इमरान खान को सत्ता से हटाने वाला पाकिस्तानी मौलाना भारत बार-बार क्यों आता है?

मौलाना फजल-उर-रहमान के संगठन जमीयत-उल-इस्लाम को आप जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की पाकिस्तानी शाखा मान सकते हैं

Update: 2022-04-21 06:39 GMT
विवेक शुक्ला | 
आपने देखा होगा पिछले दिनों जब पाकिस्तान (Pakistan) में इमरान खान (Imran Khan) की सरकार को गिराने का अभियान जोरों पर था तब एक मौलाना संसद से लेकर सड़कों तक में बढ़-चढ़कर पूर्व क्रिकेटर को पानी-पी पीकर कोसते हुए देखा होगा. उसका नाम है मौलाना फजल-उर-रहमान. वह बार-बार दिल्ली, सहारनपुर, देवबंद और मुरादाबाद में आता रहा है. इमरान खान का वह शरीफ बंधुओं, आसिफ अली जरदारी के बाद सबसे बड़ा दुश्मन है. वह जमीयत उल इस्लाम पाकिस्तान का सदर और संसद सदस्य है. पाकिस्तान में मंगलवार को नई कैबिनेट ने शपथ ली तो मौलाना फजल-उर-रहमान के बेटे असद मसूद को भी उसमें जगह मिली है. असद ने इमरान खान के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस में जोरदार तकरीर की थी. मौलाना फजल-उर-रहमान (Fazal-ur-Rehman) के साथ उनके मंत्री बने पुत्र भी भारत आते रहते हैं.
दरअसल, मौलाना फजल-उर-रहमान के संगठन जमीयत-उल-इस्लाम को आप जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की पाकिस्तानी शाखा मान सकते हैं. जमीयत की स्थापना 1919 में हुई थी. देश बंटा तो पाकिस्तान में रहने वाले जमीयत से जुड़े लोगों ने जमीयत उल इस्लाम पाकिस्तान का गठन कर लिया. उससे मौलाना फजल उर रहमान के पिता मौलाना मुफ्ती महमूद भी जुड़ गए. वे आगे चलकर पाकिस्तान के सूबे खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री भी बने. वे बड़े असरदार नेता थे.
मौलाना फजल-उर-रहमान ने सन 2007 में राजधानी में आईटीओ पर स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के दफ्तर में इस नाचीज लेखक को बताया था कि उनके पिता ने दीनी तालीम मुरादाबाद के मदरसा शाही में ली थी. उसके बाद वे आगे की तालीम के लिए देवबंद के दारुल उलूम में गए थे. ये बातें देश के बंटवारे से पहले की हैं. इसलिए वे जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, सहारनपुर, देवबंद तथा मुरादाबाद से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं. वे फक्र के साथ बता रहे थे कि जमीयत ने देश के बंटवारे का कसकर विरोध भी किया था. मेरे वालिद मुफ्ती महमूद ने 1971 में कहा था कि अल्लाह का शुक्र है कि मुल्क के बंटवारे में हमारा कोई रोल नहीं था.
इमरान-मौलाना में अदावत
मौलाना फजल उल रहमान की पार्टी लगातार इमरान खान सरकार की नीतियों का विरोध कर रही थी. इसके चलते मौलाना और इमरान खान में तल्खियां बहुत बढ़ गईं थीं. दोनों एक-दूसरे से सीधे आंखें डालकर बात भी नहीं करते. इमरान खान ने एक बार यहां तक कहा था. मैं फजल उर रहमान के नाम के आगे मौलाना नहीं लगा सकता. वे इस लायक नहीं हैं.
रामलीला मैदान में मौलाना
मौलाना फजल-उर-रहमान ने 22 दिसंबर, 2013 को राजधानी के तारीखी रामलीला मैदान में जमीयत उल हिन्द के एक बड़े कार्यक्रम को संबोधित किया था. उनका जमीयत उल हिन्द के नेता महमूद मदनी ने हजारों-लाखों लोगों से परिचय करवाया. उसके बाद मौलाना फजल उर रहमान ने अपनी तकरीर में इस्लाम, देवबंद तथा भारत-पाकिस्तान संबंधों तथा अन्य विषयों पर अपने ख्यालातों का इजहार किया था. वे लगभग 45 मिनट बोले थे. उनके उस भाषण को यूट्यूब पर सुना जा सकता है.
बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने भारत के आजाद होने तक कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया. जैसा कि पहले बताय़ा जा चुका है कि देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम सामने आया. फिर इसी नाम से वहां एक सियासी जमात भी बनी. मौलाना फजल-उर-रहमान उसके एकछत्र नेता हैं. भारत और पाकिस्तान की जमीयत के जानकार अब्दुल मजीद निजामी कहते हैं कि सरहद के आर-पार की जमीयत में करीबी संबंध हैं.
दोनों देशों की जमीयत के नेता एक-दूसरे के देशों में धार्मिक आयोजनों और सम्मेलनों में जाते रहते हैं. उनका कहना था कि सारे संसार में रहने वाले देवबंदी मुसलमानों के लिए देवबंद एक बेहद पवित्र शब्द और स्थान हैं. उन्हें यहां से ही दीन संबंधी मामलों पर दिशा मिलती है. इसलिए ही मौलाना फजल भी देवबंद आते हैं.
कैसी इमेज मौलाना की
मौलाना फजल-उर-रहमान की इमेज भी सुन्नी कट्टरपंथी की है. वे पाकिस्तानी संसद में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं. मौलाना फजल-उर-रहमान और शरीफ बंधुओं (नवाज और शहबाज) में संबंध ठीक-ठाक रहे हैं. उन्हें शरीफ की सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा मिला हुआ था. उन्हें तालिबान का समर्थक माना जाता है. हालांकि वह इस आरोप को सही नहीं मानते. बहरहाल, उनका भारत से दीनी स्तर पर एक रिश्ता तो है. मौलाना अपने विवादास्पद बयानों के लिए बदनाम भी रहे हैं.
उन्होंने 1988 में बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने पर कहा था कि वे एक औरत को अपना नेता नहीं मान सकते. इस बीच,मौलाना फजल पाकिस्तान में रहते हुए भी कोशिश करते रहते हैं कि भारत में जमीयत में चाचा अरशद मदनी तथा भतीजे महमूद मदनी में तालमेल रहे. हालांकि सबको पता है कि चाचा भतीजे की कभी-कभी किसी मसले पर राय अलग भी हो जाती हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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