ओबीसी बिल के संकेत
लोकसभा ने ओबीसी लिस्ट बनाने के राज्यों के अधिकार से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को जिस तरह से पारित किया, वह काफी कुछ कहता है।
लोकसभा ने ओबीसी लिस्ट बनाने के राज्यों के अधिकार से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को जिस तरह से पारित किया, वह काफी कुछ कहता है। पूरे मॉनसून सत्र के दौरान देखा गया विपक्ष का हंगामा, शोर-शराबा और विरोध कुछ समय के लिए थम गया। इस बिल की खातिर विपक्ष ने अपना विरोध स्थगित कर दिया। सत्ता पक्ष और विपक्ष की असाधारण एकजुटता के बीच यह संशोधन विधेयक 385 बनाम शून्य मतों से पारित हो गया। अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाना है और पूरी संभावना है कि वहां भी यह ऐसी ही आसानी से पारित हो जाएगा। इस बिल की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को दिए अपने एक फैसले में कहा कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों की अपनी सूची तैयार करने का अधिकार नहीं है। यानी राज्य सरकारें अपने स्तर पर किसी खास समुदाय को आरक्षण के दायरे में नहीं ला सकतीं। यह अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। स्वाभाविक रूप से राज्य सरकारों ने इसे अपने अधिकारों में कटौती के रूप में लिया और विपक्षी दल केंद्र पर निशाना साधने लगे। मगर इस संशोधन विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में जो रजामंदी दिख रही है उसके पीछे संविधान के संघात्मक ढांचे के साथ छेड़छाड़ करने के आरोपों से ज्यादा ओबीसी समुदायों के मजबूत वोट बैंक की भूमिका है।