यमराज की नगरी में बहती है बहुत भयानक वैतरणी नदी, यह से होकर पहुंचते यमलोक

गरुड़ पुराण में यमलोक के बारे में बताया गया है

Update: 2021-07-02 09:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | गरुड़ पुराण में यमलोक के बारे में बताया गया है कि ये एक लाख योजन क्षेत्र में फैला हुआ है और इसके चार मुख्य द्वार हैं. पापियों के लिए यमलोक का रास्ता काफी कष्टकारी बताया गया है. इस रास्ते में वैतरणी नदी का भी उल्लेख मिलता है. इस नदी का दृश्य भी इतना भयानक है कि सुनकर ही आप अंदर से कांप जाएंगे

गरुड़ पुराण के मुताबिक जिस तरह धरती पर नदी में पानी बहता है, उस तरह इस नदी में खून और मवाद बहता है. नदी के तट पर हड्डियों के ढेर लगे है. पापी व्यक्ति को इस नदी को पार करके निकलना होता है. जिस व्यक्ति के परिजनों ने गाय दान की है, वो आत्मा तो नदी को आसानी से पार कर लेती है, लेकिन बाकी पापी लोग नदी पार करते समय बार बार इसमें डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें बाहर निकालकर बार बार आगे की ओर धकेलते हैं.
पापियों को देखकर गर्जना करती है नदी
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब यमदूत पापियों को लेकर इस नदी के पास पहुंचते हैं तो नदी बहुत जोर से गर्जना करने लगती है. इसमें बह रहा रक्त खौलने लगता है. नदी में मगरमच्छ, मछली और वज्र जैसी चोंचवाले गिद्ध रहते हैं. ये दृश्य देखकर ही आत्मा डर से कांपने लगती है.
पुण्य के बल पर मिलती है नाव
इस नदी को पार करने के लिए एक मात्र नाव है. इस नाव को एक प्रेत चलाता है. वो आत्माओं से पूछता है कि तुम्हारे पास ऐसा कौन सा पुण्य है, जिसके कारण तुम्हें इस नाव में बैठाला जाए. जिन लोगों के परिजन गाय का दान करते हैं, उन्हें वो प्रेत अपनी नाव में बैठाकर इस भयानक नदी को पार करा देता है. जिनके पास दान का पुण्य नहीं होता, उनकी नाक में कांटा फंसाकर यमदूत नदी के ऊपर से खींचते हुए ले जाते हैं. इसीलिए शास्त्रों में गौदान करने की बात कही जाती है.
यमपुरी में मिलती है पुष्पोदका नदी
यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा को पुष्पोदका नदी मिलती है. इस नदी का पानी काफी स्वच्छ है और इसके किनारे बहुत बड़ा बड़ का वृक्ष लगा है. आत्मा इस नदी के किनारे पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर के लिए आराम करती है. परिजनों द्वारा किया गया पिंडदान और तर्पण उसे यहीं पर भोजन रूप में प्राप्त होता है और इससे उस आत्मा को शक्ति मिलती है.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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