किसान रेल और किसान उड़ान के बाद किसान ड्रोन मोदी सरकार की अनूठी पहल
भारतीय खेती वक्त के साथ कदमताल नहीं कर पाई
रमेश कुमार दुबे। भारतीय खेती वक्त के साथ कदमताल नहीं कर पाई, क्योंकि उसे उदारीकरण, भूमंडलीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी से कारगर तरीके से जोड़ा नहीं गया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार कृषि उत्पादन से लेकर बिक्री तक में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, ताकि खेती-किसानी फायदे का सौदा बन सके। इस दिशा में किसान रेल और किसान उड़ान के बाद सरकार की अनूठी पहल है किसान ड्रोन।
पिछले दिनों कृषि क्षेत्र की उत्पादकता के साथ-साथ दक्षता को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 100 किसान ड्रोन का उद्घाटन किया। ये ड्रोन खेतों में कीटनाशक सामग्री के छिड़काव का भी काम करेंगे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी की आधुनिक कृषि सुविधाओं की दिशा में यह एक नया अध्याय है। ये ड्रोन ग्रामीण इलाकों में कीटनाशकों के छिड़काव के साथ-साथ बुआई रकबे की माप, फसलों की बीमारियों की पहचान और खेती की निगरानी जैसे काम करेंगे। स्पष्ट है कि इससे देश में आवारा पशुओं के नियंत्रण में भी सहायता मिलेगी। इतना ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में संपत्ति के डिजिटल दस्तावेज बनाने में भी ड्रोन का इस्तेमाल होगा जिससे गांवों में जमीन-जायदाद को लेकर होने वाले विवाद कम होंगे। फसल में कहां रोग लगा है, कहां कीट लगे हैं और फसल में किस पोषक तत्व की कमी है, इसका पता ड्रोन आसानी से लगा सकेंगे।
वर्ष 2020 में कई राज्यों में टिड्डियों के हमलों को रोकने में ड्रोन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद से ही सरकार खेती-किसानी में ड्रोन को बढ़ावा देने की नीति अपनाई। अगस्त 2021 में सरकार ने ड्रोन के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए नियमों को उदार बनाया। सितंबर में ड्रोन एयर स्पेस का नक्शा पेश किया गया। अब घरेलू स्तर पर ड्रोन विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए ड्रोन शक्ति परियोजना शुरू की गई है। घरेलू ड्रोन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने अनुसंधान एवं रक्षा को छोड़कर बाकी क्षेत्रों के लिए ड्रोन आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। शुरू में ड्रोन की लागत अधिक आएगी, लेकिन आगे चलकर बड़े पैमाने पर उपयोग होने से यह सस्ता पड़ने लगेगा। 10 किलो पेलोड वाले ड्रोन से छिड़काव की लागत 350 से 450 रुपये प्रति एकड़ आएगी।
ड्रोन के इस्तेमाल से न केवल समय की बचत होती है, बल्कि खेती की लागत में भी कमी आ जाती है। किसान ड्रोन कृषि श्रमिकों पर निर्भरता कम करेगा। सरकार ने कई एजेंसियों को काम सौंपा है, जो ड्रोन खरीदेंगी और कीटनाशकों-उर्वरकों के छिड़काव के लिए किसानों को किराए पर उपलब्ध कराएंगी जैसे ट्रैक्टर। इसके अलावा कृषि विस्तार केंद्रों को किसान ड्रोन के लिए 10 लाख रुपये देने की घोषणा की गई है। कृषि उत्पादक संगठनों को 75 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। सरकार कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन के तहत ड्रोन खरीद के लिए वित्तीय सहायता भी दे रही है।
ड्रोन के इस्तेमाल से सूचना प्रौद्योगिकी आधारित कृषि प्रबंधन का लक्ष्य हासिल होगा। इससे कीटनाशकों का संतुलित छिड़काव होगा और मानव स्वास्थ्य पर खतरनाक कीटनाशकों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। गन्ना जैसी लंबी फसलों के लिए ड्रोन विशेष उपयोगी साबित होंगे। आगे चलकर बुआई में भी ड्रोन का इस्तेमाल होने लगेगा। इफको द्वारा पेश नैनो यूरिया का ड्रोन से छिड़काव का ट्रायल सफल रहा है। ड्रोन से एक घंटे में 10 एकड़ क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। इतना ही नहीं किसान फलों-सब्जियों-फूलों को कम समय में बाजारों में लाने के लिए उच्च क्षमता वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित ड्रोन के जरिये किसान अपनी फसल के उन्हीं हिस्सों पर कीटनाशक का छिड़काव कर सकेंगे जहां पर जरूरत होगी। देश में ड्रोन के बड़े पैमाने पर उपयोग को देखते हुए कई ड्रोन स्टार्टअप्स की एक नई संस्कृति शुरू हो चुकी है। अभी इनकी संख्या 200 है, जो आने वाले समय में हजारों में होंगी और इससे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे। खेती-किसानी के आधुनिकीकरण और उसे सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ने के लिए किसान रेल और किसान उड़ान के बाद यह मोदी सरकार अनूठी पहल है।
उल्लेखनीय है कि किसान रेल देश के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों को दूर दराज के बाजारों से लेकर महानगरों तक में उपज बेचने में सक्षम बना रही है। किसान रेल अब तक 153 रूटों पर छह लाख टन कृषि उपज पहुंचा चुकी हैं। सबसे ज्यादा किसान रेल मध्य रेलवे चला रहा है। इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों और हिमालयी राज्यों से शीघ्र खराब होने वाली सब्जियों-फलों को हवाई जहाज से ढुलाई के लिए किसान उड़ान योजना शुरू की गई है। किसान उड़ान से ढुलाई के लिए सरकार 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। भारतीय खेती की बदहाली की सबसे बड़ी समस्या है उपज की वाजिब कीमत न मिलना। इस समस्या को दूर करने के लिए मोदी सरकार मंडियों का आधुनिकीकरण कर रही है।
31 दिसंबर, 2021 तक 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों की 1000 मंडियों को ई-नाम प्लेटफार्म में बदला जा चुका है। इससे 1.72 करोड़ किसान और दो लाख व्यापारी जुड़े हैं। ई-नाम योजना के लाभ को देखते हुए मोदी सरकार ग्रामीण हाटों को मिनी एपीएमसी मार्केट में बदल रही है। जाहिर है कि मोदी सरकार देश में परंपरागत
की जगह नई तकनीक से खेती को बढ़ावा दे रही है, ताकि युवा वर्ग आगे आएं। आज भी देश में हजारों ऐसे उच्च शिक्षित किसान हैं, जो नई तकनीक से खेती करके न सिर्फ खेती-किसानी की तस्वीर बदल रहे हैं, बल्कि अपनी तकदीर भी संवार रहे हैं।