ब्रेस्टफीडिंग पर डब्लूएचओ के आंकड़े
डब्लूएचओके अनुसार, बच्चे की सेहत और सर्वाइवल को सुनिश्चित करने के लिए स्तनपान सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है. यदि आंकड़ों की बात की जाए तो आज भी 3 में से लगभग 2 शिशुओं को अनुशंसित 6 महीनों के लिए स्तनपान नहीं कराया जाता है. इस दर में पिछले दो दशकों में कोई सुधार नहीं देखा गया है. इतना ही नहीं, विश्व स्तर पर, प्रत्येक 5 में से 3 शिशुओं को जन्म लेने के पहले घंटे में स्तनपान नहीं कराया जाता है. वहीं, 6 महीने से कम उम्र के केवल 41% शिशुओं को ही विशेष रूप से स्तनपान कराया जाता है. यदि 0-23 महीने के सभी बच्चों को बेहतर तरीके से स्तनपान कराया जाए, तो सालाना 8,20 000 से अधिक बच्चों को बचाया जा सकता है.
स्तनपान कराने से मां-शिशु को होते हैं कई फायदे
हीरानंदानी हॉस्पिटल- फोर्टिस नेटवर्क हॉस्पिटल (वाशी, मुंबई) की कंसल्टेंट गाइनोकोलॉजिस्ट और ऑब्सटेट्रिशियन डॉ. मंजिरी मेहता कहती हैं ब्रेस्टीफीडिंग हर मां और बच्चे के लिए बेहद ज़रूरी और फायदेमंद होता है. ब्रेस्टफीडिंग से प्रेग्नेंसी के कारण बढ़े हुए वजन को कम करने में मदद मिलती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ब्रेस्टफीडिंग करने में कैलोरी की आवश्यकता बहुत अधिक होती है. इससे कैलोरी घटाने में मदद मिलती है. लॉन्ग टर्म में ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन कैंसर, ऑस्टियोपोरोसिस आदि होने की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है. साथ ही मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसे हाई ब्लड प्रेशर, अर्थराइटिस, हार्ट डिजीज, टाइप-2 डायबिटीज, एंडोमेट्रिओसिस के भी होने का जोखिम कम हो जाता है. शिशु को स्तनपान कराने से हर तरह के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं. मां का दूध पीने वाले बच्चों में कान का इंफेक्शन, रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, डायरिया, अस्थमा, एलर्जिक प्रॉब्लम्स, मोटापा आदि होने की संभावना कम रहती है. ब्रेस्टमिल्क में एंटीबॉडीज होते हैं, जो नवजात शिशु को कई तरह के इंफेक्शन, वायरस, बैक्टीरिया से बचाए रखते हैं. ऐसे बच्चों का आईक्यू लेवल भी अधिक होता है. शिशु के जन्म के बाद महिलाओं के स्तनों से निकलने वाले यलो रंग का लिक्विड (अर्ली ब्रेस्ट मिल्क) बच्चों को ज़रूर देना चाहिए, क्योंकि यह इम्यूनिटी को मजबूत करता है. यदि किसी महिला को बिल्कुल ही दूध ना बने, तो फॉर्मूला मिल्क देना ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन दूध बन रहा हो और तब शिशु को ब्रेस्टफीड ना कराना बच्चे की सेहत के लिए सही नहीं है.
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कैसी हो मां की डाइट
बच्चे को जन्म देने के बाद कई बार कुछ महिलाओं को काफी कम मात्रा में दूध बनता है, जिससे शिशु का पेट पूरी तरह से भर नहीं पाता है. इसके लिए आप हेल्दी डाइट के जरिए दूध के प्रोडक्शन और उसकी क्वालिटी को बढ़ा सकती हैं. मैक्स हॉस्पिटल (साकेत) की रीजनल हेड-साउथ जोन, न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स रितिका समद्दार कहती हैं कि जब लैक्टेशन की बात होती है, तो इस दौरान जो भी कैलोरी, प्रोटीन और अन्य ज़रूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की आवश्यकता होती है, वे प्रेग्नेंसी के समय से कहीं ज्यादा होती है. अक्सर, महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान हेल्दी डाइट लेती हैं, लेकिन डिलीवरी के बाद अपने खानपान पर अधिक ध्यान नहीं देती हैं. आप ब्रेस्टफीड करा रही हैं, तो हेल्दी डाइट लें, क्योंकि इसके जरिए शिशु का संपूर्ण विकास होता है. यदि मिल्क प्रोडक्शन सही से नहीं हो रहा है, तो दूध के निर्माण को बढ़ाने के लिए डाइट में प्रोटीन अधिक शामिल करें. डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, तरल पदार्थ में पानी, जूस या कोई भी लिक्विड दिन भर लेती रहें. ये सभी मिल्क प्रोडक्शन को बढ़ाते हैं. बहुत अधिक मिर्च-मसालेदार, तली-भुनी चीजें, हेवी खाना, बाहर का खाना खाने से परहेज करें, क्योंकि इससे बच्चे को इंफेक्शन, गैस आदि हो सकता है. साबूदाना, कुछ खास तरह की मछली, अजवायन का पानी पी सकती हैं, ये भी मिल्क प्रोडक्शन को बढ़ाते हैं. 6 महीने तक बच्चे को सिर्फ दूध पिलाएं, उसके बाद सप्लीमेंटेशन स्टार्ट कर सकते हैं. फल, अनाज में चावल, बाहर का दूध, कुछ सब्जियां, आलू, गाजर, अंडे की जर्दी, चिकन, दालें ये सब 8 से 10 महीने के बाद कम मात्रा में देना शुरू कर सकती हैं.
ब्रेस्ट मिल्क प्रोडक्शन में कारगर आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
आयुर्वेदिक पंचकर्मा हॉस्पिटल (प्रशांत विहार, दिल्ली) के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. आर. पी. पाराशर कहते हैं जिन बच्चों को मां का दूध नहीं मिल पाता, उन बच्चों का शारीरिक विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता. ऐसे बच्चों में अक्सर पेट संबंधी बीमारियां रहती हैं. उनकी इम्यूनिटी भी कमजोर रहती है. आयुर्वेद में ऐसी कई जड़ी बूटियां मौजूद हैं, जिन्हें लेन से पर्याप्त मात्रा में मां के शरीर में दूध का उत्पादन होता है. स्तनपान कराने वाली मांओं के शरीर में दूध का उत्पादन कम होने के कई कारण होते हैं, जैसे बड़ी उम्र में शादी और गर्भधारण करना, नियमित रूप से स्तनपान न कराना, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा जैसी समस्याओं से पीड़ित होना, समय से पहले बच्चे का जन्म होना, गर्भावस्था के दौरान शराब, धूम्रपान या नशीली दवाओं का सेवन करना आदि. यदि दूध कम बन रहा है, तो जीवंती, कांबोजी, शतावरी, मेथी, चक्रफूल, दालचीनी, जीरा, सौंफ, अदरक आदि अनेक औषधीय हैं, जो ब्रेस्ट मिल्क का उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं.
शतावरी का उपयोग दूध बढ़ाने के लिए सदियों से किया जाता रहा है. जीरे को दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक प्रभावी औषधि माना जाता है. इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में होता है, जो स्तनपान कराने वाली मां को आवश्यक ऊर्जा देने में सहायक होता है. दालचीनी, सौंफ भी दूध की आपूर्ति बढ़ाते हैं. सौंफ शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ाती है. एस्ट्रोजन एक ऐसा हार्मोन है, जो दूध उत्पादन बढ़ाने में भी मदद करता है. मेथी के बीजों में गैलेक्टागॉग नामक तत्व होता है, जो मिल्क प्रोडक्शन को बढ़ाने में कारगर होता है. साथ ही यह शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को भी बढ़ाते हैं. वहीं, चक्रफूल में न केवल एस्ट्रोजेनिक गुण होते हैं, बल्कि यह अवरुद्ध दुग्ध नलिकाओं को खोल कर दूध की आपूर्ति बढ़ाने में भी सहायक होता है.