MasterChef Australia: घर में इस तरह बनाए हिंदुस्तानी करी मसाला, जाने रेसिपी
ये एक बहुत अच्छी शुरुआत है. पहले की प्रतियोगिताओं में केवल यूरोप के खाने को तरजीह मिलती थी या ऐसा खाना जो उस वक्त यूरोप में प्रचलित हो. यानी खाने-पीने की दुनिया में भी कुछ देशों के खाने को तरजीह दी जाती थी.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस साल का मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया पिछले कई सालों के मास्टर शेफ ऑस्ट्रेलिया से अलग रहा. इस बार घर के बने खाने की धूम रही. जजों ने इस बात का ध्यान रखा कि घर के खाने की उपेक्षा नहीं की जाये. शुरू के मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया में होटल में बने खाने पर ज़ोर दिया जाता था. ऐसा खाना जो घर में नहीं बनता था. लेकिन इस बार बिरयानी से लेकर दाल रोटी, पनीर और भात तक जजों के सामने परोसा गया. ऐसा नहीं है कि होटलों में परोसे जा रहे खाने को वहां बनाया नहीं गया लेकिन इस बात का ध्यान दिया गया कि रोज़मर्रा के खाने को मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया में जगह मिले.
स्थानीय फलों, सब्जियों और मसालों पर दिया गया जोर
पांच साल पहले तक, इस प्रतियोगिता में लोगों को तरह तरह का खाना तैयार करना पड़ता था. इसमें पड़ने वाला सामान ऐसा होता था जो स्थानीय नहीं होता था. यानी स्थानीय स्टोर में वो चीज़ें उपलब्ध नहीं होती थी और इन सब का प्रतियोगिता में इस्तेमाल करना पड़ता था. लेकिन इस बार स्थानीय मसालों, फलों और सब्ज़ियों पर ज़ोर दिया गया. ख़ास तौर से ऑस्ट्रेलिया में उगने वाली सब्ज़ियों और वहां उपलब्ध मसालों पर. इस प्रतियोगिता में कोशिश ये रही कि उसी खाने पर ज़ोर दिया जाये जो चखने में अच्छा हो, केवल दिखने में नहीं. जितने भी प्रतियोगी थे उन्हें अपने धरोहर से जुड़े खाने को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जहां दुनिया भर से लोग आकर रह रहे हैं. कोई चीन से है तो कोई जापान से लेकिन इन सब लोगों ने ऑस्ट्रेलिया को अपना घर बनाया है. इस बार की सीरीज में इन सब लोगों अपने यहां का खाना बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया.
एशियाई खाने को नहीं मिलती थी तवज्जो
ये एक बहुत अच्छी शुरुआत है. पहले की प्रतियोगिताओं में केवल यूरोप के खाने को तरजीह मिलती थी या ऐसा खाना जो उस वक़्त यूरोप में प्रचलित हो. यानी खाने पीने की दुनिया में भी कुछ देशों के खाने को तरजीह दी जाती थी. इसमें मुख्य रूप से ख़ास थे, फ्रांस, चीन, जापान और इटली. यहां की खानपान की पद्यति और तकनीक को खूब तरजीह मिलती थी. यानी दक्षिण पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया के खाने को उतना नफीस नहीं माना जाता था जितना फ्रेंच फूड को माना जाता था.
हिंदुस्तानी करी मसाला ने जीता जजों का दिल
इस बार मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया के विजेता जस्टिन नारायण थे. लेकिन सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रहीं किश्वर जिन्होंने बांग्लादेश के खाने को दुनिया के सामने रख दिया. पहले ऐसा करना थोड़ा मुश्किल होता था क्योंकि तब जज खाना बनाने की विधि को तरजीह देते थे. दक्षिण एशिया में खाने में गरम मसाले का इस्तेमाल, उसकी खुशबू, तरी, सबसे अलग होती है. यानी अपने यहां का खाना चखने से पहले महक से पहचाना जा सकता है. लेकिन इसी का स्वागत किया गया. मछली में हिन्दुस्तानी करी पाउडर पड़ा और जजों ने उससे पसंद किया. बस एक चीज़ की कमी रही और मुझे लगता है वो भी पूरी हो जाएगी. खाने की तरह दुनिया भर में तरह तरह के मीठे हैं. लेकिन आज भी तर्जी फ्रेंच और यूरोपियन मीठे को मिलती है. उसे ज़्यादा नफीस माना जाता है. शायद ऐसा भी दिन आएगा जब पेरू से लेकर लाओस में बने मीठी को पेश किया जाएगा या उससे बनाने को कहा जायेगा.