मदद और मैत्री

अफगानिस्तान की मदद के लिए भारत ने फिर से कदम बढ़ाया है। संकट से जूझ रहे अफगान नागरिकों के लिए यहां से भारी मात्रा में जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेजी गई है।

Update: 2021-12-13 01:25 GMT

अफगानिस्तान की मदद के लिए भारत ने फिर से कदम बढ़ाया है। संकट से जूझ रहे अफगान नागरिकों के लिए यहां से भारी मात्रा में जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेजी गई है। जो विमान काबुल से भारतीय और अफगान नागरिकों को लेकर यहां आया था, उसी के जरिए यह खेप भेजी गई। जबसे अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम हुई है, तबसे वहां भारत की गतिविधियां लगभग रुकी हुई थीं। शुरू में तो भारत लंबे समय तक यही तय नहीं कर पा रहा था कि वह तालिबान को मान्यता दे या न दे, क्योंकि पूरी दुनिया में तालिबान को एक दहशतगर्द संगठन माना जाता है और इस तरह किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कब्जा करके सत्ता बनाने वाली शक्तियों को मान्यता देना लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध माना जाता है।

मगर उसी वक्त चीन और रूस ने तालिबान की सत्ता को समर्थन देना शुरू कर दिया था। भारत के सामने एक समस्या यह भी थी कि उसे अमेरिका का रुख भी देखना था। अमेरिका को पसंद नहीं कि कोई देश अफगानिस्तान की मदद करता। जब उसकी सेना वहां से हटी, तभी तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था। इसलिए दुनिया के वे सभी देश तालिबान के विरोध में खड़े थे, जो अमेरिका के मित्र थे।
मगर भारत के लिए अफगानिस्तान का वह महत्त्व नहीं है, जो अमेरिका के लिए है। अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी है और पाकिस्तान का भी। पाकिस्तान के भारत से रिश्ते हमेशा तनाव भरे ही रहते हैं। ऐसे में अगर अफगानिस्तान का झुकाव भी उसकी तरफ रहेगा, तो भारत के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। इसलिए भारत ने शुरू से अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखा है। तालिबान के कब्जे से पहले वहां भारत ने अनेक विकास परियोजनाओं में भारी धन लगा रखा है। तालिबान के आने के बाद उन परियोजनाओं पर प्रश्नचिह्न लग गया था।
फिर जिस तरह चीन ने अफगानिस्तान में अपने पांव जमाने की कोशिश की, उससे भारत के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता था। इसलिए केवल अमेरिका की मुंहदेखी में भारत का अफगानिस्तान के खिलाफ खड़े होना कूटनीतिक रूप से सही नहीं था। अब जब रूस के साथ भारत के रिश्ते कुछ और मजबूत हुए हैं, भारत ने अमेरिका की परवाह न करते हुए रूस से अत्याधुनिक हथियारों का सौदा किया है, तब से स्थितियां काफी बदली हैं। पुतिन के भारत दौरे के बाद समीकरण थोड़े और बदल गए। रूस भी तालिबान के प्रति नरम रुख अपनाए हुए है।
इस तरह भारत ने अफगानिस्तान को जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेज कर न सिर्फ दुनिया के सामने अपना मानवीय पक्ष स्पष्ट किया है, बल्कि अफगानिस्तान के लोगों का दिल जीतने का भी प्रयास किया है और कूटनीतिक दृष्टि से भी बड़ा कदम उठाया है। चीन और अमेरिका दोनों को इससे स्पष्ट संकेत मिल गया है। भारत अभी अफगानिस्तान को पचास हजार टन अनाज और दवाओं की कुछ और खेप भेजने वाला है। यह खेप पाकिस्तान के रास्ते जानी है। पाकिस्तान ने इसके लिए रास्ता दे दिया है, उस पर दोनों तरफ के अधिकारी अंतिम बातचीत के दौर में हैं। तालिबानी हमले की वजह से अफगानिस्तान में बड़ी तबाही मची है, वहां के पारंपरिक कामकाज भी लगभग ठप हैं। ऐसे में वहां के लोगों के लिए भोजन और दवाओं की किल्लत झेलनी पड़ रही है। भारत से पहुंची यह मदद वहां के लोगों के लिए बड़ी राहत पहुंचाएगी।

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