इतिहास रचयिता योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के लिए कैसे उपयोगी साबित हो सकते हैं

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के शपथ ग्रहण के 6 दिन बाद मुख्यमंत्री ने एक कड़ा फ़ैसला किया

Update: 2022-04-01 10:05 GMT
शंभूनाथ शुक्ल।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के शपथ ग्रहण के 6 दिन बाद मुख्यमंत्री ने एक कड़ा फ़ैसला किया. मुख्यमंत्री ने सोनभद्र ज़िले के डीएम टीके शिबू और ग़ाज़ियाबाद ज़िले के एसएसपी पवन कुमार को निलंबित कर दिया है. ऊपरी तौर पर यह संकेत है कि मुख्यमंत्री भ्रष्ट आचरण और क्राइम कंट्रोल में लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करेंगे. यूं भी विधानसभा चुनाव में बीजेपी द्वारा एक नैरेटिव गढ़ा गया था, कि योगी सरकार (Yogi Government) की अकेली यूएसपी है, क्राइम पर क़ाबू पाना. दूसरे चरण के मतदान तक बीजेपी का फ़ोकस हिंदू-मुस्लिम रहा.
लेकिन तीसरे चरण से प्रचार की शैली बदल गई और कहा गया कि प्रदेश की बीजेपी सरकार ने क्राइम पर क़ाबू पाया हुआ है. लोग याद दिलाते थे कि कैसे 2017 के पूर्व एनएच-2 पर फ़िरोज़ाबाद से औरय्या तक रात को चलना दूभर था. इस नैरेटिव ने बीजेपी में करंट ला दिया और कथित यादव लैंड में ही अखिलेश यादव पिछड़ गए.
क्राइम ग्राफ़ गिरने का नैरेटिव
लेकिन यही नैरेटिव अब मुख्यमंत्री के गले की हड्डी बन गया है. नतीजा आने के बाद से ताबड़तोड़ लूट की घटनाएं बढ़ीं. मोबाइल छीन लेने और महिलाओं से पर्स झपट लेने की कई वारदात तो यूपी के एनसीआर इलाक़े में हुईं. इसके अलावा इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि भले मुख्यमंत्री की छवि ईमानदार राजनेता की हो किंतु उनके कार्यकाल में सरकारी दफ़्तरों में रिश्वत की दर बढ़ी. उनके कार्यालय के अधिकारियों ने अपने चहेते लोगों को बढ़ावा दिया. इस पर क़ाबू पाना ज़रूरी था. लेकिन क्या एक कलेक्टर और पुलिस कप्तान को सस्पेंड कर देने से ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा? यह बहुत बड़ा सवाल है. आने वाले दिन ही इसका जवाब दे पाएंगे.
चाकर बने नौकरशाह
उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है और उतना ही अराजक भी. शायद इसलिए भी कि 1989 के विधान सभा चुनाव के बाद से ही यहां पर अराजकता पांव पसारने लगी थी. यहां की स्टील ब्यूरोक्रेसी राजनेताओं की चाकर बन गई थी. जिस प्रदेश का मुख्य सचिव मुख्यमंत्री द्वारा अग्रसारित संस्तुतियों को नकार देता था, वहां हाल यह हो गया कि जो भी कहा गया, उसे करो. नतीजा यह हुआ कि न सिर्फ़ राजनेता बल्कि सरकार के अधिकारी और कर्मचारी भी सिर्फ़ वही काम करने लगे जिनमें पैसा हो. हालांकि 1991 में में आई कल्याण सिंह सरकार ने इस अराजकता पर क़ाबू पाया था किंतु बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही वह सरकार भी चली गई. इसके बाद सब कुछ ठप हो गया.
मायावती ने शुरू किए थे विकास के काम
अलबत्ता अगर विकास की बात की जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि 2007 में आई मायावती की ख़ुदमुख़्तार बसपा सरकार ने कई क्रांतिकारी काम और फ़ैसले किए. क्राइम कंट्रोल तो किया ही राज्य में विकास के कई काम किए. चाहे राजधानी लखनऊ का कायापलट हो अथवा ग्रेटर नोएडा से आगरा को जाने वाला यमुना एक्सप्रेस वे का निर्माण हो. सब कुछ बदल गया. 2012 में आई अखिलेश सरकार ने विकास के कार्यक्रमों को और आगे बढ़ाया. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे इसका सबूत है. इसके अलावा बिजली आपूर्ति में भी अखिलेश सरकार अव्वल रही. किंतु क्राइम कंट्रोल पर उनकी सरकार का काम ढीला रहा. इसके अतिरिक्त हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य भी बढ़ा. इसकी एक वजह यह भी रही कि ख़ुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के परिवार वाले और उनकी बिरादरी वाले अधिकांश लोग उनके पांव खींचते रहे. खनन माफिया तो सहारनपुर से सोनभद्र तक बेख़ौफ़ रहा.
ख़ुद की ईमानदारी से सरकार ईमानदार नहीं होती
2017 में बीजेपी की अपार बहुमत वाली सरकार बनी थी. गोरखपुर की गोरख पीठ के महंत योगी आदित्य नाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यद्यपि वे उस समय न तो विधायक थे न कोई स्टार प्रचारक. लेकिन राम मंदिर निर्माण के प्रति उनके आक्रामक भाषण और उग्र हिंदूवादी छवि बीजेपी आलाकमान को पसंद आई और उन्हें कमान सौंपी गई. इसमें कोई शक नहीं कि वे स्वयं के जीवन में आर्थिक रूप से ईमानदार रहे लेकिन अपने सजातीय लोगों के प्रति उनका अतिशय प्रेम और सरकारी दफ़्तरों में रिश्वतख़ोरी को न रोक पाना उनके लिए नकारात्मक रहा. इसीलिए जहां 2017 में बीजेपी को 312 सीटें मिली थीं वहीं 2022 में यह आंकड़ा 255 पर अटक गया. जबकि 2017 में योगी कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं थे और 2022 में ख़ुद प्रधानमंत्री ने उन्हें यूपी के लिए 'उपयोगी' बताया था. इसके बावजूद 57 सीटों का नुक़सान हुआ. इसलिए यह योगी के लिए 2022 का नतीजा मायूसी भरा रहा.
ताबड़तोड़ निलम्बन
संभवतः इसीलिए मुख्यमंत्री ने 31 मार्च को भ्रष्ट आचरण के आरोप से घिरे एक कलेक्टर और क्राइम कंट्रोल में विफल रहे एक पुलिस कप्तान को सस्पेंड करने का फ़ैसला किया. मगर जिस तरह से यूपी में अराजकता और भय का माहौल है, उसे भी दूर करना पहली अनिवार्यता होनी चाहिए. अभी भी उत्तर प्रदेश के सरकारी महकमों में अपना जरूरी काम कराना भी आसान नहीं है. बिजली विभाग, नगर निगम, विकास प्राधिकरण, पुलिस, कलेक्ट्रेट, शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य महकमा इस क़दर भ्रष्टाचार में डूबा है कि आम आदमी यहां जाने से डरता है. कोई भी शिकायत एक तो दर्ज नहीं होगी और होगी भी तो बिना चढ़ावे के कुछ नहीं होने वाला. ताज़ा मामला माध्यमिक शिक्षा परिषद की 12वीं की परीक्षा में इंग्लिश का पेपर लीक होने का रहा. सरकार ने अभी तक इसकी जांच में प्रगति की कोई जानकारी नहीं दी.
मुख्यमंत्री सीधे संवाद करें
एक वजह शायद यह है कि मुख्यमंत्री महोदय जनता से खुद साक्षात्कार नहीं करते. अभी चार साल पहले तक शहरी क्षेत्र की अपनी ज़मीन को फ़्री होल्ड कराने के लिए ज़मीन मलिक को ख़रीद मूल्य का दो पर्सेंट चुकाना होता था. लेकिन सरकार ने इसे आज की दर का 15 प्रतिशत कर दिया है. कुल पांच साल पहले तक जहां ज़मीन मलिक को कुछ सौ या हज़ार देने होते थे अब यह यह कास्ट लाखों में पहुंच गई है. नतीजा यह हुआ कि लोग अपने शहरी भूखंड या मकान को फ़्री होल्ड नहीं करा रहे हैं.
इससे ज़मीनों की ख़रीद-बिक्री बंद है और कोई रजिस्ट्री नहीं हो रही. इससे सरकार को अरबों का चूना लग रहा है. अब पता नहीं किसने उन्हें यह राय दी होगी. पहले ज़मीन को फ़्री होल्ड करवाना अनिवार्य नहीं था, इसलिए लोगों ने शहरी भूखंड ख़रीदने के बाद उन्हें फ़्री होल्ड नहीं करवाया. परंतु विकास प्राधिकरण बनने के बाद से इसे अनिवार्य किया गया. लेकिन दर मामूली थी इसलिए लोग आसानी से फ़्री होल्ड करा लेते थे. पर अब इस दर में कौन कराए? इस तरह सरकार ख़ुद अपने फ़ैसलों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है.
असली परीक्षा लोकसभा चुनाव
उत्तर प्रदेश सरकार को अगले पांच वर्ष शासन का अधिकार भले मिल गया हो लेकिन अभी कई बार अपनी लोकप्रियता की परीक्षा देनी होगी. अभी सबसे बड़ी परीक्षा लोकसभा के आम चुनाव के दौरान 2024 में होगी. मूल प्रश्न है कि क्या योगी सरकार लोकसभा चुनाव में यूपी से 2014 और 2019 की तरह परिणाम दिलवा पाएगी? जब तक जनता का भरपूर समर्थन नहीं पाया गया, योगी के लिए ये मुश्किल भरे दिन रहेंगे. मुख्यमंत्री को अपने प्रदेश की जनता से सीधे संवाद करना होगा. यूं भी उनकी कैबिनेट में जो ब्यूरोक्रेट, टेक्नोक्रेट और पुलिस अधिकारी भरे हुए हैं, उनका अंदाज़ साहबी होता है. उनके ज़रिए जनता से कैसे संवाद होगा?
टीम को गति दें योगी
अपनी टीम को गति देने का काम भी टीम लीडर का होता है. यदि टीम लीडर अपने में सिमट गया तो कैसे सबको सक्रिय करेगा? इसका एक ही जवाब है कि मुख्यमंत्री अपनी छवि से अधिक महत्त्व अपनी टीम की छवि को दें. सरकार के फ़ैसलों में कैबिनेट की राय को सर्वोपरि रखें. विपक्ष को भी भरोसे में लें. अभी तो पहले दिन ही अखिलेश यादव ने सरकार को घेर लिया था. इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार के फ़ैसलों में एक पारदर्शिता हो और पूरी टीम काम करती प्रतीत हो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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