कहते हैं मां-बाप अपने बच्चों में किसी तरह का भेदभाव नहीं करते. वे अपनी सभी संतानों को एक समान प्रेम करते हैं. पर असल ज़िंदगी में देखा जाए तो यह महज़ किताबी बातें हैं यानी आदर्श रूप से कही जानेवाली बातें. आप किसी भी घर में देखिए हर मां-बाप का कोई फ़ेवरेट बच्चा होता ही है. बच्चों में मां-बाप का कोई ज़्यादा लाड़ला होता है तो कोई कम. ऐसा क्यों होता है? आख़िर क्या वजह है मां बाप के लाड़ले बनने के पीछे?
इस सवाल का जवाब छुपा है इंसान की आदिम कालीन फ़ितरत में
हम आदिम काल के मनुष्यों से अपनी तुलना करें तो वे हमें किसी दूसरे प्राणी की तरह लगेंगे. कहने का साफ़ अर्थ है हम अपने आदिम पूर्वजों से भाषा, संस्कृति और संस्कार के मामले में काफ़ी अलग हो गए हैं. पर एक चीज़ जो हमारे अंदर रह गई है वह है अनजाने में हमारे द्वारा किया जानेवाला व्यवहार. आदिम विकास के दौरान पुरुषों का काम भोजन का इंतज़ाम करना शिकार आदि के द्वारा, जो बाद में कृषि करके होने लगा. इसके अलावा पुरुष का काम परिवार की शिकारी जानवरों और शत्रुओं से सुरक्षा करना था. महिलाओं को घर का ख़्याल रखना, बच्चों की परवरिश करना और परिवार के लिए भोजन पकाना था. पुरुषों के लिए सम्मान प्रिय था और महिलाओं को सुरक्षा. यह हमारी वैचारिकता हमारे आदिम विकास के कारण ही निर्धारित हुई है.
अब बात आती है बच्चों की, तो पिता अपने साथ भोजन की तलाश या शिकार के लिए अपने बेटों को ले जाते थे और बेटियां घर पर अपनी मां के कामों में हाथ बंटाती थीं. पिता को अपने वह बेटे ज्यादा प्रिय थे जो अच्छा शिकार करते थे यानी लक्ष्य को हासिल करते थे. अच्छे शिकारी या योद्धा को उस समय कबीलों में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था. अर्थात जो भी बेटा लक्ष्य हासिल करता था, सम्मान दिलवाता था वह पिता को प्रिय था. यही आज भी है, पिता का हाथ बटाने वाले, लक्ष्य हासिल करने वाले और सम्मान दिलवाने वाले बेटे उन्हें लाड़ले होते हैं. इसके विपरीत गुण वाले बेटे उसके लाड़ले नहीं होंगे.
क्यों अलग होते हैं मां और पिता के फ़ेवरेट बच्चे?
परीक्षा को ऊंचे अंकों के साथ पास करने वाला, ऊंचे पद पर चयनित होने वाला या ऊंची तनख़्वाह पाने वाला बेटा पिता को अन्य बेटों से ज्यादा लाड़ला होगा. पुरुषों को बेटियां वह लाड़ली होंगी जो उसका एक मां की तरह ख़्याल रखें और पुत्रों की ही तरह उसके सम्मान को बढ़ाएं. यदि बेटियों के द्वारा ऐसा कोई काम कर दिया जाए जिससे पिता की इज़्ज़त या सम्मान को ठेस पहुंची हो तो अपनी लाड़ली बेटी से नफ़रत करने लगेगा यदि सम्मान को बहुत ज्यादा आघात पहुंचा हो तो हो सकता है वह पिता अपनी बेटी को मार भी डाले क्योंकि पुरुषों के लिए सम्मान ही सबकुछ है. ऑनर किलिंग की घटनाएं कहीं न कहीं इसी मनोविज्ञान से प्रभावित होती हैं.
मां के लिए वे बेटे ज़्यादा लाड़ले होंगे जो उसके सामने भावनाओं का प्रदर्शन करें, उसकी समस्याओं को ग़ौर से सुने और सबसे बढ़कर उसे सुरक्षा (आर्थिक और सामाजिक) प्रदान करे. इसके विपरीत गुण वाला बेटा उसका लाड़ला नहीं बन पाएगा. चूंकि यह गुण (सुरक्षा) वाला लड़कियों में आधुनिक काल से कुछ समय पहले तक लगभग नहीं था इसलिए मां बेटों से ज़्याददा प्रेम करती हैं बेटियों की अपेक्षा. लेकिन अब चूंकि पाषाण युग और कृषियुग के बाद औद्योगिक क्रांति तथा संचार क्रांति होने से बेटियां भी लड़कों के बराबर तनख़्वाह पा रही हैं और क़ानून व्यवस्था के द्वारा सुरक्षा का भी भरोसा दिलवा रही हैं इसलिए अब वे भी मां की लाड़ली बन रही हैं...और इसमें वृद्धि ही होगी.