इस वीकेंड जरूर घूमें मिर्जा गालिब की हवेली, दीवारों पर मिलेंगी प्रेम से भरी शायरियां

दीवारों पर मिलेंगी प्रेम से भरी शायरियां

Update: 2023-08-20 06:49 GMT
दशकों पहले एक शायर ने यह सवाल पूछा था, 'न था कुछ तो खुदा था.... कुछ न होता तो खुदा होता, डुबोया मुझको होने ने न होता... मैं तो क्या होता...' इस सवाल का जवाब अभी तक दे पाना किसी के लिए मुमकिन नहीं हो सका.....यह सवाल था शायरी की दुनिया के शहंशाह मिर्ज़ा गालिब का.....जो अपनी बेबाक शेर-ओ-शायरी के लिए जाने जाते हैं।
दिल्ली में रहने वाले ऐसे मशहूर शायर जिन्होंने अंग्रेजों और मुगलों के जमाने में अपना नाम रौशन किया था। कहा जाता है गालिब की शायरी एक नशे की तरह है, जिनका पढ़ा जाए उतना कम.....गालिब की शायरी को लेकर प्यार, इश्क और मोहब्बत की दास्तां लिखी जा सकती है। उनके कई शेर माहौल में मदहोशी घोल देते हैं और टूटे हुए दिल की दास्तां भी सुनाते हैं।
गालिब की शायरी का दर्द कहीं ना कहीं उनके जीवन की कहानी था। जी हां, यह दर्द गालिब की हवेली में आपको जरूर देखने को मिलेगा। अगर आप शहंशाह मिर्ज़ा गालिब को जानना और समझना चाहते हैं, तो एक बार गालिब की हवेली में जरूर जाएं।
 अब यह हवेली गालिब म्यूजियम बन चुकी है, लेकिन कहा जाता है कि गालिब ने अपनी जिंदगी को आखिरी रात बल्लीमारान की इसी हवेली में काटी थी।
गालिब की हवेली का इतिहास
वैसे तो शायर आगरा के रहने वाले थे, जिनका जन्म सन 1797 को काला महल नामक एक जगह पर हुआ था। मगर 11 साल की उम्र में ही गालिब दिल्ली चले आए और 1812 में उमराव बेगम से शादी कर ली। दिल्ली वही जगह है जहां असदुल्ला बेग खां ने गालिब के नाम से शायरी लिखना शुरू किया। इसलिए कहा जाता है कि गालिब का जन्म दिल्ली में हुआ।
मगर 19वीं सदी में यह हवेली गालिब की रहने की जगह थी। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने यह घर कभी खरीदा नहीं थी, बल्कि एक हकीम ने उपहार के तौर भेंट किया था। कहते हैं कि गालिब ने आखिरी साल इसी घर में बिताए थे।
गालिब की हवेली में क्या है खास?
गालिब की हवेली में सिर्फ शायरी ही नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी से जुड़ी चीजों को देखने का भी मौका मिलेगा। हवेली के अंदर जाते ही आपको गालिब के संगमरमरी बुत पर कई किताबें रखी हुई मिलेंगी। (दिल्ली की शान हैं ये 5 महल और हवेलियां)
गालिब और उनके परिवार द्वारा इस्तेमाल किए गए सामानों, बर्तनों और कपड़ों को शीशे के फ्रेमों में दिखाया गया है। हवेली के बड़े से गलियारे में गालिब की आदमकद पेंटिंग हैं, जिसमें वह हुक्का पीते हुए दर्शाए गए हैं।
गालिब की हवेली की दीवारों मिलेंगी शायरियां
हवेली की दीवारों पर उर्दू और हिंदी में गालिब की शायरियां लिखी गई हैं। इतना ही नहीं, गालिब के अलावा दूसरे फेमस शायरों के चित्र भी यहां मौजूद हैं जैसे- उस्ताद जौक, हकीम मोमिन खां मोमिन और अबू जफर।
यही वजह है कि हर साल 27 दिसंबर को गालिब के जन्मदिन के मौके पर यहां मुशायरे का आयोजन होता है। बता दें कि यहां रखी हुई गालिब की मूर्ति का उद्घाटन 2010 में किया गया था। इसे मशहूर मूर्तिकार रामपूरे ने बनाया है।
राष्ट्रीय धरोहर है गालिब की हवेली
अब हवेली इतने खास शायर की हो...तो देखभाल करना लाजमी है। इसलिए कुछ समय बाद गालिब की हवेली को भारतीय पुरातत्व विभाग ने धरोहर घोषित कर दिया है। यहां मौजूद हर चीज और किस्से को सुरक्षित करके रखा गया है।
आप यहां गालिब की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों को भी यहां पढ़ सकते हैं- जैसे गालिब को खाने में क्या पसंद था, शायरी लिखने के अलावा गालिब के शौक क्या थे। (आखिर मिर्जा गालिब की प्रेम कहानी क्यों नहीं हुई पूरी?)
मिर्जा गालिब की हवेली कहां है?
गालिब साहब की हवेली पर बात करने से पहले मुझे गुलजार साहब का एक शेर याद आ गया.... उन्होंने कहा था कि... इसी बेनूर अंधेरी-सी गली कासिम से, एक तरतीब चिरागों की शुरू होती है। एक कुरान-ए-सुखन का सफहा खुलता है, असदुल्लाह खां गालिब का पता मिलता है....अगर आप भी गालिब का पता ढूंढ रहे हैं, तो दिल्ली के चांदनी चौक से सटा इलाका बल्लीमारां की भूलभुलैया जैसी गलियों में थोड़ा घूमिए।
टहलते हुए वहां आपको एक गली नजर आएगी.... गली का नाम है कासिम जान। उसी गली में मस्जिद के पास ही मिर्जा गालिब की हवेली है। उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब की हवेली को देखना आपके लिए बिल्कुल अनोखा अनुभव होगा।
कब और किस दिन देखने जा सकते हैं गालिब की हवेली?
इस हवेली को आप सुबह 11 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक देख सकते हैं। मगर सोमवार और सरकारी छुट्टी वाले दिन यहां न आएं ,क्योंकि यह बंद रहती है। यहां जाने के लिए कोई टिकट नहीं है।
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