Skanda Shashti ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के बड़े पुत्र यानी भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है। विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत में की जाती है। इस दिन स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने दानव तारकासुर का वध कर तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था। स्कंद षष्ठी का व्रत कथा कुछ उस प्रकार है।
स्कंद षष्ठी: भगवान कार्तिकेय और तारकासुर वध की कथा
स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। उन्होंने तारकासुर नामक असुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त किया। इस उपलक्ष्य में स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल शिव के पुत्र के द्वारा ही पराजित किया जा सकता है। शिव जी ने यह वरदान दे दिया, लेकिन कुछ समय बाद माता सती ने आत्मदाह कर लिया, जिससे शिव का कोई पुत्र न हो सका।
माता सती के जाने के बाद शिव जी ने संसार से दूरी बना ली और गहरे तप में लीन हो गए। इस बीच तारकासुर ने तीनों लोकों पर अत्याचार बढ़ा दिए। देवता मदद के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने कहा कि तारकासुर का अंत केवल शिव-पुत्र के हाथों ही संभव है। देवताओं ने शिव को वैराग्य से बाहर लाने के लिए कामदेव को भेजा।
कामदेव ने शिव पर प्रेम के बाण चलाए, जिससे शिव की तपस्या भंग हो गई। शिव इस छल पर अत्यंत क्रोधित हुए और अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। बाद में कामदेव की पत्नी रति ने शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। शिव ने रति के अनुरोध को स्वीकार कर कामदेव को बिना शरीर के पुनर्जीवित कर दिया।
इसके बाद शिव जी माता पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हुए। शिव दी ने अपनी तीसरी आंख से छह दिव्य चिंगारियां उत्पन्न कीं, जिन्हें अग्निदेव ने सरवन नदी में प्रवाहित कर दिया। इन चिंगारियों से छह बालकों का जन्म हुआ। माता पार्वती ने इन बालकों को अपनी ममता से एक कर दिया और इसी से भगवान कार्तिकेय प्रकट हुए। भगवान कार्तिकेय छह मुख और बारह भुजाओं वाले दिव्य योद्धा के रूप में विकसित हुए। उन्होंने युद्ध-कौशल में महारत हासिल की और तारकासुर के विरुद्ध युद्ध छेड़ा। इस भीषण युद्ध में उन्होंने तारकासुर का वध किया।
तारकासुर के शरीर से एक मोर उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान कार्तिकेय ने अपना वाहन बना लिया। देवताओं ने कार्तिकेय को उनकी वीरता और पराक्रम के लिए देवसेना का सेनापति घोषित किया। शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को तारकासुर पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान कार्तिकेय के पराक्रम और विजय का प्रतीक है।