लक्षण क्या हैं ड्राइ आई सिन्ड्रोम के?
इसके कॉमन लक्षणों में आंखों में जलन, दर्द, भारीपन, रोशनी के प्रति सेन्स्टीविटी और लालामी प्रमुख हैं। इसके अलावा आंखों में रेत होने का एहसास, आंखों में या चारों ओर स्ट्रिंजी म्यूकस, सूजन, आंसू में पानी की लेयर न होना, दृष्टि धुंधलाना, पढ़ने या कम्प्यूटर पर आंखों का जल्द थकना, रात में ड्राइविंग में परेशानी और कॉन्टेक्ट लेंस पहनने में कठिनाई जैसे लक्षण महसूस होते हैं।
क्यों होती है यह बीमारी?
हमारे आंसुओं में तीन लेयर (परतें) होती हैं, इनमें सबसे बाहरी लेयर ऑयली, मिडल लेयर पानी की और अंदरूनी लेयर म्यूकस वाली होती हैं। आंख की जो ग्रन्थि (ग्लैंड) आंसू के ये भिन्न-भिन्न तत्व बनाती है उसमें खराबी आने (जैसेकि सूजन) से इनका बनना कम या बंद हो जाता है। कुछ मामलों में सूजन न आने पर भी ग्लैंड आंसुओं के ये एलीमेंट बनाना बंद कर देती है। जब आंसू में ऑयल की परत नहीं होती तो बीच वाली परत का पानी जल्द सूखने से आंख में जरूरत के मुताबिक नमी नहीं रूक पाती जिससे ड्राइ आई सिन्ड्रोम की कंडीशन बनती है। बहुत से मामलों में यह कंडीशन इन वजहों से भी होती है-
– महिलाओं का मेनोपॉज सहज बनाने या किसी अन्य कारण से हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेना।
– सर्दियों में सूखी हवा से लम्बा एक्सपोजर जैसे पूरी रात हीटर चलाकर रखना इत्यादि।
– लम्बे समय तक बर्थ कट्रोल पिल्स लेना या किसी एलर्जी से।
– आंखें कम झपकाना और एक्सट्रीम (बहुत गर्म या ठंडे) वातावरण में रहना।
– लेसिक आई सर्जरी और लम्बे समय तक कॉन्टेक्ट लेंस पहनना।
– हाई ब्लड प्रेशर (बीटा ब्लॉकर), नींद और एंग्जॉयटी दूर करने वाली दवाओं से।
– अनियन्त्रित डॉयबिटीज और हर्पीज जोस्टर से।
– कम्प्यूटर या मोबाइल फोन की स्क्रीन को लम्बे समय तक देखना।
– एंटीहिस्टामाइन्स, नेजल डिकन्जेस्टेन्ट्स, बर्थ कंट्रोल पिल्स और एंटी डिप्रेसेन्ट्स दवाओं से।
– शरीर में विटामिन ए और विटामिन डी की कमी से।
– आई लाइनर, मस्कारा इत्यादि से आंखों का नियमित मेकअप करने से।
किन्हें है ज्यादा रिस्क?
इस रोग का रिस्क सबसे ज्यादा 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को रहता है और पुरूषों की अपेक्षा महिलायें इससे ज्यादा पीड़ित होती हैं। गर्भवती और मेनोपॉज की ओर बढ़ रहीं तथा हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेने वाली महिलाओं को अधिक रिस्क रहता है। इस नेत्र रोग पर हुए शोध के मुताबिक विटामिन ए की कमी, क्रोनिक एलर्जी, थॉयराइड डिसीस, ल्यूपस, रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस, ऑटो इम्यून डिसीस से पीड़ित, बिना आंख झपकाये काम करने वालों और आंखे खोलकर या अधखुली आंखों से सोने वाले (केराटाइटिस एक्सपोजर) लोगों को भी इसके होने के चांस अधिक होते हैं। रिसर्च से पता चला है कि कम्प्यूटर और मोबाइल फोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट से इसका रिस्क बढ़ जाता है।
पुष्टि कैसे होती है?
इसकी पुष्टि के लिये नेत्र विशेषज्ञ मेडिकल हिस्ट्री मालूम करने के साथ लक्षणों पर ध्यान देते हैं और आंखों की एक्सटीरियर जांच के साथ टीयर डक्ट, आईलिड इत्यादि को जांचते हैं। पीड़ित के आंख झपकाने के पैटर्न को भी रिकार्ड किया जाता है। आंख की अंदरूनी जांच के तहत कार्निया की जांच के साथ आंख से निकले आंसू पर बनने वाली टियर फिल्म की क्वालिटी भी जांचते हैं। जब इस रोग की पुष्टि हो जाती है तो डाक्टर रोग की गम्भीरता के अनुसार ट्रीटमेंट प्लान बनाते हैं।
इलाज क्या है?
आमतौर पर इसे क्रोनिक कंडीशन माना जाता है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से मैनेज कर सकते हैं हालांकि इसकी पूरी तरह से क्योर नहीं है। इस रोग का इलाज चार तरह से होता है-
– आंखों में आंसू बढ़ाना।
– आंखों में आंसू मेन्टेन करना।
– आंखों में आंसुओं के बनने की प्रक्रिया ट्रिगर करना।
– आंख में किसी भी तरह की सूजन का इलाज करना।
इसका सबसे आसान इलाज आंखों में नमी बढ़ाने वाले आई ड्रॉप का प्रयोग है, इसके अलावा रोग की माइल्ड कंडीशन में आर्टीफिशियल टीयर्स (कृत्रिम आंसू) भी फायदा करते हैं, ऐसी अवस्था में इन्हें दिन में चार बार प्रयोग करना पड़ता है।
कौन सा आई ड्रॉप अच्छा है?: इसके इलाज में ओटीसी अर्थात ओवर द काउंटर मेडिकेशन में आई ड्रॉप्स, आई जेल्स और ऑइन्टमेंट प्रयोग होते हैं। आज की तारीख में आंखों में नमी मेन्टेन करने के लिये सैकड़ों उत्पाद मौजूद हैं। डा। मेरी। डी। एसियेरनो के अनुसार कार्बोक्सीमेथाइलसेल्यूलोज़ इसके इलाज और दवाओं में प्रयोग किया जाने वाला प्रभावी रसायन है। आप किसी अच्छी कम्पनी का कोई भी ऐसा आई ड्रॉप ले सकते हैं जिसमें कार्बोक्सीमेथाइलसेल्यूलोज़ और पोटेशियम इलेक्ट्रोलाइट हो।
लेक्रिमल प्लग: इलाज के दूसरे तरीके में डाक्टर लेक्रिमल प्लग प्रयोग करते हैं इसमें आंखों के कोनों में बने ड्रेनेज होल्स को इन प्लग के जरिये ब्लॉक किया जाता है जिससे आंसुओं का लॉस घटने से आंखों में देर तक नमी रहती है। यह दर्दरहित और रिवर्सेबल प्रोसीजर है। जब रोग का कष्ट कम हो जाता है तो इन प्लग को रिमूव कर देते हैं। लेकिन गम्भीर स्थिति में इसे स्थायी समाधान के तौर पर प्रयोग किया जाता है।
मेडीकेशन: यदि ड्राइ आई सिन्ड्रोम का कारण आंखों में सूजन है तो डाक्टर एंटी-इन्फेल्मेटरी आई ड्रॉप्स लिखते हैं जैसेकि साइक्लोपोरीन (रेस्टासिस)। यह दवा आंखों में आंसू की मात्रा बढ़ा देती है जिससे कार्निया डैमेज होने का रिस्क कम हो जाता है।
अति गम्भीर कंडीशन में थोड़े समय के लिये कॉर्टीकोस्टीराइट आई ड्राप्स भी देते हैं, जब दवाओं का प्रभाव शुरू हो जाता है तो इसे बंद कर कर दिया जाता है। वैकल्पिक मेडीकेशन के तौर पर पिलोकारपीन जैसे कॉलिनरजिक्स प्रयोग होते हैं, ये दवायें आंखों में आंसू बनने की प्रक्रिया प्रोत्साहित करती हैं। यदि यह रोग किसी अन्य दवा के साइड इफेक्ट से हो रहा है तो डाक्टर उस दवा को बंद करके उसके स्थान पर दूसरी दवा लिख देते हैं।
सर्जरी: जब दवायें असर नहीं करतीं तो डाक्टर सर्जरी से आंखों के कोनों में बने ड्रेनेज होल्स को प्लग लगाकर स्थायी रूप से बंद कर देते हैं इससे आंखों में बनने वाले आंसू बहने के बजाय आंख में ही बने रहकर जरूरी नमी बनाये रखते हैं।
प्रोसीजर: अमेरिका के एक अन्य मशहूर नेत्र रोग विशेषज्ञ डा। लांस कुगलर (डायरेक्टर ऑफ रिफलेक्टिल सर्जरी, कुगलर विजन, ओमाहा, नेबरास्का, अमेरिका) के मुताबिक अब इस रोग के नये-नये इलाज सामने आ रहे हैं जैसेकि लिपीफ्लो प्रोसीजर। यह आंखों में आंसुओं का बहाव बेहतर करता है। इसके अलावा ब्लेफईएक्स नामक मेडीकेशन से आईलिड क्लीन करने पर इस समस्या में सुधार होता है। लेकिन ऐसा खुद न करें बल्कि किसी आई केयर प्रोफेशनल से करायें।
होम केयर: घर में हमेशा ह्यूमिडीफायर प्रयोग करें जिससे कमरे में नमी बनी रहे और आंखों का ड्राई वातावरण से ज्यादा एक्सपोजर न हो। जितना कम हो सके कॉन्टेक्ट लेंस पहने। कम्प्यूटर और मोबाइल फोन पर कम से कम समय व्यतीत करें या इनकी स्क्रीन्स पर ब्लू कट फिल्म लेमिनेट करायें। जिन लोगों को यह समस्या है उन्हें डायरेक्ट पंखे के नीचे सोने से बचना चाहिये और आंखों में नमी बनाये रखने वाला ऑइन्टमेंट लगाकर सोना चाहिये। दिन में आंखों की नमी बनाये रखने का प्रयास करें, यदि डाक्टर ने कोई आई ड्राप्स लिखा है तो उसे दिन में भी डालें। इसमें कोई कोताही न बरतें अन्यथा कॉर्निया खराब हो सकता है।
घरेलू उपचार: ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन ए युक्त सप्लीमेंट इस समस्या में लाभदायक होते हैं। जो लोग इससे पीड़ित हैं उन्हें ये सप्लीमेंट कम से कम तीन महीने अवश्य खाने चाहिये। बाजार में फिट-आई के नाम से ऐसे कई सप्लीमेंट उपलब्ध हैं लेकिन उन्हें लेने से पहले इस बात की जांच कर लें कि उनमें ये दोनों तत्व अच्छी मात्रा में मौजूद हों। इसके अलावा स्मोकिंग से यह समस्या बढ़ती है इसलिये स्मोकिंग छोड़ें और घर से बाहर निकलते समय आंखों को धूप और गर्मी से बचाने के लिये चश्मा जरूर पहनें। घर में पंखे, गीज़र, हीटर और ए।सी। की तरह ही ह्यूमिडिफॉयर नामक उपकरण को शामिल करें। यदि कॉन्टेक्ट लेंस लगाना मजबूरी है तो हार्ड कॉन्टेक्ट लेंस की जगह सॉफ्ट लेंस लगायें। शरीर में पानी की कमी न होने दें और प्यास महसूस होने पर पानी अवश्य पियें। महिलायें आंखों का मेकअप करते समय आई लाइनर, मस्कारा और आई पाउडर का प्रयोग कम से कम करें।
ड्राइ आई सिन्ड्रोम के साथ जीवन
यदि यह समस्या हो गयी है तो मान लें कि इसका कोई स्थायी समाधान नहीं है लेकिन नेत्र विशेषज्ञ की सलाह से इसे आसानी से मैनेज करके आंखों को और नुकसान से बचा सकते हैं। क्रोनिक ड्राइ आई में दर्द और जलन ज्यादा होती है लेकिन घबराने की जरूरत नहीं इसका इलाज है। आंख में भारीपन या जलन होने पर आंखे मलने के बजाय डाक्टर के पास जायें यदि उसने आई ड्रॉप लिखा है तो ट्रीटमेन्ट प्लान के अनुसार उसे प्रयोग करें। धूल और धुयें वाले वातावरण में न जायें। ऐसे वातावरण में जाने से बचें जहां आंखों का सीधा एक्सपोजर सूखी हवा से हो। इस कंडीशन में पहाड़ों की सूखी ठंडी हवा भी आंखों को उतना ही नुकसान पहुंचाती है जितनी कि रेगिस्तानी गर्म हवा। इसलिये ऐसे किसी भी एक्सट्रीम क्लाइमेट में न जायें। अपना लाइफ स्टाइल तथा खान पान बदलें, इसके तहत स्मोंकिग को न कहें और यदि ब्लड प्रेशर या डॉयबिटीज के मरीज हैं तो शराब भी न पियें क्योंकि ब्लड प्रेशर मैनज करने के लिये दी जा रही हाई डोज इस रोग को ट्रिगर करती है। कम्प्यूटर पर काम करते समय स्क्रीन को एकटक देर तक देखने के बजाय बीच-बीच में पलके झपकाने की आदत डालें। कमरे में हीटर के साथ ह्यूमिडफायर जरूर रखें।