भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापारिक समझौता क्या ड्रैगन की आर्थिक दादागीरी को तहस-नहस कर देगा?
दुनिया के तमाम देशों के लिए चीन की विस्तारवादी नीतियां चिंता का सबब बनी हुई हैं
प्रवीण कुमार।
दुनिया के तमाम देशों के लिए चीन (China) की विस्तारवादी नीतियां चिंता का सबब बनी हुई हैं. क्वाड (Quad) देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान समेत दक्षिण पूर्वी एशियाई देश 'ड्रैगन' पर लगाम लगाने के उपाय तलाश रहे हैं. ऐसे में भारत-ऑस्ट्रेलिया (India-Australia trade deal) के बीच ताजा व्यापारिक समझौता को एक बड़ी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है. क्वॉड विशुद्ध तौर पर चीन विरोधी संगठन है. इसमें कोई शक नहीं कि भारत और ऑस्ट्रेलिया ने वो कर दिखाया है जिस पर पिछले करीब एक दशक से काम चल रहा था. दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते के अंतरिम मसौदे पर न सिर्फ सहमत हुए हैं बल्कि आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं. इसके तहत ऑस्ट्रेलिया टेक्सटाइल, चमड़ा, आभूषण और खेल उत्पादों समेत 95 फीसदी से अधिक भारतीय वस्तुओं के लिए अपने बाजार में ड्यूटी फ्री एक्सेस देगा. इसमें ऐसे कई प्रॉडक्ट्स शामिल हैं, जिन पर अभी ऑस्ट्रेलिया में चार से पांच प्रतिशत का सीमा शुल्क लगता है. लेकिन वो सारे सवाल अभी भी भविष्य के गर्भ में गोते लगा रहे हैं कि क्या इससे चीन के खिलाफ भारत और ऑस्ट्रेलिया का मकसद पूरा हो जाएगा? क्या 'क्वाड का चतुर्भुज' दुनियाभर में चीनी अर्थव्यवस्था की दादागीरी को खत्म कर देगा? और इस सबका सबसे बड़ा लाभ भारत और उसकी अर्थव्यवस्था को मिलेगा?
भारत-ऑस्ट्रेलिया मुक्त व्यापार से किसे फायदा?
विशुद्ध अर्थव्यवस्था के नजरिए से देखा जाए तो मुक्त व्यापार हमेशा और सभी के लिए लाभप्रद होता है. ज्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर सरकार लोगों को बेरोक-टोक व्यापार करने दे तो उसके फायदे हमेशा नुकसान से ज्यादा होते हैं. जहां तक भारत और ऑस्ट्रेलिया की बात है तो दोनों ही देश कई मामलों में संवेदनशील हैं लेकिन कुछ क्षेत्रों में भी अगर अवरोध हटाए जाते हैं, टैक्स में कटौती की जाती है तो निश्चित रूप से दोनों देशों की आमदनी बढ़ेगी. वित्त वर्ष 2020-21 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 12.5 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के पहले दस महीनों में ही यह 17.7 अरब डॉलर को पार कर चुका है. भारत ने 12.1 अरब डॉलर का आयात किया है जबकि 5.6 अरब डॉलर का निर्यात किया है.
भारत के मुख्य आयातित उत्पादों में कोयला, सोना और लीक्विड नेचरल गैस हैं जबकि भारत से डीजल, पेट्रोल, कीमती पत्थर और गहनों का निर्यात हुआ है. इस समझौते की सबसे बड़ी बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया करीब 5500 प्रोडक्ट दुनिया के अन्य देशों से आयात करता है. इसमें से करीब 5000 प्रोडक्ट को वह भारत से आयात करने को तैयार हो गया है. अब यह भारत को सुनिश्चित करना है कि वह इतनी बड़ी संख्या में उत्पादों को निर्यात करने में कितना सक्षम है.
गेंद पूरी तरह से भारत के पाले में है कि वह अपने निर्यात से ऑस्ट्रेलिया के बास्केट को कितना भर सकता है. क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने भारत के लिए व्यापारिक द्वार पूरी तरह से खोल दिए हैं. लेकिन इसमें बड़ी दिक्कत यह है कि ऑस्ट्रेलिया विकसित देश तो है लेकिन तकनीकी रूप से उतना सुदृढ़ नहीं है. ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक क्षेत्र वही हैं जो भारत के हैं. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया का बड़ा निर्यात कृषि और खनन से आता है. भारत भी कृषि पर निर्भर देश है. इसलिए हितों का टकराव होना स्वभाविक है. हालांकि इसी से सहयोग की संभावनाएं भी पैदा होती हैं. लेकिन इतना जान लीजिए कि भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच मुक्त व्यापार समझौता तात्कालिक तौर पर चीन की अर्थव्यवस्था को बहुत गहरे तौर पर प्रभावित करने नहीं जा रहा है.
चीनी अर्थव्यवस्था पर फिलहाल कोई असर नहीं
कहते हैं दुश्मन पर कई मामलों में निर्भर होना कूटनीति में कमजोरी मानी जाती है. चीन को अगर भारत अपना दुश्मन मानता है, चीन को अगर क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) अपना दुश्मन मानता तो यह भी एक कड़वा सच है कि भारत समेत क्वाड के सभी सदस्य देश चीन पर काफी हद तक निर्भर है. ये देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं और इसमें भारत भी शामिल है, लेकिन निकट भविष्य में होता दिख नहीं रहा है.
अभी बीते 5 फरवरी 2022 की ही तो बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद स्थित मुचिन्तल गांव के एक मंदिर में रामानुजाचार्य की 216 फीट ऊंची मूर्ति का अनावरण करने पहुंचे थे. केंद्र सरकार ने इसे 'स्टैचू ऑफ इक्वालिटी' नाम दिया है. तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस पर तंज कसते हुए ट्वीट किया था, "स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी चीन में बनी है. नया भारत क्या चीन पर निर्भर है?" हालांकि मोदी सरकार में संस्कृति मंत्री जी. कृष्ण रेड्डी ने जवाब भी दिया जिसमें कहा गया कि सरकार इस मूर्ति के निर्माण में शामिल नहीं थी. यह एक निजी पहल थी और आठ साल पहले शुरू की गई थी. आत्मनिर्भर भारत अभियान के पहले से मूर्ति बन रही थी.
चीन के साथ भारत का व्यापार 125 अरब डॉलर पार
चलिए मान लेते हैं कि वो सारी बातें पुरानी हो गई हैं कि चीन भारत में लक्ष्मी, दुर्गा की मूर्ति से लेकर पतंग का मांझा तक बेचता है. लेकिन चाइना जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम (जीएसी) ने जनवरी में भारत से व्यापार का जो ताजा डेटा जारी किया है उसके अनुसार, साल 2021 में भारत का चीन के साथ व्यापार 125.6 अरब डॉलर को छू गया है. यह पहली बार है, जब चीन के साथ व्यापार 100 अरब डॉलर को पार कर गया है. इसमें भारत ने 97.5 अरब डॉलर का आयात किया है और निर्यात महज़ 28.1 अरब डॉलर का है. आयात और निर्यात दोनों रिकॉर्ड है. लेकिन व्यापार घाटा सिर्फ भारत का है. व्यापार घाटे का मतलब है भारत चीन से ज्यादा खरीद रहा है और कम बेच रहा है. भारत का चीन से आयात 46.2 प्रतिशत बढ़ा है जबकि निर्यात भी बढ़ा है लेकिन उसका प्रतिशत 34.2 है.
चीन से भारत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी के अलावा कई तरह के केमिकल खरीदता है. ये केमिकल भारत के फार्मा इंडस्ट्री के लिए अहम हैं. इसके अलावा ऑटो पार्ट्स और मेडिकल सप्लाई भी शामिल है. भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 2021 में इन सभी चीजों का आयात बढ़ा है. चीन से लैपटॉप और कंप्यूटर, ऑक्सीजन कॉन्सेन्ट्रेटर के अलावा एसिटिक एसिड का आयात रिकॉर्ड बढ़ा है. भारत के मोबाइल मार्केट में चीन का 55 फीसदी का कब्जा है. ग्लोबल टाइम्स की मानें तो भारत की फार्मा इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले केमिकल और मेडिसिन के रॉ मटीरियल 50 से 60 फीसदी चीन से आते हैं. जीएसी के अनुसार, 2021 में भारत चीन का 15वां सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर रहा है. भारत का चीन से व्यापार घाटा की बात करें तो 2017 में चीन से भारत का व्यापार घाटा 51 अरब डॉलर था जो 2021 में बढ़कर 69.4 अरब डॉलर पहुंच गया.
भारत ही नहीं पूरी दुनिया चीनी माल पर निर्भर
और बात केवल भारत की नहीं है. पूरी दुनिया की निर्भरता चीन पर बढ़ी है. 24 अप्रैल 2020 को 'द अटलांटिक' के एक लेख में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर विली शिह लिखते हैं, "मैन्युफ़ैक्चरिंग के मामले में दुनिया चीन पर निर्भर है. यह केवल मेडिकल आपूर्ति तक ही सीमित नहीं है बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर, खिलौना और अन्य तमाम चीजों का चीन आधा ट्रिलियन का निर्यात करता है.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में चीन से ट्रेड वॉर छेड़ा था, बावजूद इसके 2021 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 755.6 अरब डॉलर का रहा. 2021 में दोनों देशों के व्यापार में 28.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. इसमें अमेरिका का निर्यात महज 179.53 अरब डॉलर ही है. जहां तक चीन-ऑस्ट्रेलिया व्यापार की बात है तो ऑस्ट्रेलिया के विदेशी मामलों और व्यापार विभाग के अनुसार, चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर रहा है और पूरी दुनिया से ऑस्ट्रेलिया जितना व्यापार करता है उसके अकेले 29 प्रतिशत व्यापार वो चीन से करता है.
लेकिन जब से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड 19 की उत्पत्ति में चीन का नाम आया और जांच की मांग करने वाले देशों की सूची में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया तब से दोनों देशों के बीच संबंध खराब हो गए. इसका असर दोनों देशों के बीच व्यापार पर भी पड़ा. साल 2020 में ऑस्ट्रेलिया में चीनी निवेश में 61 प्रतिशत की कमी आई है जो कि पिछले छह साल में सबसे कम है. ऑस्ट्रेलिया के शराब उद्योग के लिए चीन सबसे बड़ा बाजार है. ऑस्ट्रेलिया से चीन के संबंध खराब हुए तो चीन ने पिछले साल ऑस्ट्रेलियाई शराब पर 218% तक का टैरिफ लागू कर दिया था. उसने ऑस्ट्रेलिया से अपने यहां आने वाले शराब और बीफ पर पाबंदी भी लगा दी थी. व्यापारिक आंकड़ों के अनुसार, ऑस्ट्रेलियाई वाइनमेकर्स ने दिसंबर 2020 से मार्च 2021 तक चीन को सिर्फ 9 मिलियन डॉलर की वाइन भेजी है. जबकि इससे एक साल पहले इतने ही समयांतराल में ऑस्ट्रेलिया से करीब 325 मिलियन डॉलर की वाइन चीन को निर्यात हुई थी. तो यहां भी आप देख सकते हैं कि व्यापार में घाटा किसको हो रहा है? निश्चित रूप से ऑस्ट्रेलिया को दूसरा वाइन मार्केट तलाशना पड़ेगा जो चीन से हो रहे घाटे की भरपाई कर सके.
कहने का मतलब यह कि चाहे क्वाड चतुर्भुज की चीनी अर्थव्यवस्था को हिलाने या मिटाने की कवायद हो, भारत-ऑस्ट्रेलिया मुक्त व्यापार समझौता हो, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि दुनिया के तमाम देश चीन से अपने आयात को कितना कम कर पाते हैं और क्या चीन से आयात नहीं करने की स्थिति में उनका काम चल जाएगा? मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में जिस तरह से चीन का एकाधिकार है, इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में पूरी दुनिया में जिस तरह से चीन का एकाधिकार है उस एकाधिकार को तोड़ पाने में भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया कितना सक्षम हैं? चीन के खिलाफ अगर यह सब संभव हो पाता है तो उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले एक दशक में चीन की आर्थिक ताकत को चुनौती मिल सकती है, उसकी अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो सकती है और निश्चित रूप से इसका सबसे बड़ा फायदा भारत को मिलेगा इसमें कोई संदेह नहीं क्योंकि भारत के पास सस्ता श्रम है, बड़ा बाजार है और दुनिया के देशों में चीन से अच्छी साख है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)