शराबबंदी से क्या मिला
बिहार में नकली शराब पीने से हुई मौतों को लेकर विधानसभा में विरोध प्रदर्शन कर रहे विपक्षी विधायकों पर भड़क उठने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को मृतकों के परिजनों को किसी तरह का मुआवजा देने से इनकार कर दिया।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | बिहार में नकली शराब पीने से हुई मौतों को लेकर विधानसभा में विरोध प्रदर्शन कर रहे विपक्षी विधायकों पर भड़क उठने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को मृतकों के परिजनों को किसी तरह का मुआवजा देने से इनकार कर दिया। हालांकि गुरुवार को वह गुस्से में नहीं दिखे, लेकिन उन्होंने कहा, जो शराब पिएगा वह तो मरेगा ही। देखना दिलचस्प है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया उसी विचार पद्धति की सहज अभिव्यक्ति है, जिससे शराबबंदी का तर्क निकलता है। शराब को गलत और अनैतिक चीज मानते हुए ही कोई राज्य सरकार इसे निषिद्ध घोषित करती है। मकसद यह भी होता है कि इससे महिला वोटरों को अपने पाले में लाया जाए। इसके साथ सरकारें अपराध और सड़क हादसों में कमी, स्वास्थ्य के लिहाज से सही और घरेलू हिंसा पर लगाम लगाने जैसे तर्क भी इसके पक्ष में देती हैं। लेकिन नैतिकता की दुहाई हो या कोई और तर्क दिया जाए, सच यही है कि शराबबंदी की वजह से लोग शराब पीना बंद नहीं कर देते। इसीलिए देश में ज्यादातर राज्यों में शराबबंदी नहीं है। आज की तारीख में बड़े राज्यों में सिर्फ गुजरात और बिहार में ही शराबबंदी लागू है। गुजरात में लंबे समय से शराबबंदी है, लेकिन बिहार ने 2016 में इसे लागू किया। इसके दुष्परिणाम वहां कई स्तरों पर देखे जा रहे हैं।