क्या आप जानते हैं अंतरिक्ष में टॉयलेट कहां होते हैं और एस्ट्रोनॉट्स कैसे करते हैं इस्तेमाल?

Update: 2023-08-23 11:00 GMT
अंतरिक्ष की दुनिया बहुत ही अलग है. ये दुनिया दूर से जितनी लुभावनी नजर आती है, इसका सफर उतना ही मुश्किल है. जीरो ग्रेविटी की वजह से अंतरिक्ष यात्रियों को कई दिक्कतें भी उठानी पड़ती हैं. इससे जुड़े आपने बहुत से वीडियो और फोटोज भी देखे होंगे. एस्ट्रोनॉट्स की बॉडी लगातार फ्लोट करती रहती है. वे खाने से लेकर सोने और यहां तक की काम करना भी ऐसे ही फ्लोट करते हुए करते हैं.
लेकिन क्या आपके मन में कभी ये सवाल आया है कि एस्ट्रोनॉट्स ऐसे फ्लोट करते हुए टॉयलेट का इस्तेमाल कैसे करते हैं? ऐसे ही तमाम सवालों के बारे में आप यहां जान सकते हैं.
एलन शेपर्ड की कहानी
चांद पर पहुंचने से पहले बहुत से प्रयास किए गए थे. कई प्रयास के बाद नील आर्म स्टॉर्म ये करने में सफल रहे. बता दें कि 1961 में एलन शेपर्ड अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले यात्री थे. तब वहां रुकने की समय सीमा बहुत ही कम थी. ये लगभग 15 मिनट के आसपास थी. ऐसे में एलन शेपर्ड को उस तरीके से तैयार करके भेजा गया था. चाहे फिर वो कम फाइबर वाला खाना खिलाकर भेजना ही क्यों न हो. लेकिन इस यात्रा के दौरान उनके टॉयलेट जाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. जिसके चलते उन्हें पेशाब की शिकायत हुई और मिशन कंट्रोल से इसकी इजाजत मांगने लगे जिसके बाद उनका स्पेस सूट गीला हो गया था. इसके चलते सेंसर से जुड़ी परेशानियां भी हो गई थीं.
साल 2000 का शौचालय
इन दिनों स्पेस स्टेशन में शौचालय होते हैं. बता दे कि साल 2000 में एक ऑकेजनली डिजाइन शौचालय बनवाया गया. ये पुरुषों के लिए बनाया गया था. महिलाओं को इसे इस्तेमाल करने में बहुत परेशानी होती थी. इसके अलावा इसे साफ रखने में भी परेशानी होती थी. इन्हीं सबके चलते नासा ने साल 2018 में एक अच्छी खासी रकम लगाकर एस्ट्रोनॉट्स के लिए नया और आसानी से इस्तेमाल किया जाना वाला टॉयलेटबनाया.
कैसे किया जाता है टॉयलेट इस्तेमाल
ये शौचालय हैंडहेल्ड और फुटहोल्ड हैं. इससे एस्ट्रोनॉट्स को परेशानी नहीं होती है. एस्ट्रोनॉट्स बैठ भी सकते हैं और खड़े भी हो सकते हैं. इन टॉयलेट का इस्तेमाल एस्ट्रोनॉट्स धरती पर इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालय की तरह ही करते हैं. इसमें भी ढक्कन उठाकर सीट पर बैठना होता है. ये टॉयलेट सीट आपके घर की तुलना में छोटी होती है.
कैसे काम करता है टॉयलेट
ये टॉयलेट वैक्यूम की तरह काम करता है. ये हवा के जरिए आपके कचरे को एक टैंक में ले जाता है. इसे हर दस दिन में बदला जाता है. ये टैंक एयर टाइट कंटेनर होते हैं. अंतरिक्ष यात्री अपने साथ टॉयलेट पेपर, दस्ताने और वाइप्स रखते हैं. इससे सबकुछ साफ रखा पाते हैं. टैंक भरने के बाद इसे कार्गो शिप में लोड किया जाता है. स्पेस स्टेशन में ले जाकर इसे पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में जला दिया जाता है. कभी- कभी शौच को पृथ्वी पर लाकर इस पर स्टडी भी की जाती. स्पेस में पानी रखना काफी मुश्किल है. ये काफी हैवी होता है. इसलिए अंतरिक्ष यात्री पेशाब को ही रीसायकल करके इस्तेमाल करते हैं.
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