हर नवजात को जन्म के समय एंटीबायोटिक देना जरूरी नहीं, जानें ये नया अध्ययन
अस्पतालों में नवजात बच्चों को जन्म के तुरंत बाद आमतौर पर एंटीबायोटिक दिये जाते हैं, लेकिन एक नया अध्ययन कहता है कि सबको इनकी जरूरत नहीं होती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अस्पतालों में नवजात बच्चों को जन्म के तुरंत बाद आमतौर पर एंटीबायोटिक दिये जाते हैं, लेकिन एक नया अध्ययन कहता है कि सबको इनकी जरूरत नहीं होती है। अंतरराष्ट्रीय अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि बिना जटिल सिजेरियन प्रक्रिया या बिना प्रसव पीड़ा के जन्मे और जिनमें संक्रमण की संभावना न हो, ऐसे नवजात बच्चों को जन्म के तुरंत बाद एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं होती है। यह शोध 'पीडीऐट्रिक्स जर्नल' नामक पत्रिका में प्रकाशित है।
अमेरिका के फिलाडेल्फिया राज्य में स्थित चिल्ड्रंस हॉपिस्टल के क्लीनिकल रिसर्चर और नवजात बच्चों की दवाओं के विशेषज्ञ डस्टिन डी. फ्लैनरी ने कहा कि नवजात बच्चों में जन्म के साथ ही रोगाणुता की शुरुआत होने की आशंका के चलते उन्हें जन्म के तुरंत बाद एंटीबायोटिक देने में कुछ भी हैरत करने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, हमारा अध्ययन कहता है कि समय पूर्व जन्मे बच्चों सहित कम जोखिम भरे प्रसव से जन्मे बच्चों को एंटीबायोटिक नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसे नवजातों में जन्म के वक्त संक्रमित होने की संभावना नहीं है और ऐसा कर इन्हें प्रणालीगत एंटीबायोटिक जोखिम की संभावित जटिलताओं से बचाया जा सकता है।
बता दें नवजात बच्चों में जन्म के वक्त अर्ली-ऑनसेट सेप्सिस (ईओएस) यानी एक जानलेवा संक्रमण की आशंका रहती है, जिसके प्रसव प्रक्रिया के कारण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के चलते जन्म के बाद अगले 72 घंटों में होने के आसार रहते हैं।
हालांकि, ईओएस किस नवजात को होगा, इसका अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि नजवात बच्चों में एंटीबायोटिक का लंबा इस्तेमाल संभावित दीर्घकालिक परेशानियों सहित अन्य गंभीर विपरीत नतीजों से जुड़ा हुआ है।
चूंकि नवजात, प्रसव प्रक्रिया के दौरान बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं, तो शोधकर्ताओं ने यह देखने के लिए कि क्या वे ईओएस के कम जोखिम वाले नवजातों की पहचान कर सकते हैं, उन्होंने डिलीवरी से जुड़े लक्षणों का विश्लेषण करने का फैसला किया।
एक पूर्वप्रभावी अध्ययन में उन्होंने 2009 से लेकर 2014 के बीच फिलाडेल्फिया के दो अस्पतालों में जन्मे उन सभी नवजात बच्चों का आकलन किया, जिनका जन्म के 72 घंटे के भीतर ब्लड टेस्ट किया गया था।
सिजेरियन 'कम जोखिम भरा' के रूप में वर्णित:
अध्ययनकर्ताओं ने संक्रमण और प्रसव संबंधी लक्षणों की पुष्टि के लिए मेडिकल रिकॉर्ड डाटा की पड़ताल की। इस दौरान सिजेरियन, मातृ अंतर्गर्भाशयी संक्रमण या गर्भस्थ शिशु की बीमारी को 'कम जोखिम भरा' के रूप में वर्णित किया गया।
बिना प्रसव पीड़ा के जन्मे बच्चों में ईओएस नहीं:
अध्ययन में पाया गया कि कुल 7,549 नवजात बच्चों का कल्चर या ब्लड टेस्ट किया गया था और इनमें से 1,121 (14.8 फीसदी) कम जोखिम भरे प्रसव के जरिये जन्मे थे, जबकि 6,428 (85.2 फीसदी) का जन्म जोखिम भरे प्रसव से हुआ था। हालांकि, कम जोखिम वाले प्रसव से जन्मे नवजातों में ईओएस नहीं हुआ। इसके बावजूद इनमें से 80 फीसदी को एंटीबायोटिक दिये गए।
फ्लैनरी ने कहा कि हमारा शोध दिखाता है कि इन नवजातों में से एक बड़े वर्ग में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होनी चाहिए थी।