजरीवाल की लोकप्रियता के सामने उसकी नहीं चली। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ, जिसका साथ दिल्ली की जनता ने पहले खूब दिया था। 1998 में 47.75% वोट और 52 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज होकर तीन बार जीत का स्वाद चखने वाली कांग्रेस को 2013 में 24.6% वोट और आठ सीटें ही मिलीं। दो साल बाद हुए चुनाव में महज 9.7% और 2020 में 4.26% वोट के साथ वह फिसड्डी दलों की सूची में शामिल हो गई। दिल्ली में जितनी तेजी से कांग्रेस पिछड़ी, उतनी ही तेजी से AAP का ग्राफ बढ़ा। 2013 में उसे 29.5% वोट मिले, तो 2015 में 54.3% प्रतिशत वोट के साथ 67 सीटें मिलीं। 2020 में भी वह 53.57% वोट लेकर 62 सीटें जीतने में सफल रही।
√मुख्यमंत्री के चेहरे का सवाल :– इस बीच के दो लोकसभा चुनावों में एकतरफा जीत हासिल करने वाली BJP के लिए विधानसभा पर कब्जा ख्वाब ही रहा। पार्टी को 2013 में 33% तो 2015 में 32.3% वोट हासिल हुए। 2020 में BJP के वोट प्रतिशत में 6% की बढ़ोतरी हुई। लेकिन वह जीत से कोसों दूर रही। दिल्ली के वोटरों ने केंद्रीय राजनीति के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा तो जताया, लेकिन दिल्ली के लिए केजरीवाल उसकी पसंद बने रहे। शायद यही वजह है कि AAP बार-बार BJP के मुख्यमंत्री के चेहरे का सवाल उछाल रही है। इसके जरिए केजरीवाल खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित भी कर रहे हैं। लेकिन आबकारी घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से जिन शर्तों पर उन्हें जमानत मिली है, जीत के बावजूद उनका मुख्यमंत्री बन पाना आसान नहीं होगा।
√पूर्वांचली मतदाताओं पर नजर :– नगरीकरण के चलते दिल्ली की डेमोग्राफी बदलती रही है। आज दिल्ली में करीब 22% पूर्वांचली हैं, जबकि 8% वोटर उत्तराखंड और हिमाचल के हैं। पूर्वांचली मतदाताओं को रिझाने के लिए केजरीवाल ने 11 तो BJP ने चार प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। BJP इस बार इसे बड़ा मुद्दा बना रही है, शायद यही वजह है कि पूर्वांचल मंत्रालय बनाने का वादा किया जा रहा है।
√BJP को कांग्रेस से आस :– वैसे, BJP की कामयाबी तीसरे दल की ताकत पर ज्यादा निर्भर करती है। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल को 12% से कुछ ज्यादा वोट मिले थे, जिसने पार्टी की जीत में भूमिका निभाई थी। अगले चुनाव में जनता दल अपने अंतर्विरोधों के चलते खत्म हो गया तो कांग्रेस को बढ़ने का मौका मिला। इस बार कांग्रेस पूरा दमखम लगा रही है। अगर वह जनता दल की तरह 12-15% तक वोट हासिल करने में सफल हुई तो BJP की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। पिछले दो विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी, लेकिन इस बार त्रिकोणीय मुकाबला के आसार बन रहे हैं। इससे किसी भी पार्टी के लिए चुनावी लड़ाई आसान नहीं है। चुनाव प्रचार में इसकी झलक भी दिख रही है। तीनों पार्टियों में लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करने की होड़ लगी हुई है।
√ये हैं दिल्ली विधानसभा की हॉट सीटें जहां से दिल्ली के सियासी ताज का रास्ता निकलता है कांग्रेस ने नई दिल्ली, कालकाजी, जंगपुरा, बादली, कस्तूरबा नगर, ओखला, मालवीय नगर, उत्तम नगर सहित कई सीटों पर मजबूत प्रत्याशी उताकर दोनों पार्टियों को कड़ी चुनौती पेश की है। कांग्रेस ने भी महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपये सहित अलग-अलग वर्गों के लिए कई घोषणाएं की है। सभी पार्टियां लोकलुभावन वादों के सहारे सत्ता तक पहुंचने की आस लगा रही हैं।
इस बार के चुनाव में सबसे अधिक चर्चा नई दिल्ली व कालकाजी सीट की हो रही है। नई दिल्ली से केजरीवाल तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं। भाजपा ने पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और कांग्रेस ने पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को उतारकर उनके सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है।कई पुराने नेताओं के टिकट काट दिए पिछले दो चुनाव में लोकलुभावन वादों से बचने वाली भाजपा भी इस बार अपने दो संकल्प पत्र में महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपये देने सहित बुजुर्गों, युवाओं, आटो चालकों के लिए घोषणा कर उन्हें अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है।
दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने के लिए भाजपा ने भी अपने दो विधायकों सहित कई पुराने नेताओं के टिकट काट दिए हैं।
कांग्रेस व आप छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले कई नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया है। इससे कई स्थानों पर कार्यकर्ताओं में आक्रोश भी है। बिजवासन, महरौली, तुगलकाबाद, करोलबाग, बाबरपुर सहित कई सीटों पर असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को एकजुट करके चुनाव प्रचार में लगाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। अपनों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।
भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के साथ संवाद से स्थिति सुधरेगी। भाजपा के साथ ही आप को भी अपनों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने पर आप ने नरेला और हरिनगर में उसे टिकट बदलना पड़ा। टिकट से वंचित रह गए कई विधायक भी नाराज हैं। उनसे भी पार्टी के प्रत्याशी को नुकसान की आशंका है। हरिनगर, नरेला, जनकपुरी, पालम, लक्ष्मी नगर, कस्तूरबा नगर, किराड़ी सहित कई सीटों पर अपनों से नुकसान की आशंका है। इन दोनों पार्टियों की तुलना में कांग्रेस की स्थिति ठीक है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि कार्यकर्ता एकजुट होकर अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को वापस पाने का प्रयास कर रहे हैं।
बरहाल दिल्ली वालों के दिल में क्या, वे मुद्दे कौन से जो इस बार हार-जीत तय करेंगे?इस चुनाव में आम आदमी पार्टी मुफ्त योजनाओं और कामकाजी मॉडल के दम पर मैदान में उतर रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी "मोदी फैक्टर" और विकास एजेंडा पर जोर देगी। मूलभूत सुविधा दिल्ली के लिए सबसे अहम मुद्दा बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे हमेशा दिल्ली के दिल में रहा है.दिल्ली की महिलाएं सुरक्षा के मामले में बेहद जागरूक हैं. AAP ने महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त यात्रा जैसी योजनाएं शुरू करके एक भरोसेमंद छवि बनाने की कोशिश की है. हालांकि बीजेपी की तरफ से सीसीटीवी कैमरा सहित अन्य मुद्दों पर आम आदमी पार्टी सरकार को घेरा जाता रहा है।
प्रदूषण अब भी सबसे अहम मुद्दा
दिल्ली में वायु प्रदूषण हर साल गंभीर समस्या बनता है। स्मॉग, निर्माण कार्यों से धूल, और वाहनों का धुआं बड़े मुद्दे हैं. हर सरकार की तरफ से दावा होते रहे हैं कि प्रदूषण का समाधान किया जाएगा हालांकि अब तक कोई ठोस समाधान दिल्ली के प्रदूषण को लेकर नहीं देखने को मिला है। झुग्गी-बस्ती और मकान का मुद्दा भी रहेगा अहम
दिल्ली में झुग्गी क्षेत्रों में रहने वाले मतदाताओं के लिए आवास और पुनर्वास बड़ी चिंता है. AAP ने "जहां झुग्गी, वहीं मकान" योजना शुरू की है। यह देखना होगा कि जनता इसे कितना स्वीकार कर रही है. माना जाता है कि आम आदमी पार्टी की झुग्गी वोटर्स में मजबूत पकड़ है।
मुफ्त योजना के रास्ते पर सभी दल AAP की मुफ्त योजनाएं, जैसे मुफ्त बिजली, पानी, और बस यात्रा, इस बार भी चर्चा में है. आम आदमी पार्टी के बाद अब दूसरे दलों की तरफ से भी इस तरह की घोषणा होती रही है। बीजेपी इसे "रेवड़ी कल्चर" कहते हैं और तर्क देते हैं कि ऐसी योजनाएं सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालती हैं.दिल्ली के मतदाताओं को मुफ्त योजनाओं का सीधा लाभ मिलता है. आप की लोकप्रियता के पीछे इसे अहम फैक्टर माना जाता है।
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा
दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की मांग पुरानी रही है। आम आदमी पार्टी इसे लगातार उठाती रही है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कभी भी इसे लेकर बहुत अधिक मुखरता नहीं दिखायी गयी है। हालांकि जनता के बीच इस मुद्दे का प्रभाव भी रहने की संभावना है।
दिल्ली की कानून व्यवस्था
दिल्ली की कानून व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथ है। अरविंद केजरीवाल की तरफ से लगातार इसे लेकर आवाज उठाए जाते रहे हैं। दिल्ली की कानून व्यवस्था एक बड़ी चुनौती रही है। दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव में इसे भी एक फैक्टर के तौर पर रख सकती है। अल्पसंख्यक मतों का किधर होगा रुझान
दिल्ली के अल्पसंख्यक समुदाय बीजेपी से दूर रहे हैं. शाहीन बाग, CAA और अन्य छोटे बड़े दंगे जो पिछले 5 साल में हुए उसे देखते हुए एक बार फिर अल्पसंख्यक वोटर्स का क्या रुख होता है वो बेहद अहम होगा। अल्पसंख्यक वोटर्स एक जमाने में कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स रहे थे। हालांकि पिछले 2 चुनाव में आम आदमी पार्टी को यह वोट मिलता रहा है।
आलेख©® डॉ राकेश वशिष्ठ वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक
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