जानें सूर्य को उनकी पत्नी ने क्यों दिया था श्राप, मकर संक्रांति से जुड़ी है पौराणिक कहानी
मकर संक्रांति पर इस बार तिथि को लेकर बड़ी उलझन है. पंचाग में सूर्य के मकर राशि में गोचर की अलग-अलग टाइमिंग की वजह से ये स्थिति उत्पन्न हुई है
Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति पर इस बार तिथि को लेकर बड़ी उलझन है. पंचाग में सूर्य के मकर राशि में गोचर की अलग-अलग टाइमिंग की वजह से ये स्थिति उत्पन्न हुई है. हालांकि, पंडितों का कहना है कि मकर संक्रांति मनाने की उत्तम तिथि 14 जनवरी ही है. मकर संक्रांति पर गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है. इस दिन गुड़, काले कंबल, ऊनी कपड़े और खिचड़ी का दान शुभ माना जाता है. साथ ही विशेष रूप से तिल का दान करना भी अत्यंत फलदायी माना गया है.
Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि को छोड़ते हुए अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर जाते हैं. इस दिन से सूर्यदेव की यात्रा दक्षिणायन से उत्तरायण दिशा की ओर होने लगती है. इसलिए मकर संक्रांति पर दान पुण्य का बड़ा महत्व माना जाता है. इस दिन तिलों का दान भी किया जाता है. इससे शनिदेव और भगवान सूर्य की कृपा मिलती है. ज्योतिषाचार्य विनोद भारद्वाज से जानते हैं मकर संक्रांति पर तिलों का क्यों किया जाता है दान?
तिल के दान से जुड़ी है ये कथा
ज्योतिषाचार्य विनोद भारद्वाज ने बताया कि भगवान सूर्य की दो पत्नियां थीं. एक का नाम छाया था, दूसरी का नाम संज्ञा था. सूर्य देव की पहली पत्नी छाया के पुत्र शनि देव थे. शनि देव का चाल चलन सही नहीं था, जिस वजह से सूर्य देव बहुत दुखी रहते थे. एक दिन सूर्य देव ने छाया के साथ शनि देव को एक घर दिया जिसका नाम था कुंभ. काल चक्र के सिद्धांत के अनुसार 11वीं राशि कुंभ है. सूर्य देव ने शनि देव के कुंभ रूपी घर देकर अलग कर दिया. सूर्य देव के इस कदम से शनि देव और उनकी मां छाया सूर्य देव पर क्रोधित हो गए और उन्होने श्राप दिया कि सूर्य देव को कुष्ट रोग हो जाए. श्राप के प्रभाव से सूर्य देव को कुष्ट रोग हो गया. सूर्य देव के इस रोग की पीड़ा में देख उनकी दूसरी पत्नी संज्ञा ने भगवान यमराज की आराधना की. देवी संज्ञा की तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज आते हैं और सूर्य देव को शनि देव और उनकी मां के श्राप से मुक्ति दिलाते हैं.
ऐसे मिले शनि देव के दो घर
सूर्य देव जब पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं तो अपनी दृष्टि पूरी तरह कुंभ राशि पर केंद्रित कर देते हैं. इससे कुंभ राशि आग का गोला बन जाती है, यानि शनि देव का घर जल जाता है. जिसके बाद छाया और शनि देव बिना घर के घूमने लगते हैं. तब सूर्य देव की दूसरी पत्नी संज्ञा को आत्मगिलानि होती है. वे सूर्य देव से शनि देव और छाया को माफ करने की विनती करती हैं. इसके बाद सूर्य देव शनि से मिलने के लिए जाते हैं. जब शनि देव अपने पिता सूर्य देव को आता हुआ देखते हैं, तो वे अपने जले हुए घर की ओर देखते हैं. वे घर के अंदर जाते हैं, वहां एक मटके में कुछ तिल रखे हुए थे. शनि देव इन्हीं तिलों से अपने पिता का स्वागत करते हैं. इससे भगवान सूर्य देव प्रसन्न हो जाते हैं और शनि देव को दूसरा घर देते हैं, जिसका नाम है मकर. मकर काल चक्र सिद्धांत के अनुसार 10वीं राशि होती है. इसके बाद शनि देव के पास दो घर को जाते हैं मकर और कुंभ. इसलिए जब सूर्य देव अपने पुत्र के पहले घर यानि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है.
इसलिए शुभ है तिलों का दान करना
इसीलिए मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त पूजा, यज्ञ और दान के अलावा खाने में तिल का उपयोग करते हैं, उनसे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. यही वजह है कि मकर संक्रांति पर तिल के दान और खाने में इनका उपयोग करना शुभ माना जाता है. Live TV