डीयू के स्टूडेंट्स भी ले रहे तंदूरी चाय का मज़ा
नॉर्थ दिल्ली में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास मुखर्जी नगर रिहायशी इलाका है. यह कॉलेज के छात्रों का पसंदीदा स्थल है. कारण, यहां पर प्राइवेट हॉस्टल बहुत अधिक है, या छात्र अलग से किराए के मकान पर रहना चाहते हैं तो वह भी उपलब्ध है. इसी मुखर्जी नगर इलाके में सालों पुराना बत्रा सिनेमा है. उसके पीछे कमर्शियल कॉंम्प्लेक्स स्थित सतीजा हाउस में 'इंजीनीयर्स तंदूरी चाय' (Engineer'ss Tandoori Chai) की दुकान खुली हुई है. इसके ऑनर युवा इंजीनियर्स हैं और इस दुकान पर कुल्हड़ वाली चाय के अलावा कुछ नहीं मिलता है. हां, हल्का-फुल्का स्नैक्स जरूर मिलता है, जिसमें मठरी, बिस्कुट, फैन, रस्क आदि शामिल है. कुल मिलाकर चाय पीने वाले युवाओं व स्टूडेंट्स का यह नया ठिया बन गया है, क्योंकि यहां मिलने वाली चाय आम चाय से बिल्कुल ही अलग है. स्टूडेंट्स का कहना है कि यह चाय उनके 'दिल-दिमाग की बत्ती' जला देती है, जिसके बाद पढ़ने का मजा ही अलग है.
मिट्टी की सौंधी महक से भरी चाय
यह तंदूरी चाय बनती कैसे है, पहले यह समझ लें ताकि हम उसके स्वाद से 'तारतम्य' बिठा सकें. पहले चाय को सामान्य तरीके से बनाया जाता है, यानी केतली में कुचली हुई अदरक, चीनी-पत्ती और दूध को अच्छी तरह से उबालकर उसके कड़क कर लिया जाता है. अब इस चाय में 'तंदूर का प्रवेश' होता है. असल में एक तंदूर में कुल्हड़ डालकर उन्हें धधकाया जाता है. जब ये कुल्हड़ आग से लाल होने की सीमा तक पहुंच जाते हैं तो संडासी (Pincers) से एक कुल्हड़ को निकाला जाता है. इस कुल्हड़ में जब चाय डाली जाती है तो वह और उबलने लगती है. इस तंदूरी कुल्हड़ के नीचे धूपिया (धातु का बड़ा दीया जैसा बर्तन) रखा जाता है.
कुल्हड़ से उबलती चाय धूपिया में आकर गिरती है और उसे तुरंत ही दूसरे कुल्हड़ में भरकर सर्व कर दिया जाता है. इस चाय का स्वाद तो अलग ही बन पड़ता है, साथ ही चाय मिट्टी की सौंधी-सौंधी महक में डूबने-उतराने लगती है. यह तंदूरी चाय मात्र 20 रुपये की है. कटिंग चाय चाहिए तो वह 15 रुपये में मिल जाएगी. वैसे इस दुकान पर नॉर्मल चाय भी मिलती है जो 10 रुपये की है, लेकिन वह भी परोसी कुल्हड़ में ही जाती है.
इस तरह तंदूरी चाय का खुला 'ठिया'
यह दुकान अभी हाल में खुली है और इसे युवा इंजीनियर लवकुश भदौरिया ने शुरू किया है. असल में तीन साल पहले लवकुश ने अपने चार छात्र दोस्तों के साथ इसी कॉम्प्लेक्स में तंदूरी चाय की दुकान खोली थी. चाय की नई अवधारणा थी, वह चल निकली. बाद में दोस्त व्यस्त होते गए और कुछ मसलों पर उनमें असहमति भी उबरने लगी, जिसके बाद दुकान का शटर 'गिर' गया. बीटेक लवकुश भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करने लगे, लेकिन जो 'स्टार्टअप' उनके दिमाग में घुस गया था, वह निकल नहीं पा रहा था. कई माह तक दिल-दिमाग में विचार चला और इंजीनियरिंग पर तंदूरी चाय हावी होती चली गई. नौकरी से इस्तीफा दिया और दोबारा से अकेले ही दुकान खोल बैठे. उनका कहना है कि तंदूरी चाय मेरा जुनून है, इसे मरने नहीं दूंगा. लंबी योजना है उनकी. वैसे उनका अगला फोकस यहीं पर ही टर्किश कॉफी भी बेचने का है. दुकान पर सुबह 9 बजे चाय मिलना शुरू हो जाती है और रात 10 बजे तक उसका मजा लिया जा सकता है. अवकाश कोई नहीं है.