हर वर्ष पूरे विश्व में 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. मातृभाषा से आशय जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है, उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं. मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है. वह भाषा जो बालक माता की गोद में रहते हुए बोलना सीखता है. माता-पिता के बोलने की और सब से पहले सीखी जाने वाली भाषा है. इसे मां से भी इसलिए जोड़ा गया है क्योंकि जिस तरह से एक नन्हा बालक सबसे ज़्यादा अनुराग अपनी मां से करता है, वही उसकी प्रथम गुरु होती है और वह जो जुड़ाव अपनी मां से रखता है. वही जुड़ाव बचपन में उसका अपनी मातृभाषा से होता है. जैसे मां एक बच्चे को कुछ सिखाए तो वह जल्दी सीखता है, समझता है उसी तरह मातृभाषा में कुछ कहा जाए, सिखाया जाए तो बालक उसे ज़्यादा तीव्र गति से समझ सकता है. मातृभाषा दिवस के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी बच्चों के मानसिक विकास में मातृभाषा की भूमिका को रेखांकित कर रही हैं.
रिश्ता मातृभाषा और अचेतन मन का
कई शोधों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि हमारे व्यक्तित्व, हमारी कल्पनाशक्ति और याद्दाश्त पर हमारे अचेतन मस्तिष्क का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है. बच्चा अपने प्रारम्भिक जीवन में जिन आवाज़ों को सुनता है, उनसे ही सबसे ज़्यादा अचेतन मन से जुड़ाव महसूस करता है और उन्हीं आवाज़ों के मतलब धीरे-धीरे समझना शुरू करता है. ये आवाज़ें बच्चे की मां से जुड़ी होने के कारण, वो उसी भाषा से अपने आपको जोड़ना करना शुरू करता है, जिसे बच्चे की पहली भाषा या मातृभाषा कहते हैं. मातृभाषा के कारण ही बच्चे में भावनाएं और उस भाषा से जुड़ी हुई चीज़ों का मतलब समझने का गुण धीरे-धीरे उत्पन्न होता है. इससे बच्चे के दिमाग़ में शब्दों और उनसे जुड़ी हुई चीज़ों का जुड़ाव विकसित होना शुरू हो जाता है. इससे बच्चे में याददाश्त, कल्पनाशक्ति और पुराने अनुभव को जोड़ने की क्षमता विकसित होने लग जाती है.
आज के आधुनिक समाज में हमारी शिक्षा पद्धति में ज़्यादातर ऐसी भाषा का प्रयोग होता है, जिसे हम सेकेण्डरी लैंग्वेज या इन्टरनेशनल लैन्गवेज कहते हैं. इस कारण ऐसा देखा गया है कि कई बार अभिभावक के सामने इस बात का दबाव होता है कि बच्चे को वो ऐसी भाषा सिखाएं जो उनकी शिक्षा में मदद करे, इस कारण अभिभावक अपने छोटे बच्चों पर घर की बोलचाल की भाषा के अलावा दूसरी भाषा को सीखने का दबाव बनाते हैं. इस वजह से कई बार देखा गया है कि बच्चे अपनी प्रारंभिक शिक्षा के समय में बहुत ज़्यादा कन्फ्यूज़ होते हैं, क्योंकि उनके घर पर बोली जाने वाली भाषा या स्कूल में बोले जाने वाली भाषा एकदम अलग होती है, जिससे उनको चीज़ों को याद करने और समझने में परेशानियां होती हैं. कागनेटिव साइकोलेजिस्ट इस बात को प्रूफ़ कर चुके है कि बच्चा अपने मातृभाषा में ही तेज़ी से सीखता है और तनावमुक्त रहता है.
दूसरी भाषा में पढ़ाई से बच्चे को क्या-क्या परेशानियां हो सकती हैं?
जिन बच्चों की पढ़ाई उनकी मातृभाषा से अलग किसी दूसरी भाषा में होती है वे पढ़ाई में ची़ज़ों को ठीक से समझ नहीं पाते. कक्षा की पढ़ाई हुई ची़ज़ों को ठीक से याद नहीं कर पाते और पढ़ाए गए विषय को रट लेते हैं और उसकी उपयोगिता समक्ष नहीं पाते हैं इस कारण वो ची़ज़ों को जल्दी भूल जाते हैं. कई बार आती हुई चीज़ों को भी ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते हैं. जिससे बच्चे में आत्मविश्वास की कमी, निर्णय लेने की क्षमता ठीक से क्षमता ठीक से विकसित नहीं हो पाती. इस कारण बच्चों में तनाव की भावना उत्पन्न हो जाती है.
ऐसे में सवाल उठता है कि बतौर पैरेंट आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए. तो यह आपकी सबसे पहली ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि बच्चों को शुरुआत में ही मातृभाषा में सिखाएं और पढ़ाएं. बच्चों को ऐसे कार्टून और वीडियो को देखने को प्रेरित करें, जिसमें उसकी मातृभाषा का प्रयोग किया गया हो. बच्चों को शुरुआत से ही दो भाषा सिखाने का दबाव न बनाए. अपनी मातृभाषा में थोड़ा लिखना और पढ़ना सीख जाने पर ही बच्चे को दूसरी भाषा सीखने के लिए उत्साहित करें. एक भाषा का ज्ञान होने के बाद वह दूसरा भाषा भी आसानी से सीख जाएगा.
क्या महत्व है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का?
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले. हर व्यक्ति की भाषा को पूरा सम्मान मिले. संयुक्त राष्ट्र संघ के हिसाब से पूरी दुनिया में कुल 6 हजार से अधिक भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं. इनमें से दो हजार भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वाले लोग अब 1000 से भी कम है. यानी भाषाओं के संरक्षण के लिए सभी को प्रयास करना होगा. आपकी अपनी मातृभाषा को बचाने की सबसे पहली ज़िम्मेदारी आपकी है. और आप अपनी मातृभाषा को तभी बचा सकते हैं, जब आप अपनी अगली पीढ़ी को इसे सिखाएंगे. तो आइए इस विश्व मातृभाषा दिवस पर यह संकल्प लें कि हम अपनी मातृभाषा को विलुप्त होने की कगार पर नहीं पहुंचने देंगे.