सोशल मीडिया के इस्तेमाल से मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ता है।
आज के दौर में सोशल मीडिया का इस्तेमाल सामान्य बात है। मगर एक हालिया अध्यनय की मानें तो हद से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल अवसाद के जोखिम को बढाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज के दौर में सोशल मीडिया का इस्तेमाल सामान्य बात है। मगर एक हालिया अध्यनय की मानें तो हद से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल अवसाद के जोखिम को बढाता है। अध्ययन में सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच संबंधों की जांच की गई और पाया गया कि दोनों साथ-साथ चलते हैं।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और बोस्टन में मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल में सेंटर फॉर एक्सपेरिमेंटल ड्रग्स एंड डायग्नोस्टिक्स के निदेशक डॉ. रॉय पर्लिस का कहना है कि सोशल मीडिया और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध हमेशा से बहस का विषय रहा है।
एक ओर सोशल मीडिया लोगों के लिए एक बड़े समुदाय से जुड़े रहने और अपनी रुचि की चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने का एक तरीका है। दूसरी ओर इन प्लेटफार्मों पर व्यापक गलत सूचनाओं को मान्यता मिलने से पहले ही इस बात की फिक्र थी कि सोशल मीडिया से युवा नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
12 महीनों बाद खराब हुई स्थितिः
नए अध्ययन के दौरान करीब 5,400 वयस्कों की एक साल तक निगरानी की गई और देखा गया कि उनके सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद की शुरुआत में कोई संबंध है। निष्कर्षों में देखा गया कि किसी ने भी हल्के अवसाद की शुरुआत की जानकारी नहीं दी। लेकिन 12 महीनों के बाद तमाम सर्वे में देखा गया कि कुछ प्रतिभागियों में अवसाद की स्थिति बेहद खराब हो गई। तीन बेहद लोकप्रिय सोशल मीडिया साइटों, स्नैपचैट, फेसबुक और टिकटॉक के उपयोग से अवसाद का यह जोखिम बढ़ गया।
अवसाद में सोशल मीडिया के उपयोग की संभावना बढ़ जाती हैः
क्या सोशल मीडिया वास्तव में अवसाद का कारण बनता है? इस बारे में पर्लिस का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे परिणामों का एक संभावित स्पष्टीकरण यह है कि जो लोग अवसाद के जोखिम में हैं, उनमें सोशल मीडिया का उपयोग करने की अधिक संभावना है। भले ही वे वर्तमान में अवसादग्रस्त न भी हों। दूसरा यह कि सोशल मीडिया वास्तव में उस बढ़े हुए जोखिम में और योगदान देता है।
09 प्रतिशत प्रतिभागियों पर दिखा असरः
वयस्क अतिसंवेदनशीलता का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं टीम ने 18 साल और इससे अधिक उम्र (औसत आयु 56 वर्ष) के सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं पर ध्यान केंद्रित किया। शुरुआती सर्वे में सभी ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट, टिकटॉक, ट्विटर, स्नैपचैट और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म के उपयोग के बारे में जानकारी दी। प्रतिभागियों से अवसाद महसूस होने पर सामाजिक सहयोग तक पहुंच के बारे में पूछताछ की गई। पहले सर्वे में किसी में भी अवसाद के कोई लक्षण नहीं दिखे, लेकिन इसका फॉलोअप करने के बाद लगभग 9 प्रतिशत प्रतिभागियों में अवसाद के जोखिम के स्तर में इजाफा देखा गया।
35 साल से कम उम्र के फेसबुक यूजर प्रभावितः
टिकटॉक और स्नैपचैट के उन यूजर में जोखिम बढ़ा हुआ देखा गया, जो 35 साल और उससे अधिक उम्र के थे, लेकिन कम उम्र के यूजर में यह नहीं दिखा। वहीं फेसबुक यूजर के मामले में विपरीत रहा। 35 से कम उम्र के लोगों में डिप्रेशन का खतरा बढ़ा, लेकिन इससे अधिक उम्र के लोगों में ऐसा नहीं था। अभी कारण और प्रभाव स्पष्ट नहीं हैं। फिलहाल शोधकर्ताओं को सोशल मीडिया और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंधों को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।