पंजाब में भगवंत मान के सिर पर जीत की पगड़ी झूठे वादों और बेकार की घोषणाओं से तंग आ चुके मतदाताओं ने बांधी है

मतदाता चाहते हैं कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद की जाए ताकि वे खुद इस काबिल बन सकें कि अपना पेट भर पाएं

Update: 2022-03-16 10:12 GMT
Ronki Ram
आम आदमी पार्टी (AAP) की रिकॉर्ड जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि अब से पंजाब (Punjab) की जनता काम न करने वालों को बाहर का रास्ता दिखा देगी. मौजूदा ऐतिहासिक फैसला उन सभी लोगों को सबक सिखाने के लिए है जो एक भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. जबकि शिरोमणी अकाली दल (बादल) और कांग्रेस (Congress) की वैकल्पिक सरकारें कई रियायतें और सब्सिडी देती थीं. यह अलग-अलग विचारधाराओं के सभी दलों के लिए एक सबक भी है कि वे सिर्फ गेहूं, चावल और मुफ्त बिजली बांटकर मतदाताओं का विश्वास नहीं जीत सकते.
मतदाता चाहते हैं कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद की जाए ताकि वे खुद इस काबिल बन सकें कि अपना पेट भर पाएं. वो सरकार के मुफ्त गेहूं चावल पर निर्भर रहना नहीं चाहते. एक भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए अब वो और इंतजार नहीं करना चाहते. अब उन्हें अपने क्षेत्र से लेकर राज्य की राजधानी तक लोगों का हित देखने वाली सरकार की कवायद है. वे रेत खनन से लेकर परिवहन, ड्रग कार्टेल और पेड ट्रांसफर तक सभी माफियाओं का जल्द अंत चाहते हैं.
अनसुलझी समस्याएं
इस चुनाव ने ये साबित कर दिया है कि जब तक पंजाब में अनसुलझे मुद्दों को वहां के लोगों की भलाई के लिए हल नहीं किया जाता, तब तक कोई भी पार्टी उनकी कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती. 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव अधिकांश पार्टियों द्वारा अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रों को सामने लाए बिना लड़ा गया था. हालांकि, लंबे समय से लंबित मुद्दे, जैसे कि बढ़ती बेरोजगारी, कृषि संकट, भ्रष्टाचार, पानी की कमी, पर्यावरण संकट और राज्य के भीतर गांवों से शहरों और विदेशों में बड़े पैमाने पर पलायन, यह सब वे मुद्दे हैं जो हमेशा मतदाताओं के दिमाग में रहते हैं. इन मुद्दों को हल कर पाना नई सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा.
इस चुनावी रिजल्ट को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि पंजाब के मतदाताओं ने यह समझ लिया है कि मुख्यधारा के राजनीतिक दल लंबे समय से उन्हें सिर्फ बेवकूफ बनाते आ रहे हैं. यहां कोई भी सरकार रही हो उनकी पार्टी का बस नाम अलग था लेकिन उन सबकी रणनीतियां एक जैसी थीं और उन्होंने सिर्फ अपने लोगों का भला किया. इसलिए इस बार जागरुक मतदाताओं ने उन्हें सिरे से नकार दिया.
यहां के मतदाता झूठे वादों और बेकार की घोषणाओं से तंग आ चुके थे. वे यह भी अच्छी तरह से समझते थे कि राज्य में समाज के कमजोर तबकों के बीच जो भी खाद्य सामग्री बांटी जा रही है, वह दान नहीं है, बल्कि उसके लिए राज्य के खजाने से ही पैसा निकाला जाता है. इसका मतलब यह नहीं है कि वे गेहूं, दाल और मुफ्त बिजली नहीं चाहते थे. उन्हें उनकी बहुत जरूरत है, इसलिए आम आदमी पार्टी ने 18 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए कुछ आर्थिक भत्तों की घोषणा भी की.
पंजाब और पंजाबियत
इस चुनावी फैसले ने यह भी साबित कर दिया है कि पंजाब और पंजाबियत की गहरी जड़ें जमाने वाली संस्कृति अपनी सामाजिक एकता को कम करने के किसी भी कदम का पुरजोर विरोध करेगी. चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर अनुसूचित जाति (एससी) की लगभग एक-तिहाई आबादी को एकजुट करने का कांग्रेस का प्रयास समर्थन जुटाने में विफल रहा. इसी तरह, बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन के बाद भी शिरोमणी अकाली दल (बादल) को ज्यादा सीटें नहीं मिली. एससी वोट हासिल करने के लिए कांग्रेस और शिरोमणी अकाली दल (बादल) दोनों के राजनीतिक पैंतरों ने उनका भारी नुकसान किया. लेकिन उनके इस कदम ने पंजाब में जाति की राजनीति का अंत कर दिया.
मुख्यधारा की पार्टियों की जनविरोधी राजनीति और वास्तविक मुद्दों से निपटने में उनकी नाकामयाबी इस चुनावी रिजल्ट की बड़ी वजह बनी. इस बार का चुनावी परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है कि भविष्य में भी मतदाता अब अच्छा प्रदर्शन न करने वाली सरकार को बर्दाश्त नहीं करेंगे. यह फैसला एक तरफ जहां स्वकेंद्रित शासक वर्ग की हार का प्रतीक है, तो दूसरी तरफ, यह एक नए राजनीतिक गठन को अवसर देता है, जिसने यहां सुशासन लाने के लिए एक बार मौका देने की मांग की.
नवनिर्वाचित सदस्य
आप के लगभग सभी विधायक चुनाव में पहली बार खड़े हुए थे और अब उनके सामने पंजाब के कर्ज को कम करने, सरकारी खजाने में सुधार लाने और उद्योग को बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल देने की चुनौती है. ताकि एक बार फिर राज्य को समृद्ध बनाया जा सके. हालांकि ये चुनौती उनके लिए आसान नहीं होगी.
पंजाब के लोगों की सफलता की कई कहानियां हैं. वे राज्य में सार्वजनिक संसाधनों के निर्माण में मदद करने के लिए प्रशासन के आह्वान पर उनके साथ खड़े हुए हैं. उन्होंने पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान में) की युद्ध भूमि में कई नहरें बनवाईं और ब्रिटिश शासन के दौरान कृषि को बढ़ाने के लिए वहां फार्मिंग कॉलोनियों की स्थापना की और इस तरह साठ के दशक के अंत और सत्तर के दशक की शुरुआत में पंजाब में हरित क्रांति के निर्माण में योगदान दिया. यह चुनावी परिणाम बताते हैं कि पंजाब के पास एक बार फिर से अपनी अर्थव्यवस्था और राज्य व्यवस्था को सुधारने का मौका है.
(लेखक चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में शहीद भगत सिंह, राजनीति विज्ञान के चेयर प्रोफेसर हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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