आपकी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है असर, सोशल मीडिया पर कोविड की खबरों को देखकर

अप्रैल 2020 में आप जूम बैठकों में और अपने सोशल मीडिया न्यूजफीड के जरिए खबरों को देखने में व्यस्त थे।

Update: 2021-10-23 09:59 GMT
 जनता से रिश्ता वेबडेसक | अप्रैल 2020 में आप जूम बैठकों में और अपने सोशल मीडिया न्यूजफीड के जरिए खबरों को देखने में व्यस्त थे। आपको कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर ''मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है', 'कोविड-19 से स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन असर पड़ सकते हैं' और 'स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली ढह गयी है', जैसे शीर्षक वाले समाचार ही नजर आ रहे थे। आपका मन खराब हो रहा था लेकिन आप स्क्रॉल (कम्प्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर किसी पाठ्य सामग्री को ऊपर/नीचे और दाएं/बाएं करना) करना बंद नहीं कर सकते थे।

अगर आपने भी ऐसी स्थिति का सामना किया तो यकीन मानिए आप अकेले नहीं हैं। अध्ययन से पता चलता है कि लोगों में मुश्किल वक्त में सूचना लेने की प्रवृत्ति होती है -यह किसी स्थिति से उबरने का स्वाभाविक तरीका है। लेकिन सोशल मीडिया से लगातार सूचनाएं लेना, जिसे 'डूमस्क्रॉलिंग' कहा जाता है, क्या महामारी या किसी भी स्थिति के दौरान मददगार है? डूमस्क्रॉलिंग और डूमसर्फिंग का मतलब सोशल मीडिया पर दुखद खबरों को लगातार स्क्रॉल करना है भले ही वे खबरें दिल तोड़ने वाली या तनाव पैदा करने वाली ही क्यों न हो। खराब खबरों का मनोभाव पर पड़ने वाले असर पर अध्ययन से पता चलता है कि कोविड-19 संबंधी नकारात्मक खबरें हमारी भावनात्मक भलाई के लिए हानिकारक हो सकती है। उदाहरण के लिए मार्च 2020 में अमेरिका के 6,000 से अधिक नागरिकों के साथ हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि इसमें भाग लेने वाले लोगों ने एक दिन में कोविड-19 संबंधी खबरों को देखने में जितना समय दिया, उतने ही वे दुखी हुए। ये निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं लेकिन कुछ सवालों का जवाब नहीं देते। क्या डूमस्क्रॉलिंग लोगों को दुखी करता है या दुखी लोग ज्यादा डूमस्क्रॉल करते हैं? डूमस्क्रॉलिंग पर कितना समय बिताना एक समस्या है? और क्या होगा अगर डूमस्क्रॉलिंग के बजाय हम किसी वैश्विक संकट का हल खोजने वाली मानवता संबंधी सकारात्मक खबरें पढ़ें? यह पता लगाने के लिए हमने एक अध्ययन किया जहां हमने सैकड़ों लोगों को दो से चार मिनट के लिए ट्वीटर या यूट्यूब पर वास्तविक दुनिया की कोविड संबंधी आम खबरें या कोविड के दौरान दयालुता की खबरें दिखायी। इसके बाद हमने एक प्रश्नपत्र के जरिए इन लोगों के मूड का पता लगाया और उन लोगों से उसकी तुलना की जिन्होंने ये खबरें नहीं देखी। इसमें पाया गया कि जिन लोगों ने कोविड संबंधी खबरें पढ़ी वे उन लोगों के मुकाबले दुखी थे जिन्होंने ये खबरें नहीं पढ़ी। इस बीच जिन लोगों को कोविड संबंधी सकारात्मक खबरें दिखायी गयी, वे दुखी नहीं पाए गए लेकिन साथ ही उनका मूड पहले के मुकाबले अच्छा नहीं हुआ जैसा कि हमने उम्मीद की थी। ये निष्कर्ष दिखाते हैं कि अगर हम दो से चार मिनट का थोड़ा वक्त भी कोविड-19 के बारे में नकारात्मक खबरें पढ़ने में लगाते हैं तो इसका हमारे मूड पर हानिकारक असर पड़ता है। 

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