अंतरिम चुनाव कोई संजीवनी बूटी है जो मृत्यु शैय्या पर पड़ी कांग्रेस में जान फूंक देगी

जब समस्या गंभीर हो तो गंभीर सवाल उठना भी वाज़िब है. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने अपने 136 साल के जीवन में शायद इतने बुरे दिन कभी नहीं देखे

Update: 2021-09-30 07:09 GMT

अजय झा जब समस्या गंभीर हो तो गंभीर सवाल उठना भी वाज़िब है. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने अपने 136 साल के जीवन में शायद इतने बुरे दिन कभी नहीं देखे थे जिसका उसे अब सामना करना पड़ रहा है. लगातार दो लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार, एक के बाद एक राज्य में सत्ता खोना और जो हालात हैं उसमे एक और राज्य पंजाब में भी सत्ता खिसकती दिख रही है. पंजाब (Punjab) में नेतृत्व के ऊपर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले कई महीनों से जब भी लगता था की अब विवाद ख़त्म हो गया, बेताल की तरह एक और समस्या फिर से मुहं चिढ़ाते सामने खड़ी रहती है.

अब समस्या यह नहीं है कि नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) बनाम चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के बीच चल रहे नियुक्ति के ऊपर विवाद को कैसे सुलझाया जाए. अब समस्या और बड़ी हो गयी है और गहरा गयी है. कल पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मिलना अपने आप में एक बड़ी समस्या है, क्योंकि अगर अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, जैसा की कयास लगाए जा रहे हैं, तो पंजाब में कांग्रेस की हार पक्की हो जाएगी. और उतनी ही गंभीर समस्या है बागी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का सवाल कि जब कांग्रेस पार्टी में कोई अध्यक्ष है ही नहीं तो कौन ले रहा है पार्टी में महवपूर्ण निर्णय?
सबसे लंबे समय तक सोनिया गांधी रही हैं कांग्रेस की अध्यक्ष
"हमे पता है… फिर भी हमे नहीं पता," सिब्बल ने कहा. और उनका कहना सही भी है. पिछले दो वर्षों से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं. 1998 से 2017 तक लगातार 19 वर्षों तक अध्यक्ष पद पर रह कर सबसे अधिक समय तक कांग्रेस अध्यक्ष होने का रिकॉर्ड सोनिया गांधी के नाम है. कुर्सी उन्होंने छोड़ी भी तो अपनें बेटे राहुल गांधी के लिए जिन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद इस्तीफा दे दिया था.
पार्टी में ऐसा कोई नेता था ही नहीं जो इस पद को संभाल सकता, लिहाजा मजबूरीवश फिर से सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद संभालना पड़ा. अगर कोरोना महामारी का डर नहीं होता तो सोनिया गांधी आतंरिक चुनाव करवा कर एक अरसे पहले ही किसी चुने हुए लोकप्रिय नेता को कुर्सी सौंप देतीं.
राहुल गांधी अपना पुत्र कर्तव्य निभा रहे हैं?
इस वर्ष पांच राज्यों में चुनाव हुआ, अगले वर्ष के पहले तिमाही में पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने वाला है, पर कोरोना के कारण कांग्रेस पार्टी गैर जिम्मेदाराना तरीके से आतंरिक चुनाव कैसे करवाती. लिहाजा सोनिया गांधी की मजबूरी है कि वह अंतरिम अध्यक्ष पद पर बनी हुई हैं. चूंकि पिछले कई वर्षों से उनकी तबियत ठीक नहीं रहती, इस लिए वह घर से बाहर निकल भी नहीं सकतीं, किसी से मिलती भी नहीं हैं, मीटिंग अगर जरूरी हो तो विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से ही काम चल जाता है. रही बात कि अगर सोनिया गांधी फैसले नहीं लेती तो कौन लेता है ये फैसले?
किसी भी बेटे का कर्तव्य होता है कि वह मां की सेवा करे और उनके काम में हाथ बटाये. अगर राहुल गांधी अपने पुत्र कर्त्तव्य का पालन करते हुए अपनी मां के काम में हाथ बंटा रहे हैं, फैसले ले रहे हैं तो फिर गलत क्या है? क्यों यह बेतुका सवाल कपिल सिब्बल पूछ रहे हैं?
स्पैनिश फ्लू के दौरान भी हुए हैं कांग्रेस में चुनाव
वैसे बता दें कि 1918 से 1920 के बीच भारत स्पैनिश फ्लू महामरी से संक्रमित था जिसमें कम से कम 1 करोड़ 80 लाख लोगों की जान गयी थी. कोरोना से कहीं ज्यादा भयावह था वह दौर. और उस समय भी कांग्रेस पार्टी में चुनाव होता रहा. उस दौर में पार्टी का अधिवेशन हर वर्ष होता रहा और पार्टी ने चार अध्यक्ष चुने– मदनमोहन मालवीय, सैय्यद हसन इमाम, मोतीलाल नेहरु और लाला लाजपत राय.
उस दौर में आज की तरह कोई एक व्यक्ति अध्यक्ष पद पर चिपका नहीं रहता था. छोटे नेताओं को भी आगे बढ़ने और बड़ा नेता बनने का मौका मिलता था. दुनिया भले ही कहे कि कोरोना महामारी स्पैनिश फ्लू ज्यादा खतरनाक क्यों है, पर अगर गांधी परिवार पार्टी को कोरोना महामारी से सुरक्षित रखना चाहती है तो इसकी प्रसंशा की जानी चाहिए. क्यों नहीं अन्य नेता समझते हैं कि कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा अगर नए अध्यक्ष का चुनाव 2024 के आमचुनाव के बाद हो?
अंतरिम चुनाव से क्या कांग्रेस की दशा और दिशा बदल जाएगी?
सिब्बल अकेले नहीं हैं. उनके साथ गुलाम नबी आजाद भी हैं. कल ही आजाद ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक बुलाने की मांग की. वह और उनके अन्य साथी नेता चाहते हैं कि पार्टी अध्यक्ष पद और कांग्रेस वर्किंग कमिटी के लिए चुनाब जल्द से जल्द कराया जाएं. मानो चुनाव हो भी गया और कोई गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन भी गया तो पंजाब समेत सभी पांच प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी चुनाव जीत कर सरकार बना लेगी. अंतरिम चुनाव कोई संजीवनी बूटी है क्या कि एक खुराक से ही पार्टी मृत्यु शैय्या से उठ कर दौड़ने लगेगी?
रही बात चुनाव की तैयारी की तो प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में जीत का फार्मूला ढूंढने में लगी हुई हैं और पंजाब में सुनील जाखड़ तथा अमरिंदर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद और मुख्यमंत्री पद से हटाना क्या चुनाव की तैयारी का हिस्सा नहीं था? खामखां लोग गांधी परिवार के पीछे पड़े हुए हैं, जबकि सिब्बल को भी पता है कि पार्टी में इतने दूरदर्शी फैसले और कौन ले सकता है. चुनाव में हार जीत तो लगी ही रहती है, और पार्टी तो चल ही रही है. पार्टी में नेताओं का आना जाना भी लगा ही रहता है. बस गांधी परिवार सलामत रहे तो कांग्रेस पार्टी की दशा भी एक ना एक दिन ठीक हो ही जाएगी. रही कांग्रेस वर्किंग कमिटी के बैठक की मांग, तो क्यों G-23 के नेता राहुल और प्रियंका गांधी से अपनी बेइज्जती करवाने पर अमादा हैं. लगता है कि पिछले वर्ष वर्किंग कमिटी मीटिंग में चुनाव की मांग पर कैसे राहुल गांधी ने सबकी क्लास ली थी, सभी भूल चुके हैं.


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